विश्व प्रसिद्ध बूढाकेदार गाँव की वह महिला रामलीला! जिसने महिला सशक्तिकरण का पिछली सदी में ही पेश की अनूठी मिशाल!
विश्व प्रसिद्ध बूढाकेदार गाँव की वह महिला रामलीला! जिसने महिला सशक्तिकरण का पिछली सदी में ही पेश की अनूठी मिशाल!
( मनोज इष्टवाल)
महिला सशक्तिकरण की भले ही इस सदी में बड़ी बड़ी बातें होती रही हैं लेकिन पिछली सदी से ही उत्तराखंड महिला सशक्तिकरण के नाम से पूरे देश व दुनिया में अपना नाम रोशन कर चुका है. भले ही महिला सशक्तिकरण क्या है यह परिभाषा टिहरी जिले के बूढाकेदार गांव में रामलीला का मंचन करती ये लडकियां आज भी न जानती हों लेकिन आज से लगभग 37 बर्ष पूर्व महिला सशक्तिकरण की मिशाल पेश करने वाली इस गाँव की कई लड़कियों ने मिलकर ऐसा कर दिखाया कि पुरुष समाज दांतों तले अंगुली दबाए बिना रह न सका। वर्ष 1980 में गुड्डी नेगी, रमा देवी और दुर्गी बहुगुणा, सूचि सेमवाल, शैला देवी, संगीता बहुगुणा आदि लड़कियों ने क्रमशः राम, लक्ष्मण, सीता, रावण, हनुमान व मेघनाद के पात्र की भूमिका निभाई वहीँ सम्पूर्ण रामलीला में एक भी पात्र पुरुष नहीं था। यह रामलीला तब से अब तक मात्र 7 बार ही हो पाई.
महिलाओं द्वारा बूढ़ाकेदार में रामलीला मंचन की बात भले ही उस समय में टिहरी जनपद के कुछ इलाकों में आग की तरह फैली हो लेकिन इसका समुचित प्रचार प्रसार न होने के फलस्वरूप व महिला रामलीला कमेटी की ज्यादातर कलाकारों के विवाह बंधन में बंध जाने के कारण यह रामलीला आगे नहीं बढाई जा सकी है. टिहरी जनपद का बूढाकेदार एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। यहां की खासियत यह है कि देश के अन्य हिस्सों में जहां आश्विन माह में दशहरे के समय रामलीला का आयोजन होता है वहीं बूढाकेदार में मागशीर्ष के महीने में रामलीला का मंचन किया जाता है। शुरूआत में यहां पर कुछ सालों तक लडकों ने रामलीला का मंचन किया, लेकिर धीरे-धीरे गांव के युवा रोजगार की तलाश में बाहर चले गए। गांव में लड़कों की कमी होने लगी, जिस कारण कई सालों तक गांव में रामलीला का मंचन नहीं हो सका। ग्रामीणों को भी इसका दु:ख सालता रहा। जब सालों से गांव में रामलीला नहीं हुई तो गांव की पढी-लिखी लडकियां इसके लिए आगे आई । इसके लिए ग्रामीणों ने उनका भरपूर सहयोग किया और वर्ष 1980 में अवतार सिंह नेगी के सहयोग से इसकी शुरूआत हुई। रामलीला के पहले मंचन में ही लडकियों ने अपने अभिनय की छाप छोड़ी और तब से आज तक सात बार लडकियों ने रामलीला का मंचन किया है।
उत्तराखंड ही नहीं बल्कि विश्व का यह पहला और शायद एकमात्र गांव है जहां लड़कियां रामलीला का मंचन करती है। लड़कियों की इस रामलीला को देखने के लिए जिले से बाहर के लोग भी यहां पहुंचते थे। लडकियों की रामलीला न केवल क्षेत्र में बल्कि राज्य के अन्य क्षेत्रों में प्रसिद्व है। इस समय मंगशीर की दीपावली पर गांव में लड़कियों द्वारा रामलीला मंचन किया जा रहा है।