जग्वाल की जग्वाल पूरी! कनाड़ा से अपनी मातृभूमि गढ़वाल लौटे गढ़वाली सिनेमा के जनक पराशर गौड़!
जग्वाल की जग्वाल पूरी! कनाड़ा से अपनी मातृभूमि गढ़वाल लौटे गढ़वाली सिनेमा के जनक पराशर गौड़!
(मनोज इष्टवाल)
कभी कभी यात्राएं कितनी कष्टदायी होती हैं यह तब आभास होता है जब हम पीछे मुड़कर अपना कल देखते हैं! विगत एक माह पूर्व की सूचना के बाबजूद व पूरी तैयारी के बाबजूद भी मैं गढ़वाली सिनेमा के जनक पराशर गौड़ के अपने गाँव मिरचोडा में बनाए आवास के गृह प्रवेश में शामिल नहीं हो पाया जोकि उजड़ते गढ़वाल के लिए एक ऐतिहासिक पल से कम न था!

ज्ञात होकि पराशर गौड़ द्वारा गढ़वाली सिनेमा जगत में फीचर फिल्म दकर खलबली मचा दी थी और फिर वे बर्षों तक अंतर्ध्यान हो गए! खबर खोज हुई तो मालुम चला कि पराशर गौड़ ने सपरिवार कनाड़ा की नागरिकता ले ली और अब शायद ही वे वापस भारत लौटें लेकिन ऐसा हुआ नहीं! मातृप्रेम उल्हारे मारकर जब जगा तो पहले वे दिल्ली आये और उसके बाद जब उन्हें ज्ञात हुआ कि अब उनके गाँव तक सड़क भी पहुँच गयी है तो वे गाँव दौड़े चले आये!

गाँव आकर पराशर गौड़ ने अपने टिन की छत्त के उस बिशाल मकान को देखा जिसमें पहले उनके तीन परिवार रहते थे तो उन्हें बड़ा दुःख हुआ क्योंकि मकान टूटकर खंडहर हो चुका था! जैसे तैसे उन्होंने अपने को संभाला और फिर वापस कनाडा लौट आये लेकिन चंद बर्षों बाद जाने उन्हें क्या सूझा कि वे फिर लौटे और गाँव में मकान बनाने की ठान ली! शुरूआती दौर में चंद परेशानियों के बाद उन्होंने आखिरकार मकान बना ही दिया और आज निहित मुहूर्त पर गृह प्रवेश भी किया जिसमें पौड़ी के जाने माने पत्रकार व पलायन एक टीम के चंद सदस्य भी मौजूद रहे!

इस दौरान पराशर गौड़ द्वारा अपने सारे गाँव व आस-पड़ोस के नाते रिश्तेदारों को गृहभोज भी दिया गया और वे बोले- मेरी जग्वाल अब पूरी हुई! दुनिया में यदि सबसे खूबसूरत कुछ है तो वह है उनकी मातृभूमि! मेरे खेत खलिहान व गाँव की आवोहवा ने मुझे बुलाया और देखो मैं आ गया! उन्होंने आशा जताई कि गाँव के ही पलायन एक चिंतन के संरक्षक रतन सिंह असवाल जिस तरह गाँव से बाहर चले गए गाँव वालों की जग्वाल (इन्तजार) कर रहे हैं कि वे लौटेंगे और गाँव फिर सरसब्ज होंगे तो लो मैंने सबसे पहले आकर वह जग्वाल समाप्त कर दी! मुझे उम्मीद है कि ग्रामीण जरुर अपने घोंसलों की ओर लौटेंगे !