मालू,ग्वीराल व सकीना के फूलों का यह कैसा गठजोड़ है।

(मनोज इष्टवाल)


यह सचमुच आश्चर्यजनक है कि सकीनि या सकीना के फूल ज्यादात्तर गुलाबी रंगत के दिखाई देते हैं लेकिन इन्हें सुर्ख लाल देखना अपने आप में अद्भुत है। उत्तराखण्ड के सुप्रसिद्ध लोकगायक नरेन्द्र सिंह नेगी के एक गीत की इस पंक्ति को मैं अक्सर भ्रामक मानता था जिसमें उन्होंने सकीना के फूल की तुलना करते हुए लिखा है “मालू ग्वीरालू का बीच खिन्नी सकीनि अहा, गोरी मुखड़ी मा हो लाल होंटडी जनि अहा।” संशय यह होता था कि सकीना का फूल तो गुलाबी रंगत का होता है फिर के सकीना का फूल यह श्रृंगारित होकर लाल कैसे हो गया। अब जबकि भ्रम दूर हो गया है तब सोचा क्यों न सकीना के फूल जिसे सकीनि भी कहते हैं पर एक लेख लिखा जाए।

ग्वीराल के फूल फोटो-बबिता नेगी।

दरअसल इन पंक्तियों में खिन्नी यानि खिन्ना के फूल का भी जिक्र हुआ है जो अंग्रेजी वर्णावली शब्दों की तरह यहां पर भावार्थ समझते समय साइलेन्स हो गया है। खिन्नी का अर्थ हम गाने को बोल में हम अक्सर खिलना समझ लेते हैं जबकि इस बार जब यह सब आंखों ने देखा तो आंखें भी विश्वास नहीं कर पाई। दरअसल यह अजब संयोग मुझे इस बार की गांव भ्रमण यात्रा पर जाते समय दिखा क्योंकि देवप्रयाग सड़क मार्ग आल वेदर रोड निर्माण के कारण ज्यादात्तर समय बाधित ही रहता है इसलिए मैंने अपने मित्र कलम सिंह रावत व भतीजे राजेन्द्र इष्टवाल के साथ ऋषिकेश, घट्टूगाड़, मोहनचट्टी, गैंडखाल, सिलोगी, चैलुसैण,द्वारीखाल, गुमखाल, सतपुली, ज्वाल्पा होकर गांव निकलना उचित समझा। चर्चा जब लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के इसी प्रकृति प्रदत्त गीत पर चली तो दंग रह गया। मोहन चट्टी से बिजनी गांव तक जहां मालू के सफेद फूल व खिन्ना सकीना के लाल गुलाबी फूल खिले हुए थे वहीं गैंडखाल से सिलोगी के बीच धौला के सुर्ख लाल फूलों ने मन मोह लिया था। धौला के फूल को हिंदी में स्योनाक के फूल कहा जाता है जिन्हें सुखाकर हृदयाघात के रोगियों को उसके कि पाउडर का घोल पिलाया जाता है जो अचूक आयुर्वेदिक इलाज बताया जाता है। यह लीवर व हर्ट दोनो के लिए रामबाण इलाज है।

सकीना/सकीनि/सकीनू के फूल।

वहीं दूसरी ओर सकीना या सकीनू के फूल का लोग रायता व फूल को उबालकर उसकी भरवा रोटी बनाकर खाते हैं जो गर्मियों में गर्म तासीर के लोगों को ठंडक पहुंचाने का काम करता है। ग्वीराल के फूल और फूलों से पहले कोंपल दोनो ही सकीना के फूल की तरह काम आते हैं। इसकी कोंपल से सब्जी व फूलों से भरवा पराठे बनाये जाते हैं। खिन्ना के फूल जितने आकर्षक हैं उनका किस रूप में प्रयोग किया जाता है यह तो मेरी जानकारी में नहीं है लेकिन यह अद्भुत संयोग की बात है कि खिन्ना, ग्वीराल, सकीना व धौला चारों ही फूल एक ही विरादरी के लगते हैं व इनका खिलने का समय भी एक ही काल नियत है।

धौला यानि स्योनाक के फूल (फोटो-बबिता नेगी)

ये प्राकृतिक रूप से कैसे एक दूसरे से पारिवारिक सम्वन्ध बनाये हुए हैं यह तो मैं नहीं जानता लेकिन यह बेहद आश्चर्यजनक है कि ग्वीराल के साथ अगर सकीना के फूल खिले हों तो वह गुलाबी रंगत में होते हैं और अगर यही फूल मालू के साथ खिला हो तो वह अद्भुत रूप से सुर्ख लाल होता है। मैने इस बार यह सुर्ख लाल सकीना का फूल मालू के हरे पत्तों के बीच से जब ऊपर खिले हुए देखे तो आश्चर्यचकित रह गया क्योंकि यह गुलाबी की जगह लाल सकीना के फूल थे जो बेहद दुर्लभ कहे जा सकते हैं। बिजनी गांव के जंगल में खिन्ना सकीना व मालू का आपसी तारमत्म्य देखते ही बनता है। दुर्भाग्य से मैं फोटो खींचता भूल गया। यह फूल मालू के पत्तों के ऊपर ऐसे उभरकर आया था मानो हरी साड़ी के ऊपर किसी खूबसूरत यौवना ने लाल सुर्ख ब्लाउज पहना हो। मानों अभी अभी वह दुल्हन बनी हो व घूंघट उठते ही उसके गालों की सुर्खियां ज्यादा ही बढ़ गयी हों।

यहां लगता है मालू पुरुष व सकीना की प्रजाति महिला की हो व इनका वैवाहिक गठबंधन हुआ हो क्योंकि बाकी स्थानों पर सकीना के फूल शुरुआती दौर में लाल होने के बाद गुलाबी रंगत ले लेते हैं। बहरहाल पहाड़ी जंगली वनस्पति के फूलों पर कभी किसी ने गहराई से काम किया हो ऐसा सन्दर्भित ग्रन्थ मुझे मिला नहीं है लेकिन जितनी मुझे जानकारी मिली है उस आधार पर कहा जा सकता है कि ये जितनी भी प्रजाति के जंगली फूल इस मौसम में खिलते हैं वह आयुर्वेदिक स्तर पर कई रोगों के नाशक पुष्प हैं।

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