चकबंदी – गरीब क्रांति का गरीब क्या आजीवन गरीब ही रहेगा।
(मनोज इष्टवाल)
एक झोले को कंधे में टांगे एक युवा के कदम शहर से गांव-गांव की धूल फांकते झोले से गोंद पम्पलेट, स्याही, कूची इत्यादि जो बेचारा टकरा तो समझो उसकी शामत हुई, क्योंकि गांव, उजड़ते घर, बंजर खेत-खलिहान और चकबंदी जैसा विकट बिषय यही उसकी जुबान पर होता है। गरीब क्रान्ति की चकबंदी, चकबंदी चिल्लाते-चिल्लाते जिसकी आधी उम्र निकल गयी. घर परिवार के सब खिन्न होकर कहते इस कपिल का क्या होगा! आखिर छोटा भाई और बहन ने तो समय पर नौकरी ले ही है. अब तो इसकी शादी ही नहीं बल्कि बच्चा भी हो गया है! कब यह समझ सकेगा कि इसकी गरीब क्रान्ति के बिगुल के साथ जुड़े सैकड़ों युवक युवतियों के स्वप्न पहाड़ की शक्ल बदलने के लिए भले ही उठ खड़े हुए हैं लेकिन होगा वही जो यहाँ के राजनीतिज्ञ गलियारों में बह रही आबोहवा तय करेगी.
विगत सरकार में जब मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा हुआ करते थे और कृषि मंत्री डॉ. हरक सिंह रावत तब भी चकबंदी समिति का गठन हुआ और पूरे प्रदेश में गणेश सिंह गरीब की चकबंदी के लिए आपस में पाई-पाई जोड़कर जिन युवाओं ने आन्दोलन खड़े किये उन्हें तो दूर उनको बर्षों से इकठ्ठा करने वाले इस युवा को भी सरकारी तंत्र ने धतिया दिया अब जबकि भाजपा सरकार ने पुन: पहल की और कृषि मंत्री सुबोध उनियाल ने इसे गंभीरता से लेकर चकबंदी समिति का गठन किया तब भी ये चेहरे सिर्फ भीड़ का हिस्सा बने रह गए और तंत्र की चाकरी करने वाले चकडैत फिर सक्रियता के साथ शासन प्रशासन व मंत्रियों की परिक्रमा के लिए इकट्ठा होने शुरू हो गए.
मैं यहाँ उस गरीब की बात कर रहा हूँ जिसका नाम कपिल डोभाल है! शायद उसका आज या कल में जन्मदिन भी है या था! सोच रहा था ऐसे में अगर सरकार के मंत्री या यह चकबंदी समिति तोहफे के तौर पर उन्हें भी एक सदस्य के रूप में नामित कर पाती तो यह सिर्फ कपिल नहीं बल्कि पूरे प्रदेश के उन सभी होनहार युवाओं के स्वप्न पूर्ती का प्रतिफल होता जिन्होंने प्रवास में रहकर या पहाड़ में रहकर चकबंदी आन्दोलन को गति देने में अपना योगदान दिया है. ऐसे कई नाम है जिन्होंने चकबंदी के लिए अपने कई साल बर्बाद किये उनमें चाहे पौड़ी के एल मोहन कोठियाल हों या फिर कपिल डोभाल लेकिन हर बार आम गरीब हि हाशिये में क्यों आता है यह बात आज तक समझ से परे है.
यहाँ कपिल की पैरवी मेरे लेख का उद्देश्य नहीं है बल्कि उसके उन कृत्यों को मैंने बेहद करीब से देखा है जो उन्होंने सोये में भी जागते हुए पहाड़ के होते बेतहाशा पलायन को चकबंदी से जोड़कर देखे हैं. कपिल तब यह समय नहीं देखता था कि रात के एक बजे हैं या दिन के 12 बजे हैं वह मुझसे कई सवाल पूछकर राय जानता था कि भाई क्यों न हम में ऐसा जोड़ दें वैसा जोड़ दें. भाई कोई बढ़िया सी फोटो ढूंढकर दो जिसे हम अपने मैनफेस्टो के मुख पृष्ठ पर लगा सकें.
अब चकबंदी पर सरकार की गंभीरता से लग रहा है कि इस बार सरकार हलके मूड में नहीं है क्योंकि भाजपा ने पलायन अपने चुनावी मुद्दे में शामिल किया था अत: यह तय है कि चकबंदी की शुरुआत इन्हीं चाँद महीनों या साल भर में शुरू हो जायेगी और स्वाभाविक सी बात है कि इस समिति का विसात होगा ऐसे में क्यों न सरकार कपिल डोभाल जैसे होनहार शिक्षित युवा को ध्यान में रखकर उसे इस समिति के विस्तार में भागीदार बनाए और उसके उन बेहिसाब सालों का इनाम दे जो उसने चकबंदी के नाम पर गरीब क्रान्ति के लिए जोड़े या बर्बाद किये या फिर क्या यह गरीब क्रान्ति का व्यक्तित्व आजीवन गरीब ही रहेगा!
वो धन्य हो सरकार का की उन्होंने गणेश गरीब जी को भी शामिल कर दिया,
अफ़सोस हुआ की कपिल भाई जो इतने सालों से इस अभियान में जुटे है उन्हें इग्नोर किया गया।
खैर कपिल भाई और गरीब क्रांति अभियान का हमेशा एक ही सपना रहा है कि गणेश गरीब जी का चकबन्दी का सपना पूरा करना है।
कपिल भाई और अन्य साथियों का चकबन्दी के लिए समर्पित योगदान कभी भुलाया नही जा सकता।