शायद इसी दिन के लिए थी चारु चंद चंदोला की यह कविता "उगने दो दूब"।
(मनोज इष्टवाल) साहित्यकार व पत्रकार चारु चंद चंदोला आज हमसे सैकड़ों मील दूर अनन्त में कहीं विलीन हैं लेकिन फिर
Read more(मनोज इष्टवाल) साहित्यकार व पत्रकार चारु चंद चंदोला आज हमसे सैकड़ों मील दूर अनन्त में कहीं विलीन हैं लेकिन फिर
Read moreदेहरादून 21 फरवरी 2020 (हि. डिस्कवर) दून लाइब्रेरी एवं रिसर्च सेंटर तथा लखनऊ स्थित सोसायटी फॉर एंडेंजर्ड लैंग्वेजेज के सहयोग
Read more(दिनेश ध्यानी की कलम से) पहले सोचा कुछ नही लिखूंगा। नाहक कुछ लोग नाराज होते हैं कि तुम साहित्यकार हो
Read moreनागपुर। प्रतिभा किसी परिचय की मोहताज नहीं है और बादलों में धूप की तरह अपना रास्ता खुद ही बना लेती
Read more(मनोज इष्टवाल) विगत दिन देहरादून के एक होटल में आयोजित उत्तरजन टुडे पत्रिका के बेमिशाल तीन साल के सम्मान समारोह
Read more(मनोज इष्टवाल) उत्तरकाशी का सुदूरवर्ती क्षेत्र जिसे रुपिन सुपिन नदी घाटी सभ्यता से जोड़कर भी देखा जाता है और जिस
Read moreपिछले अंक का अंतिम – मेरा ख़ुशी का ठिकाना न रहा शाम तक खबर मिल गयी कि उसके रिश्ते वाले
Read moreपिछले अंक का अंतिम…. मैं उलझा हुआ था चेहरे की ग्लानि व बिछोह के भाव मुख मुद्रा में झलक रही
Read moreशिल्प-दस्तकारी को आर्थिकी का आधार बनाने के सपनों की किताब है ‘शिल्पी’ -डॉ. नन्द किशोर हटवाल पर्यटन और यादगार वस्तुओं का चोली-दामन का साथ है। स्मृति चिह्नों, भेंट-सम्वोंण-सौगातों का व्यवसाय तीर्थाटन-पर्यटन की जमीन पर खूब पनपता है। इन यादगार वस्तुओं में हस्तशिल्प और स्थानीय उत्पाद हों तो कहने ही क्या।पर्यटक उन उत्पादों को यादों के रूप में अपने पास तो रखता ही है, अपने मित्रों और परिजनों को भी सौगात के रूप में देना चाहता है। इससे स्थानीय कलाकारों, शिल्पकारों, कास्तकारों को रोजगार मिलता है और उनकी आय का सृजन भी होता है। उत्तराखण्ड में प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में पर्यटक-तीर्थयात्री देश-विदेश से आते हैं। यहाँ के तीर्थ, ताल, झरने, बुग्याल, फूलों की घाटियाँ, भौगोलिक संरचना, जलवायु, मौसम, मानवशास्त्रीय तथा जैव विविधता, इतिहास, संस्कृति, शुद्धपर्यावरण और शान्ति के कारण यह प्रदेश पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। यहाँ प्राकृतिक संसाधनों का भण्डार है। यह देवभूमि के नाम से भी विख्यात है। पर्यटक और तीर्थयात्री यहाँ खिंचते चले आते हैं और अविभूत होते हैं। शुद्ध पर्यटक-तीर्थयात्री यहाँ आकर पूछते हैं- यहाँ की विशेष चीज क्या है? जिसे कि उपहार के रूप में दिया जा सके। अचानक हम कुछ नहीं बता पाते। किन्हीं चीज-वस्तुओं को पर्यटक तीर्थयात्रियों को उपहार, स्मृति चिह्न, सौगात-सम्वोण के रूपमें बेचना, सुझाव देने के लिए भी हमारे पास विशेष कुछ नहीं होता है। हमें लगता है कि यहाँ ऐसा कुछ है ही नहीं। लेकिन यहाँ पर सैकड़ों की संख्या में ऐसी चीज-वस्तुएँ हैं जिन्हें आप यादगार चिह्न के रूप में पर्यटकों-तीर्थयात्रियों को खरीदने कासुझाव दे सकते हैं, उन्हें बेच सकते हैं। आज के समय में दुनिया के कई देशों में पर्यटन के साथ मिल कर यह उद्योग अच्छा फल-फूल रहा है। इसमें मार्केटिंग की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मार्केटिंग सिस्टम उन्नत और आधुनिक होना चाहिए। वैरायटी इतनी हो कि ग्राहक कुछन कुछ जरूर खरीदे। उत्तराखण्ड में इस प्रकार के उद्यम की अपार सम्भावनाएँ हैं। यह बात मैं नहीं समीक्ष्य पुस्तक ‘शिल्पी’ कह रही है। यह पुस्तक उत्तराखण्ड में शिल्प-कलाओं को एक उद्यम के रूप में स्थापित और विकसित करने का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। पुस्तक के अग्रलेखों में यहाँ के पर्यटन-तीर्थाटन संसाधनों-पर्यटन स्थल, बुग्याल, ताल-झील, ट्रैकिंग रूट, पर्वातारोहण, रिवर राफ्रिंटग आदि की चर्चा की गई है। पुस्तक में उल्लेख है कि उत्तराखण्ड के विभिन्न समुदायों के समाज ने हस्तनिर्मित वस्तुओं का एक भण्डार सैकड़ों वर्षों से खड़ा किया था जिनमेंकुछ विलुप्त होने के कगार पर हैं, कुछ उद्योगों का रूप ले चुके हैं तो कुछ अपने जन्म की स्थिति और शैशव अवस्था में हैं जिन्हें कुटीर उद्योग और बड़े उद्योगों के रूप में पनपाया जा सकता है। पुस्तक में यहाँ के उत्कृष्ट हस्तशिल्प और स्थानीयउत्पादों के फोटोग्राफ के साथ उनका विवरण भी दिया गया है। इस कॉफी टेबल बुक को देखते-पढ़ते हुए सहज ही यहाँ के शिल्प कलाओं के वैभव से परिचित हुआ जा सकता है। पुस्तक में उत्तराखण्ड के प्रस्तर शिल्प, काष्ठ शिल्प, ड्रिफ्रट वुड शिल्प,कोन/छेंती शिल्प, छाल शिल्प, रेशा आधारित शिल्प, रिंगाल तथा बाँस शिल्प, बुराँस तथा बुराँस शिल्प, इंडियन बटर ट्री, घास आधारित शिल्प, रुद्राक्ष तथा काष्ठ मालायें, ताम्र शिल्प, हथकरघा आधारित शिल्प, लौह तथा इस्पात शिल्प,पारम्परिक वाद्ययंत्र, पारम्परिक आभूषण, पारम्परिक लोक वस्त्र, पारम्परिक मिठाईयाँ, जड़ी बूटियाँ तथा औषधियाँ, मोम शिल्प, कागज तथा कागज लुग्दी शिल्प, क्रोशिया क्राफ्ट, स्थानीय अनाज तथा उत्पाद, स्थानीय दालें तथा उत्पाद,क्राफ्ट पेंटिंग्स, ग्रीटिंग कार्ड तथा डायरियाँ, लोक/पारम्परिक संगीत, पेंटिंग तथा पोस्टर्स, फोटो, स्लाइड्स तथा डिजिटल उत्पाद, एल.ई.डी. शिल्प, ऐंपण पेंटिंग्स, ताजे तथा सूखे गुलदस्ते, सूखी तोरी, लौकी एवं उत्पाद शिल्प, पॉलीथीन मोल्ड्स,पारम्परिक व्यंजन ; खाद्य पदार्थ, प्राचीन हस्तलिपियाँ/ पाण्डुलिपियाँ, खिलौने, खुंखरी तथा तलवारें आदि का चित्रात्मक विवरण प्रस्तुत किया गया है। पुस्तक में स्थानीय स्तर पर निर्मित वाल हैंगिंग्स, मन्दिरों की प्रतिकृतियाँ, टोकरी, टोपी तथाचाबी के छल्ले, दवात, कलम, पाटी, पटेले, मूर्तियाँ, पत्थर, मिट्टी, लकड़ी आदि के खूबसूरत फोटोगाप्रफ और इनके विवरण हैं। कह सकते हैं कि उत्तराखण्ड के यादगार चिह्नों की एक यादगार किताब है ‘शिल्पी’। पुस्तक में बहुत छोटे-छोटे आइडियाज हैं जिनके द्वारा आम आदमी अपना कुटीर उद्यम शुरू कर सकता है। यथा उत्तराखण्ड के परम्परागत भोज्य पदार्थोंऔर मिठाइयों को स्थानीय विशेष मिठाइयों के नाम पर पर्यटकों को बेचा जा सकता है। टिहरी की सिंगोड़ी, अल्मोड़ा की बाल मिठाइयाँ और अरसा-रोट को भी यहाँ के विशेष खाद्य के रूप में ब्रांडिंग की जा सकती है। इनकी पैकेजिंग-मार्केटिंग कोविकसित किया जा सकता है। पुस्तक में हस्तशिल्प और स्थानीय उत्पादों के विलुप्ति के कारणों की पड़ताल भी की गई है। इसका मुख्य कारण ग्रामीण तथा सुदूर क्षेत्रों के पर्वतीय गाँवों में उनकी पहचान और बाजार की पहुँच न होना और उनकेविकास की ठोस नीति का न होना बताया गया है। पुस्तक में सम्भावना व्यक्त की गई है कि उत्तराखण्ड राज्य बनने के पश्चात ग्रामीण संचार व्यवस्था और अवस्थापना सुविधाओं के विकास, बढ़ते पर्यटन और प्रतिव्यक्ति आय के मानकों केकारण हस्तशिल्प और स्थानीय उत्पादों को पुनर्जीवन दिया जा सकता है। ‘उत्तराखण्ड : विविध एवं सृजनात्मक समाज’ शीर्षक से पुस्तक में प्रो. शेखर पाठक का सात पन्नों का अग्रलेख प्रकाशित है। इसमें उत्तराखण्ड का सृजन, वंशवादी इतिहास, गोरखा शासन, ब्रिटिश शासन, विभाजन एवं सांस्कृतिकरण, राष्ट्रवाद काउदय और विकास, सांस्कृतिक बहुलवाद और नंदादेवी शीर्षकों के अंतर्गत शिल्प- कलाओं के परिप्रेक्ष्य में उत्तराखण्ड के इतिहास, भूगोल, मानव विज्ञान, राज्य गठन, समाज संस्कृति तथा समीक्ष्य पुस्तक पर महत्वपूर्ण टिप्पणी की गई है। पुस्तक में उन कलाकारों तथा शिल्पकारों की सूची भी दी गई है जो वर्तमान में ये कार्य कर रहे हैं तथा इन शिल्प-कलाओं को विकसित करने में उनकी गहन दिलचस्पी है। पुस्तक में अभिस्वीकृति शीर्षक के अंतर्गत उन लोगों की एक सूचीभी है जिन्होंने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इस पुस्तक को तैयार करने में सम्पादकों/लेखकों को योगदान दिया तथा वे इस क्षेत्र में कहीं ना कहीं कुछ जानकारी रखते हैं। यह सूचियाँ इस क्षेत्र में उद्यम स्थापित करने वालों को मददगार साबित होसकती हैं। वस्तुतः यह पुस्तक ‘शिल्पी’ समूह द्वारा उत्तराखण्ड के हस्तशिल्प तथा स्थानीय उत्पादों को 40 अध्यायों के अन्तर्गत लिपिबद्ध तथा 7 खण्डों में इन्हें श्रेणीबद्ध किये गये दस्तावेज का प्रथम खण्ड है। समीक्ष्य पुस्तक इन सात खण्डोंका प्रथम खण्ड है। पुस्तक में इन हस्तशिल्प तथा स्थानीय उत्पादों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया। पहला- प्राचीन लुप्तप्राय उत्पाद तथा हस्तशिल्प, दूसरा-वर्तमान में उपलब्ध तथा विकसित उत्पाद तथा तीसरा-नवीन/नवोन्मुखी हस्तशिल्पतथा स्थानीय उत्पाद। पुस्तक के अंत में शेष छः खण्डों की झलक भी दी गई है. यह पुस्तक कॉफी टेबल बुक है, अतः पुस्तक के फोटोग्राफ यहाँ की शिल्प कलाओं के बारे में काफी कुछ कह रहे हैं। ‘जो दिखता है वो बिकता है’पुस्तक का ध्येय वाक्य है और इसी के अनुरूप पुस्तक में यहाँ के हस्तशिल्प को खूबसूरती केसाथ दिखाने के खबसूरत प्रयास दिखते हैं। बढ़िया डिजायनिंग और रंग-संयोजन पुस्तक पर चार चांद लगा रहे हैं। इस पुस्तक का उद्देश्य सिर्फ सूचनाएँ और ज्ञान देना नहीं बल्कि लुप्त होते जा रहे स्थानीय उत्पादों को उद्यम के रूप में स्थापित करना, उसे बड़ा बाजार देना और उद्यमियों को मदद पहुँचाना है। इन कलाकृतियों, हस्तशिल्प एवं स्थानीयउत्पादों को एक सृजनात्मक एवं आयसर्जक गतिविधि के रूप में विकसित किया जा सकता है। इन स्थानीय कलाओं एवं शिल्प को बढ़ावा देने से न केवल ग्रामीण स्वावलम्बी हो सकते हैं अपितु वे अपने संसाधन, संस्कृति तथा वातावरण को भीबचा सकते हैं। इससे निर्धन, साधनविहीन, सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में अज्ञात परन्तु कुशल कारीगरों को पहचान और रोजगार मिल सकेगा। यह प्रदेश में हो रहे पलायन को रोकने में भी सहायक हो सकता है। इनमें कई वस्तुओं को पर्यटन तथा तीर्थाटनके लिए ब्राण्ड के रूप में भी विकसित किया जा सकता है। ‘यदि कला और शिल्प को व्यापारिक/ वाणिज्यिक स्वरूप न दिया गया तो वे समाप्त हो जायेंगे।’ यह सूक्त वाक्य इस पुस्तक की आत्मा है। पुस्तक में पूर्व राष्ट्रपति कलाम साहब का यहवाक्य- ‘कला को मूल्यवान बनाओ और प्रदर्शित करो’ सिर्फ सजावटी उद्धरण नहीं बल्कि इस पुस्तक का केन्द्रीय स्वर है।
Read moreदेहरादून 3 मार्च 2018 (हि. डिस्कवर) चौंक गए न आप! मुझे पता था जैसे ही आप न्यूज़ टाइटल पढेंगे तो
Read more