छात्र संघ चुनाव में एबीवीपी का बंठाधार करवाने पर भाजपा के संगठन महामंत्री संजय कुमार का पता साफ। अजय कुमार ने संभाला दायित्व।

(मनोज इष्टवाल)

1-भाजपा प्रदेश कार्यालय 2- नवनियुक्त महामंत्री संगठन अजय कुमार 3-हटाए गए महामंत्री संगठन संजय कुमार।

यों तो आरोपों की पैविस्त बहुत लम्बी है लेकिन निकालने के लिए एक ही बहाना बहुत हुआ। प्रदेश भाजपा के संगठन महामंत्री को श्राद्ध पक्ष में ही चलता कर देना मामूली बात नहीं है। यह भाजपा की केंद्रीय कार्यकारिणी द्वारा लिया ग़या अप्रितम फैसला कहा जा सकता है क्योंकि प्रदेश भाजपा के नेता मंत्री व संगठन के लोग कारगुजारी देखते हुए ही चुपचाप तमाशबीन बने रहे, इसके पीछे संगठन महामंत्री की बड़ी पहुंच मानी जा रही थी लेकिन आगामी 2022 के विधान सभा चुनाव व वर्तमान में त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव के मध्य नजर पार्टी को यह साफ नजर आने लगा था कि छोटे स्तर पर यह धड़ेबंदी चलती रही तो बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। यही वजह भी रही कि भाजपा को अपने विवादास्पद महामंत्री संगठन संजय कुमार को ऐन श्राद्ध पक्ष में तब हटाना पड़ा जब त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव की आचार संहिता की घोषणा हुई।

भाजपा के प्रदेश महामंत्री संगठन संजय कुमार यों तो एक महिला द्वारा “मी टू” प्रकरण में लिप्त पाये जाने के साथ ही इस पद से अस्थायी तरीके से पूर्व में ही जांच प्रक्रिया के कारण हटाये गए थे लेकिन अब तक इन पर कोई उचित कार्यवाही नहीं हो पाई थी। सूत्रों के हवाले से प्राप्त जानकारी के अनुसार संजय पर गाज गिरने का सबसे बड़ा कारण यह रहा कि छात्र संघ चुनाव के दौरान एबीबीपी द्वारा कई बार और कई जगह भाजपा जिलाकार्यकारिणी के सदस्यों पर उन्हें हराने का आरोप लगाए जा रहे थे वे एबीवीपी की जगह अन्य के लिए चुनाव प्रचार की बात की जा रही थी लेकिन संगठन के कान जूं तक नहीं रेंग रही थी। सूत्रों का मानना है कि पदच्युत रहकर भी संजय यह सब करवा रहे थे जिस से प्रदेश में उनकी अहमियत बनी रहे।

एबीवीपी द्वारा विभिन्न माध्यमों से जब यह शिकायत केंद्र व संघ मुख्यालय नागपुर पहुंची तो उन्हें जबरन संजय कुमार को बाहर का रास्ता दिखाना पड़ा व उनकी जगह अजय कुमार को प्रदेश महामंत्री संगठन की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

ज्ञात हो कि अजय कुमार पूर्व में उत्तर प्रदेश भाजपा के पश्चिमी उत्तरप्रदेश के संगठन मंत्री रह चुके हैं व साथ ही आरएसएस के प्रचारक भी रहे हैं। अजय कुमार के महामंत्री भाजपा संगठन (उत्तराखण्ड) बनने के बाद अब यह तय समझा जा रहा है कि पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त पाये गए पदाधिकारियों का भी सफाया हो सकता है।

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