मेरा पहला प्यार..(फर्स्ट अफेयर ऑफ़ माय लाइफ).. आठवां एपिसोड…
मेरा पहला प्यार..(फर्स्ट अफेयर ऑफ़ माय लाइफ)..
आठवां एपिसोड…

हे भगवान् ..मैं तो सोच कर कुप्पा हो रहा था कि मेरी लव स्टोरी के सारे राज मेरे सीने में ही दफ़न हैं. लेकिन सच कहा किसी ने साली दारु होती ही बुरी बला है. मेरे लिए तो सच में बुरी है…एक ढक्कन पीने पर ही मदहोश हो जाता हूँ…आज मेरा भांजा संजय सुन्द्रियाल मेरा सातवाँ अध्याय पढने के बाद जोर-जोर से हंसने लगा और बोला मामू मैं जानता हूँ कि कौन थी वो….?
मैं समझ गया कि वो मेरा बेवकूफ बनाकर मुझसे ही राज उगलना चाहता है…भला मुझसे और मेरे राज ये कैसे संभव हो सकता था. लेकिन उसने एक ऐसी बात कह दी कि मुझे पीछे पलटकर आश्चर्यचकित होना पड़ा.
उस समय में चुप रहा क्योंकि सारे लोग बैठे थे अभी-अभी वक्त मिला तो उसे यूँही छेड दिया कि गप्पें मत हांका कर. .मेरी जुबां से कभी ऐसा शब्द बाहर निकल ही नहीं सकता ..वह फिर ही ही ही ही करके हंसा और बोला- मामू एक दिन आपने जरा चढ़ा रखी थी उस दिन मैंने आपसे सिर्फ इतना पूछा था कि-मामा आपके जमाने में भी प्यार प्रेम हुआ करता था तो आपने एक तोते की भाँती सारी कहानी सुना दी…!अब अपनी इतनी बड़ी गलती पर बाल नोंचने के अलावा बचा भी क्या था…वैसे भी सिर के बाल कम हो गए हैं…!
दिल्ली आये दो महीने हो गए थे इन दिनों सिर्फ नौकरी के लिए प्रयास कर रहा था..इवनिंग कालेज में दाखिला भी ले ही लिया था…गर्मियां अपने चरम पर थी..दिन में सब सोया करते थे लेकिन मुझे आदत नहीं थी..मैं जाफरी की तरफ कुर्सी लगाकर बैठ जाया करता था और गर्म-गर्म हवाओं का चुम्बन लेता रहता. नाक से नक्सार भी आने लगी थी..पहली बार इतनी गर्मी जो झेल रहा था…अब तक मेरे शशि काले और दो एक मित्र और बन गए थे..वहीँ हिमाचल मूल की एक बाला जिसकी शक्ल मेरे प्यार से मिला करती थी उसके प्रति भी आँखों में खुमारी सी घूमनी शुरू हो गयी थी..उसे जब भी देखता तो वह अपनी बड़ी बड़ी खूबसूरत आँखों से मुझे निहारती और एक खूबसूरत हंसी में सब कहकर मेरे दिल में झनझनाहट पैदा कर देती थी..आखिर गॉव का भोला भाला लड़का दिल्ली की मतवाली छाल में भला कैसे लंगड़ी नहीं खाता लेकिन यार वो जब भी पास आती तो मन डोलने लगता..जब फुर्र हो जाती तो अपना प्यार याद आ जाता फिर आत्मग्लानि होती और सोचता कि मेरा ऐसा सोचना भी पाप है..
एक दोपहर वह आई और मुझसे बोली संजू के मामा आप दिन में सोते नहीं क्या? …यहाँ बैठकर क्या ताकते रहते हैं..उसके ये शब्द शंकुचित और दबे शब्दों में सजे हुए थे जिनमें गहरा अहसास छुपा हुआ था..संजू (संजय बहुगुणा) तब बहुत छोटा लेकिन बेहद चालाक और शरारती हुआ करता था.
उसने पहली बार मुझसे बात की थी वह हमारे पड़ोस में यानि बीना,लज्जू और नीटू के घर आया करती थी उनकी मित्र थी वो..! .उसकी आवाज में अजब ही कशिश थी मेरी तो माने घिग्घी सी बांध गयी हो.. पहली बार दिल्ली की एक हसीं बाला ने मुझसे बात की थी..फिर भी मैंने साहस करके कह ही दिया मुझे नींद नहीं आती…वह मुस्कुरा कर बोली- आप बहुत स्वीट हो..और बहुत भोले भी…! इतना कहकर वह चली गयी..मैं जाने कितनी देर तक उस अहसास के झंझावत में उलझा अपने आप हँसता रहा ..मुझे क्या पता था कि संजू सब कुछ देख रहा था. जैसे ही चार बजे दीदी ने चाय की प्याली सरकाते हुए कहा- भुला नौकरी त लगदी नी पर हाँ तखम बैठिकी नौन्युं थैं देखणी र…( भाई नौकरी तो तेरी लगती नहीं है लेकिन यहाँ पर बैठकर लड़कियों को देखता रह.) मैंने दीदी को कहा – मैं किसी को जानता नहीं और तू…?
फिर दीदी ने बताया कि संजू कह रहा था कि उस हिमाचली लड़की से मामा खूब गप्पें लड़ा रहा था और उसके जाने के बाद मामा अपने आप ही हंस रहा था..खूब हाल है तेरे.!
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मुझे संजू पर गुस्सा आया लेकिन करता भी क्या …पहली बार किसी देशी लड़की से बात की थी वह चोरी भी पकड़ी गयी…अब तक जीजाजी भी ऑफिस से आ गए और मुझसे बोले तू कल छत्तरपुर चले जाना वहां एक फ़ार्म में मैंने तेरे लिए नौकरी की बात की है. मैं खुश हुआ की चलो दोहरी ख़ुशी मिली…
मुझे अपना गाँवअपने देबता और अपना प्यार बहुत याद आया…मैंने अपने इष्ट का नाम सुमरण किया और कल का बेताबी से इन्तजार करने लगा..!
दूसरे दिन सुबह से ही अपना घूँघट ओड़ लिया था जैसे मुझे कह रहे हों..कि परेशान मत हो…हम तुम्हारे साथ हैं..मैं सफदरजंग टर्मिनल से बस में बैठा और जा पहुंचा फ़ार्म हाउस …!
मैं सोचा जाने क्या होता होगा फार्म हाउस में…करीब कई एकड़ में फैला यह मुर्गी फ़ार्म था हर ओर से कुकू-कुकू टे..तैं की आवाज और उनके मल से निकली भयंकर बदबू..! खैर वहाँ पहुंचा इंटरव्यू हुआ और मुझे छूटते ही मेनेजर बना दिया गया…चार चौकीदार एक मुनीम और करीब 20 हजार मुर्गी.वेतन साढ़े चार सौ रुपये महिना पगार!
मेरे पर जमीन पर नहीं थे.उस जमाने में साढे चार सौ रुपये अध्यापकों का वेतन हुआ करता था शाम को घर लौटते समय मैं लगभग 8 टूटे अंडे का जूस पन्नी में भरकर घर लाया जिसकी भुर्ची बनाई…रात्री पहर को आज कई महीनो बाद घर के लिए चिट्ठी लिखने बैठा..आदरणीय पिताजी लिखना था और लिख बैठा…मेरे दिल की धड़कन ..मेरा प्यार …
अरे ये क्या ….कागज़ पर उकेरे ये शब्द पीछे खड़े जीजाजी की नजर में पड गए और वो हंसकर बोले – हाँ बे घर के लिए चिट्ठी लिख रहा है या कहीं और…पूछो मत दिल पर क्या बीती होगी तब…सच पूछिए मेरे हिदर कांप गए…(contd..9)
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