हीरा सिंह गढ़वाली!– हिमालय का अनमोल 'हीरा', हर कोई है हीरे की सादगी, व्यवहार और अतिथि देवाः भव का कायल है..।

ग्राउंड जीरो से संजय चौहान !(हिमालय दिवस विशेष)

जी हाँ……आज आपको हिमालय दिवस पर ग्राउंड जीरो से ऐसे अनमोल हीरे की दास्तान से रूबरू करवाते हैं जिनका संघर्ष चाय की दुकान से शुरू होते हुये एक सफल ट्रेकिंग गाइड तक जा पहुँचा। हिमालय के प्रति सदैव चिंतनशील और जानकारी का अथाह भंडार लिए आज देश के कोने कोने से हर कोई इस हीरे की सादगी, व्यवहार और अतिथि देवो भव का कायल है। नंदा राजराजेश्वरी की वार्षिक लोकजात यात्रा में वेदनी बुग्याल में एक बार फिर हिमालय के अनमोल हीरे से मुलाकात हुई। वेदनी बुग्याल में आयोजित रूपकुण्ड महोत्सव के समापन के बाद हीरा वेदनी बुग्याल में प्लास्टिक और अन्य कूड़े को एकत्रित कर रहा था तो सहसा ही नजर हीरे पर पड़ी। मन में यही ख्याल आया की कोई हिमालय के प्रति इतना प्यार भी करता है। उसे अपने से ज्यादा हिमालय की चिंता है। उस हीरे का असली नाम है हीरा सिंह बिष्ट ‘गढवाली ‘..!

संघर्षमय रहा जीवन, ट्रैक पूरा करने के बाद पर्यटक हीरा को जादू की झप्पी देना नहीं भूलते…..

हीरा गढवाळी के साथ लेखक संजय चौहान।

वाण गाँव के ट्रेकिंग गाइड हीरा सिंह बिष्ट ‘गढवाली विगत 10 बरसों से ट्रेकिंग का कार्य कर अपने 8 सदस्यीय परिवार की हर जिम्मेदारी को बखूबी निभाता आ रहा है। 6 साल पहले पिताजी की असमय मृत्यु नें हीरा को अंदर तक हिला कर रख दिया था क्योंकि हीरा अपने पिताजी के बेहद करीब था। परिवार की जिम्मेदारी नें हीरा को कभी टूटने नहीं दिया। धीरे धीरे हीरा नें अपने आपको संभाला और एक बार फिर से ट्रेकिंग को रोजगार का जरिया बनाया। आज हीरा के पास मुंबई से लेकर राजस्थान, गुजरात, बैंगलौर, मध्य प्रदेश, बंगाल सहित दर्जनों प्रदेशों के ट्रेकर, ट्रेकिंग के लिए पहुंचते हैं और ट्रैक पूरा करने के बाद हीरा को जादू की झप्पी देना नहीं भूलते। वाण गाँव मे हीरा नाम एक दर्जन से अधिक लोगों के हैं। इसलिए हीरा नें अपना नाम हीरा सिंह बिष्ट ‘गढवाली’ रखा है। और सब लोग हीरा को इसी नाम से जानते और पहचानतें हैं।

– हिमालय जैसा हौंसला!

हिमालयी बुग्यालों में पर्यटकों का छोड़ा कूड़ा उठाता यह हिमालय पुत्र हीरा गढवाळी।

बेहद साधारण परिवार से तालुक रखने वाले हीरा का बचपन बेहद कठिनाई में बीता। बस जैसे तैसे आठवीं तक की पढ़ाई की। अब आगे पढ़ाई करने के लिए घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। हीरा के पिताजी छोटा मोटा कार्य कर बस किसी तरह से परिवार का गुजर बसर करते थे। हीरा आगे पढना चाहता था तो उसने 8 वीं की ग्रीष्मकालीन अवकाश में सैलानियों को घूमाना शुरू किया। जिससे होने वाली आमदनी से अपनी 12 वीं तक की पढ़ाई जारी रखी साथ ही अपने भाइयों और बहन की पढ़ाई में भी हाथ बटाया। 12 वीं के बाद पिताजी को अच्छा रोजगार मिलने से बीए की पढ़ाई हीरा नें देहरादून से की।

— हिमालय के प्रति प्यार खींच लाया वापस, हिमालय की कंदराओं में ढूंढा रोजगार ..।

देहरादून में हीरा का कभी भी मन नहीं लगता था। उसे तो बस अपना पहाड़ ही प्यारा लगता था। बीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद हीरा नें देहरादून में रोजगार ढूँढने की जगह वापस अपने गाँव जाने का फैसला किया। गाँव आने के बाद रोजगार के साधन न होने से हीरा मायूस नहीं हुआ। सबसे पहले हीरा नें चाय की दुकान खोली, फिर छोटा सा ढाबा, और पर्यटकों को रहने की व्यवस्था का बोर्ड दुकान के बाहर लगाया। जिससे हीरा की अच्छी खासी आमदनी होने लगी। फोटोग्राफी के शौक ने हीरा को इलाके का फोटोग्राफर बना दिया था। हीरा शादी ब्याह से लेकर अन्य आयोजनों में फोटोग्राफी करने लगा। इस दौरान हीरा नें एक कम्प्यूटर खरीद लिया और कुछ छोटे मोटे कार्य करने लगा। आज हीरा काॅमन सर्विस सेंटर भी चलाता है। जिसमें गांव के लोगों के आवश्यक प्रमाण पत्र बनते हैं। यही नहीं हीरा बुरांश के फूलों से बुरांश का जूस निकालने का कार्य भी करता है।

– मन में बसा है हिमालय, आज हैं सफल ट्रैकिंग गाइड ..।

हीरा का मन दुकान में ज्यादा नहीं लगा उसने अपने छोटे भाई नरेंद्र को दुकान पर बैठाया और ट्रेकिंग में हाथ अजमाने की सोची। ट्रैकिंग के लिए सामान की आवश्यकता थी लेकिन आर्थिक तंगी आडे आ गई। थक हारकर बैंक से 35 हजार का कर्ज लिया और पांच टैंट, 10 सिलिपिंग बैग और अन्य सामान खरीदा। जिसके बाद शुरू हुआ हीरा का असली ट्रेकिंग अभियान। शुरू शुरू में दिक्कतों का सामना हुआ लेकिन जो ग्रुप एक बार आया उसने दूसरे ग्रुप की बुकिंग हीरा को दिला दी और हीरा का ट्रेकिंग गाइड का कार्य चल निकला। आज हीरा ट्रेकिंग से एक सीजन में अच्छा खासा मुनाफा कमा लेता है। साथ ही 30 से अधिक लोगों को रोजगार भी दिलाता है। हीरा ट्रेकिंग के जरिए सैलानीयों को बेदनी बुग्याल ,ऑली बुग्याल, रूपकुंड, ब्रह्मताल, भैंकलताल, फूलों की घाटी, पिंडारी ग्लेशियर सहित कई पर्यटक स्थलों का भ्रमण कराता है। जिसमें सैलानियों को स्थानीय परम्परागत भोजन खिलाता है साथ ही पहाड़ की लोकसंस्कृति से रूबरू करवाता है। हीरा पर्यटकों को पहाड़ के परम्परागत खेल, पत्थर-पिडो, बट्टी, लुकाछुपी खिलाते हैं जिसे पर्यटक बेहद पंसद करते है।

हीरा सिंह बिष्ट ‘गढवाली’ से हुई लंबी गुफ्तगु पर बकौल हीरा मुझे बचपन से ही पहाड़, बुग्यालो से प्यार रहा है। पहाड़ों मे एक अजीब सा आकर्षण हो जो अपनी ओर खींच ले जाता है। मैंने देहरादून मे पढ़ाई के दौरान निश्चय कर लिया था कि पहाड़ों में ही रोजगार के अवसर सृजन करूँगा। मुझे खुशी है कि मेरा फैसला सही था। पर्यटक हमारे अतिथि हैं। हमें कभी भी उनके साथ धोखा नहीं करना चाहिए। ना ही मजबूरी का फायदा उठाना चाहिए। अगर वे खुश होकर जायेंगे तो और लोगों को हमारे पास भेजेंगे। पैंसा कमाना ही सबकुछ नहीं है। व्यवहार ही सबसे बड़ा परिचय होता है।

वास्तव मे देखा जाय तो यदि सच्चे मन, लगन और ईमानदारी से कोई कार्य किया जाय तो सफलता जरूर मिलती है। हिमालय मे रहकर भी रोजगार सृजन किया जा सकता है। हीरा नें दिखा दिया की इस भीड़ में वो क्यों सबसे अलग है और अपनी चमक बिखेरे हुये है। देश के कोने कोने से आने वाले सैलानीयों के लिए इस अनमोल हीरा का विकल्प नहीं है। तभी तो वे हर बार माँ नंदा और लाटू देवता की थाती के अनमोल ‘हीरे’ के संग ट्रेकिंग का लुत्फ उठाते हैं। खुद पहाड़ों की खाक छानने वाले प्रख्यात फोटोग्राफर और पत्रकार स्व. कमल जोशी भी हीरा के मुरीद बन गये थे।

अगर आप भी हिमालय के अनमोल ‘हीरे’ संग हिमालय के बेदनी बुग्याल ,ऑली बुग्याल, रूपकुंड, ब्रह्मताल, भैंकलताल, फूलों की घाटी, पिंडारी ग्लेशियर सहित कई पर्यटक स्थलों का ट्रेकिंग करना चाहते हैं तो हीरा सिंह बिष्ट ‘गढवाली’ से इन नंबर पर संपर्क कर सकते हैं….7895165848 और 9756480219

इस लेख के जरिए हिमालय के अनमोल ‘हीरे’ हीरा सिंह बिष्ट ‘गढवाली’ को उनके हिमालय के प्रति प्रेम, हिमालय की चिंता, पर्यावरण की चिंता व हिमालय में रोजगार सृजन की मशाल जलाये रखने को एक छोटी सी भेंट…..।

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