इनसाइड स्टोरी: भुतवा केदारभूमि में नाचते थे भूत! नेपाल से बुलाये गए तीन तांत्रिक..!

इनसाइड स्टोरी: भुतवा केदारभूमि में नाचते थे भूत! नेपाल से बुलाये गए तीन तांत्रिक..!

(मनोज इष्टवाल)
2013की आपदा के बाद जब केदारनाथ के पुनर्निर्माण की जिम्मेदारी निम को मिली तब  वो सर्द दिन व रात आज भी रूह कंपा देते हैं जब हमने केदारनाथ पुनर्निर्माण के लिए काम करना शुरू किया तब वहां बर्फ की मोटी चादर थी और निम की टीम ने कर्नल अजय कोठियाल के नेतृत्व में लगभग 750 मजदूरों के साथ केदार भूमि में डेरा डाला था ! तब बर्फ कई फिट ऊँची थी और हमारे पास काम शुरू कहाँ से करें यह सबसे बड़ी चुनौती थी लेकिन कर्नल अजय कोठियाल जिस मोटिवेशन के साथ हमें उत्साहित कर रहे थे उस से यही लग रहा था कि यह चुनौती कुछ भी नहीं है! यह उदगार कर्नल अजय कोठियाल के बेहद करीबी समझे जाने वाले आमोद पंवार ने तब उद्गारित किये जब वे विगत दिवस लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी पर प्रौढ़ सतत शिक्षा एवं प्रसार विभाग हेमवती नंदन गढ़वाल विश्वविद्यालय (केन्द्रीय) विश्वविद्यालय श्रीनगर द्वारा उनके गीतों की समीक्षा पर निकाली गयी पुस्तक “नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों में जनसरोकार” के लोकार्पण पर कर्नल अजय कोठियाल के साथ साईं इंस्टिट्यूट में आये हुए थे.

ऑफ़ द रिकॉर्ड उन्होंने जब यह जानकारी दी कि नेपाली मजदूरों ने जब केदारनाथ काम करना शुरू किया तब स्थिति ज्यादा भयावक नहीं थी लेकिन जैसे जैसे बर्फ पिघलने शुरू हुई वैसे ही वहां बर्फ में दबी लाशें निकलनी शुरू हो गयी. कहीं किसी का हाथ दिखाई देता तो कहीं किसी की खोपड़ी! रात को अगर कोई मजदूर शौच के लिए बाहर निकल गया तो पक्का समझो उसे भूत चिपक गया. हमारे लिए परेशानी यह थी कि कभी रामबाड़ा में किसी मजदूर को भूत पकड लेता तो कभी केदारनाथ में..! ऐसे में हमें काम करने में बेहद मुश्किल हालात नजर आ रहे थे. लेकिन कर्नल कोठियाल यही तसल्ली देते कि हिमालयी भू-भाग में यह सब हर जगह होता है . कोई भूत वूत नहीं होता ये सब हमारे वहम हैं.

सच पूछिए तो क्या मजदूर क्या हम सभी की हालत अर्द्धविकसित से हो गए थे. ऐसे में नेपाल से आये मजदूर भागने शुरू हो गए जबकि उन्हें हम बिषम परिस्थितियों में उनकी मजदूरी की दुगनी से ज्यादा प्रतिदिन पगार दे रहे थे. एक स्थिति यह भी आई कि नेपाल से आये 380 मजदूरों में मात्र 70 मजदूर ही हमारे पास बचे रहे गए बाकी सब कोई न कोई बहाना लगाकर खिसक गए. हालात की नाजुकता को देखते हुए हमने फिर नेपाल से तीन तांत्रिक बुलाये जिनका काम प्रतिदिन नहाधोकर पूजा पाठ करना व जिन पर भूत चिपक जाते उन्हें उतारना ही था. ताजुब्ब तो यह था कि मरने वाले लोग जिस पर चिपकते थे वे अपना नाम बताते थे कि वे किन परिस्थितियों में यहाँ मरे. हम फिर उन आत्माओं के मोक्ष के लिए चिता सजाते थे व मोमबत्ती से उसे जलाते थे! आमोद पंवार के इस रहस्योंदघाटन ने सचमुच बदन में सिहरन ला दी थी ! यकीनन इतनी उंचाई पर काम करना उन दिनों कितना मुश्किल रहा होगा जब वहां बर्फ का अम्बार लगा हो? 

(आमोद पंवार)
आमोद कहते हैं कि एक बार तो रात को स्थिति ये आई कि एक तम्बू के नीचे की बर्फ पिघलने के कारण एक हाथ तम्बू की एक तरफ व एक पैर तम्बू के दूसरी तरफ खड़ा दिखाई दिया. मजदूरों में दहशत का माहौल था. यकीनन यह बेहद डरावना था. सुबह जब तम्बू की मैट उठाई गयी तब उसमें पांच लाशें एक साथ दिखाई दी जो बर्फ पिघलने के बाद बाहर निकली थी! हमें अब डर लग रहा था जबकि इस से पहले मजदूर बर्फ के ऊपर बिछौना डाले उन्हीं लाशों के ऊपर लेते हुए थे! वे कहते हैं कि यकीन मानिए ऐसी स्थिति में सिविलियन से काम लेना कितना मुश्किल रहा होगा इसकी कल्पना की जा सकती है. यह भी सच है कि ऐसे में कोई भी सरकारी विभाग (सैनिक/अर्द्धसैनिकों को छोड़कर) केदारनाथ में भला कैसे काम कर पाता!

कर्नल अजय कोठियाल से इस सम्बन्ध में जब प्रतिक्रिया पूछी तो उन्होंने हंसते हुए कहा – कोई भूत वूत नहीं होता यह हमारा वहम होता है! यह हमने देश की रक्षा में जाने कितनी बार और कितनी जगह फेस किया है. फिर यह तो केदारभूमि हुई. भला केदार किसी का बुरा कैसे चाहते! मैंने प्रश्न किया फिर वह भूत वाला नाटक प्ले करने की क्यों नौबत आई!

कर्नल कोठियाल आवाक नजर से मेरी ओर देखते हैं और फिर अपनी चिरपरिचित मुस्कान में कहते हैं कि केदारनाथ में जब हमने कार्य प्रारम्भ किया तब हमारे पास नेपाल मूल के नेपाली एक टीम, हिमाचल-गढ़वाल मूल के गोरखा दूसरी टीम व गढ़वाल क्षेत्र के तीसरी टीम सहित कुल 750 के आस-पास वर्कर्स थे लेकिन हिमालय में बिषम परिस्थितियों में इन्होने काम नहीं किया था ऐसे में एक हफ्ते में ही लगभग 60-70 लेबर कार्य छोड़कर भाग गयी. सबकी मानसिकता में यह शामिल हो गया था कि केदारनाथ में मृत आत्माओं के भूत हैं और वह आये दिन किसी न किसी पर चिपट जाते हैं. ज्यादात्तर घटनाएँ रामबाड़ा के आस-पास घटित होती थी. ऐसे में उनका वहम दूर करने के लिए हमने तंत्र की सहायता से उन्हें ठीक करना शुरू कर दिया था. जिसके लिए तांत्रिक भी बुलाये गए. लेकिन आये दिन यह घटनाएँ बढती ही जा रही थी ऐसे में मुझे एक आईडिया सूझा और हमने “ऑपरेशन रामबाड़ा” के नाम से एक भुतवा नाटक केदारनाथ में मंचन के लिए तैयार किया! 

तीन टोलियों को विभिन्न भुतवा वत्र पहनाये गए. जिनके मुंह पर भुतवा आकर व खोपड़ी लगाईं गयी व उन्हें एक से बड़ा भूत एक साबित करने की रणनीति बताई गयी. इन आवरणों में भूत बने ये वर्कर्स जब नाटक मंचन के बाद नार्मल हुए तब से उनके दिल में उन लाशों खोपड़ियों और कंकालों का खौफ समाप्त हो गया जो उन्हें आये दिन खुदाई में चलते हुए रास्तों में दिखाई दे रहे थे! धीरे धीरे स्थिति नार्मल हुयी और हमें भी रिलेक्स हुआ कि चलो अब कार्य अपनी गति पकड़ेगा. बाबा केदारनाथ के आशीर्वाद से तब से भूत चिपटने की घटनाएँ निरंतर कम होती गयी और कार्य में भी तेजी आने लगी. उन्होंने कहा कि भूत यकीनन होते होंगे और होते भी हैं लेकिन मानव विलपावर के आगे यह सब बेहद बौने हैं मेरा यकीन मानिए!

सचमुच यह एक ऐसा योधा ही सोच सकता है जिसे मौत की कोई परवाह न हो जिसने मौत को अपनी शैय्या बनाया हो या फिर जिसे समाज की सेवा अपनी उम्र से ज्यादा महत्वपूर्ण लगती हो. कर्नल अजय कोठियाल के इस अविस्मर्णीय प्रयास ने आखिर केदारनाथ को पुनर्निर्मित कर पुनर्जीवित भी किया है और आगामी अक्टूबर 2018 में निम इसे भारत सरकार या उत्तराखंड सरकार के सुपुर्द अपना कार्य समाप्त कर सौंप देगी लेकिन यह भी सत्य है कि एक ऐसे तिलिस्म पर कोई ऐसी डाकूमेंटरी का निर्माण भी हो जिसमें बिषम परिस्थियों में कार्य सम्पादन दिखाया जाय ताकि आने वाली पीढियां उनसे सबक लें!

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