मखमली बुग्यालों के लिए अभिशाप साबित हो रही है जंगली पालक…!खरास नामक इस घास ने चाट दिए है कई हिमालयी बुग्याल!
मखमली बुग्यालों के लिए अभिशाप साबित हो रही है जंगली पालक…!खरास नामक इस घास ने चाट दिए है कई हिमालयी बुग्याल!
(मनोज इष्टवाल यात्रा संस्मरण 27-05-2013)
हिमालयी भू-भाग में फैलते इस जहर पर जाने क्यों वन वैज्ञानिक व प्रकृति प्रेमी व सम्बन्धित विभाग खामोशी अख्त्यार किये हुए हैं! लेंटेना झाडी और गाजर घास ने जहाँ मध्य हिमालयी क्षेत्र के सभी जंगलों व खेतों चारागाहों को तबाह कर दिया है ठीक उसी प्रकार खरास नामक घास ने हिमालयी क्षेत्र के हरे भरे बुग्यालों में तेजी से अपना अतिक्रमण करते हुए इस क्षेत्र के बुग्यालों को अपनी जद में लेकर तबाही मचानी शुरू कर दी है। यकीन मानिए जितनी तेजी से ये फ़ैल रहा है उस से यही लगता है कि आने वाले कुछ साल बाद हमारे बुग्याल चलने लायक नहीं रह जायेगे और आप खूबसूरत मखमली घास के हरे मैदानों को देखने के लिए तरसते रहेंगे.
उत्तरकाशी जनपद के पर्वत क्षेत्र के हर की दून के बुग्यालों में यह घास बड़ी तेजी से फ़ैल रही है जहाँ ट्रैकिंग का स्वर्ग कहा जाता है। स्थानीय भाषा में खरास नाम से प्रसिद्ध घास को कोई जंगली घास कहते हैं तो कोई रोमिंस के नाम से इसे पुकारते हैं। यह घास कहाँ से आई और कब आई इसका ठीक ठीक पता तो नहीं लग पाया है लेकिन भारत वर्ष और उत्तराखंड के सीमान्त गॉव ओसला, गंगाड, पवाणी, डाटमीर आदि के बुजुर्ग ग्रामीणों ने चिंता जताते हुए कहा कि यह घास हाल के कुछ वर्षों से ही फैलनी शुरू हुई है जिसे न तो भेडालों की भेड बकरियां ही खाती हैं और न ही यह अपने आस-पास किसी वनस्पति या औषधीय पादप को ही उगने दे रही है। वहीँ हर-की-दून क्षेत्र में गोबिंद वन्य पशु विहार राष्ट्रीय पार्क के वन रक्षक अमी चंद राणा का कहना है कि यह घास जितनी तेजी से फैलकर बुग्यालों को नष्ट कर रही है उतनी ही तेजी से इस क्षेत्र के वनस्पतीय पादपों का नाश भी कर रही है। यह घास जिस जगह भी पनप रही है महीनों में ही बड़े-बड़े मैदानों में फैलकर बुग्याल में खिल रहे विभिन्न प्रजाति के सैकड़ों फूलों का भी विनाश कर रही है। वन रक्षक अमी चंद हैरान होते हुए कहते हैं कि उन्होंने कई दिन मेहनत कर जहाँ-जहाँ से भी यह घास उखाड़ कर साफ़ की है उसकी बगल में फिर से इस घास के मैदान लहलहाने लगे हैं जोकि चिंता का विषय है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि सम्बंधित विभाग या उत्तराखंड की सरकार ने जल्दी ही इस घास के लिए उपाय नहीं ढूंढें तो आगामी १० वर्षों में हम बुग्यालों को देखने के लिए तरसने लगेंगे साथ ही दुनिया भर के पर्यटक इस क्षेत्र से मुंह मोड़ लेंगे। उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि हो न हो गाजर घास और लेंटेना की तरह इस घास को भी विमानों द्वारा विदेशियों ने यहाँ फिंकवाया हो ताकि हमारे देश की बहुमूल्य वन सम्पदा और औषधीय पादपों को नष्ट किया जा सके।
देखा जाय तो पर्वत क्षेत्र के लोगों की यह चिंता जायज लगती है। क्योंकि खरास/जंगली पालक/रोमिंस के नामक यह घास जिस तेजी के साथ फ़ैल रही है और हरे भरे मखमली बुग्यालों को नुकसान पहुंचा रही है यदि उस पर शीघ्रता से कोई योजना बनाकर कार्य नहीं किया गया तो वह दिन दूर नहीं रह जाएगा जब हम प्रदेश की इस बहुमूल्य धरा में खिले सैकड़ों प्रजाति के फूलों,वन औषधियों और धरा के सौन्दर्यमयी रूप से महफूज हो जायेंगे. यकीनन इस पर विस्तृत कार्य योजना शीघ्र प्रारम्भ करने कीई ठोस रणनीति बनाई जानी चाहिए.