स्व. नैन सिंह के जन्मदिन पर बिशेष।
स्व. पंडित नैन सिंह रावत जी के जन्म दिन पर विशेष……… भावपूर्ण श्रद्धांजलि..।
(हिमालयन डिस्कवर)
करीब 170 साल पहले पच्चीस साल का एक नाटे कद और मजबूत कद काठी के युवक ऑफ़ जर्मन भूगोल शास्त्रियों ने अपने पास काम पर रखा। इस जर्मन दल को सर्वे ऑफ़ इंडिया के पास भेजा गया था, जिन्होंने बड़ी मुश्किल से जर्मन लोगों को काम करने की इजाजत दी। अपने पिता के साथ किये सफरों की वजह से देव सिंह रावत तिब्बत के इलाकों से वाकिफ थे। एक ही परिवार के मणि सिंह रावत, दोल्फा और नैन सिंह रावत इस तरह 1855-57 के बीच मानसरोवर, राक्षस ताल और आगे लद्दाख की तरफ गरतोखंड तक के सफ़र पर रहे।
स्चेगिनटवेइट (Schlagintweit) बंधुओं के साथ काम करने के बाद उन्होंने शिक्षा विभाग में काम करना शुरू किया उया उन्हें मिलाम के एक देशी स्कूल का हेडमास्टर बना दिया गया। सन 1863 में उन्हें अपने चचेरे भाई मणि सिंह रावत के साथ देहरादून के ग्रेट ट्रीगोनोमेट्रीक सर्वे के दफ्तर में भेज दिया गया। वहां दो साल तक उन्हें ट्रेनिंग दी गई। जासूसी के विभिन्न तरीकों, भेष बदलना और जानकारी छुपाने के तरीके भी उन्हें सिखाये गए। तारों से दिशा और सेक्सटैन्ट-कंपास जैसे औजार चलाना भी उन्होंने जल्दी ही सीख लिया।
एक सर्जेंट मेजर ने उन्हें बिलकुल नपे हुए कदम लेना सिखाया। कितने कदम में कितनी दूरी हुई होगी इसकी पक्की परख में भी वो माहिर हो गए। नापने के लिए इन्होंने सुमिरनी (जप की माला) का इस्तेमाल किया। हिन्दुओं या बौद्धों की तरह इसमें 108 नहीं, 100 ही मनके थे। हर सौ कदम पर एक मनका फेरने का मतलब होता, माला के मेरु तक पहुँचने पर दस हज़ार कदम होते। एक कदम साढ़े एकत्तीस इंच, दो हज़ार कदम मतलब एक मील मतलब पूरी माला फेरने में वो पांच मील की दूरी नाप लेते थे।
इस दौर में साधू सिर्फ साधू नहीं होते थे। कुम्भ मेलों पर कब्ज़ा जमाते समय 1764 के बाद के दौर में इसाई हमलावरों ने भारतीय साधुओं के योद्धा और व्यापारी होने पर प्रतिबन्ध लगाने शुरू किये थे। इस दौर तक साधू व्यापारी भी हो सकता था, हथियारों में कुशल भी होता था। सेकुलरिज्म वाला टिन का चश्मा उतारने पर आपको भी दिखेगा कि कुम्भ के मेले में साधुओं के अखाड़े होते हैं। फिर शायद ये पूछने का भी मन करे कि अखाड़ा तो युद्ध कलाओं के अभ्यास वाला होता है ! ये साधुओं का अखाड़ा क्यों है ?
नाप को लिखकर छुपाने के लिए संस्कृत काव्य का भी इस्तेमाल हुआ। जैसे (उदाहरण के लिए) भगवद्गीता के ज्यादातर (करीब साढ़े छह सौ श्लोक) अनुष्टुप छंद में होती है। छंद में अक्षर और मात्राओं की गिनती तय होती है, ऐसे संस्कृत छंदों में आसानी से गिनती डाली जा सकती है। लघु गुरु (१ २) के आठ जोड़े को पञ्चचामर छंद कहते हैं। इसी को दोगुना कीजिये मतलब लघु गुरु के सोलह जोड़े, तो वह अनंगशेखर छंद कहलाती है। इसी गिनती को आधा कीजिये यानि लघु गुरु के चार जोड़े, तो वह आवृति प्रमाणिका छंद कहलाती है। कहाँ का, कौन सा, कैसा श्लोक भेजा जा रहा है, लिखा गया उसमें गिनती छुपाई गई।
कंपास को बौद्ध पूजा के चक्र में, पारा कौड़ियों में, भिक्षा पात्र में पारा डाल कर क्षितिज निर्धारण होता। भिक्षुक वाले दंड के उपरी हिस्से में थर्मामीटर डाला गया। बक्सों की नकली तली बना कर वहां सेक्सटैन्ट और दुसरे औजार फिट हुए। कपड़ों में नकली जेबें सिली गई और ऐसे ही दुसरे औजार भी बने। इन सब से लैस ये जासूस तिब्बत प्रान्त की लम्बी यात्राओं पर निकलते। ऐसी लम्बी यात्राओं में ये जासूस सफ़र करते अक्सर बौद्ध भिक्षुकों के साथ, कभी हिन्दू साधुओं की टोली में तो कभी व्यापारी गुटों के साथ होते। अगले कुछ सालों में ज्यादातर लामा के भेष में, इन्होने करीब पूरा तिब्बत नाप डाला।
पहली यात्रा में नैन सिंह 1200 मील का सफ़र करके काठमांडू से लाह्सा और फिर मानसरोवर, वहां से फिर वापस भारत आये। अपनी आखरी और सबसे बड़ी यात्रा में वो लधक घाटी से लेह होते हुए असम आ पहुंचे, और इसमें करीब पूरा ब्रह्मपुत्र नाप लिया था। रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी ने उनके कारनामों के लिए उन्हें कई पुरस्कार भी दिए थे। आश्चर्यजनक रूप से जेम्स बांड से वाकिफ झामलाल बुढऊ लोग हमारी कहानियों-फिल्मों में भारतीय जासूस का नाम लेना पाप समझते रहे। कूल डूड्स को खुद ही इन्हें ढूंढना पड़ रहा है।
आज गूगल ने इनके नाम पर ही डूडल जारी किया है, इसलिए झामलाल बुढऊ के ना चाहते हुए भी, इन्टरनेट चलाने वाले कूल डूड्स को नैन सिंह रावत फिर से मिल जायेंगे। कुछ साल पहले 27 जून, 2004 को उनके नाम पर भारतीय डाक का एक डाक टिकट जारी किया गया था (तस्वीर उसी की है)। कुमाऊँ में 21 अक्टूबर 1830 को जन्मे नैन सिंह रावत का 1882 की एक फ़रवरी को मोरादाबाद में कॉलरा से निधन हुआ था। उनके डायरी और लिखे पर एक किताब “हिमालय की पीठ पर” भी कुछ साल पहले आई थी। तिब्बत और ब्रह्मपुत्र नापने वाले इस यात्री के आगे के सफ़र पर हमारी भी शुभकामनायें। (आनंद कुमार)
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Sabar.