कुठार (बिछले ढांगू ) में धीरेन्द्र भंडारी की चौखट तिबारी में काष्ठ कला उत्कीर्णन ।
*ढांगू गढ़वाल , हिमालय की तिबारियों पर अंकन कला -16
*उत्तराखंड , हिमालय की भवन (तिबारी ) काष्ठ अंकन लोक कला ( तिबारी अंकन ) – 25।
संकलन – भीष्म कुकरेती

कुठार बिछले ढांगू का सम्पन , उर्बरायुक्त , समृद्ध गाँव आज भी मन जाता है। गंगा तट के निकट होने से भूमि ुतबर थी व कर्मठ किसानों ने कुठार को नाम दिया। निकटवर्ती गांव हैं हथनूड़ , तैड़ी , क्यार , दाबड़ आदि ।
इस समृद्ध गाँव व कर्मठ किसानी गाँव से इस लेखक को दो तिबारियों की है। कुठार में धीरेन्द्र भंडारी की तिबारी भी अब जीर्ण शीर्ण अवस्था में है। तिबारी दुभित्या मकान की पहली मंजिल पर है।
तिबारी में चार स्तम्भ /खम्भे , सिंगाड़ /columns हैं व तीन मोरी /खुले द्वार हैं। तिबारी चौखट है व तिबारी /बैठक में कोई मेहराब /चाप / तोरण /वृत्तखंड /arch नहीं है।
किनारे दो स्तम्भ हैं जो प्राकृतिक कलायुक्त /नक्काशीदार कड़ी से दिवार से जुड़े हैं। प्रत्येक स्तम्भ उप छज्जे के ऊपर पाषाण आधार पर टिके हैं। अन्य तिबारियों जैसे इस तिबारी के स्तम्भ में आधार पर कुम्भी , उर्घ्वगामी पदम् पुष्प दल या डीला नहीं हैं। अपितु सीधी हियँ व इन स्तम्भों पर ज्यामितीय व प्र्रीति कला अंकन (natural and geometrical motifs ) है। कहीं भी मानवीय /पशु /पक्षी (Figural motifs ) नहीं मिलते हैं यहाँ तक कि कोई शगुन प्रतीक अलंकरण अंकन भी नहीं मिलता है।
स्तम्भ ऊपर स्तम्भ शीर्ष मुंडीर कड़ी से मिलते हैं मुंडीर पर भी कोई विशेष अंकन आज नहीं दीखता है। किन्तु प्राकृतिक अलंकरण अवश्य रहा होगा (natural motif ) . स्तम्भ शीर्ष कड़ी दास पट्टिका से मिल जाती है जो छत को आधार देती है।
धीरेन्द्र भंडारी की तिबारी साधारण कला की तिबारी है। मध्य हिमालय वास्तु कला ज्ञाता मनोज इष्टवाल व पुरातन गढ़वाली शब्द ज्ञाता महेशा नंद इस स्ट्रक्चर को निमदारी की श्रेणी में रखना पसंद करते हैं