424 बर्ष बाद भी अपनी थाती-माटी के वंशजों को खूब रुला गयी उदीना! दिल चीर देने वाला था बेटे वीर सिंह का बलिदान!
(मनोज इष्टवाल)

वह दृश्य कितना विह्वल रहा होगा जब मलेथा की माटी के हरित लहलहाते खेत, मलेथा गाँव ही नहीं बल्कि लगभग सात हजार के जनमानस के साथ आकाश भी उदीना के उस विलाप-प्रलाप के साथ रो दिया जो 424 बर्ष पूर्व जन्में एक ऐसे वीर भड माधौ सिंह भंडारी की दास्ताँ बखान कर रहे थे जो गढवाल नरेश राजा महिपत शाह के काल में सेनापति रहे व अपनी प्रेमिका से पत्नी बनी उदीना के उलाहने के बाद मलेथा में गूल लाने का निर्णय लेते हैं! सुरंग खुदती है लेकिन पानी आगे नहीं बढ़ता और फिर कैलापीर की आकाशवाणी के बाद जो निर्णय यह वीर भड माधौ सिंह भंडारी लेता है वह भले ही गाँव के सैकड़ों परिवारों के लिए वरदान साबित होता होगा लेकिन सच यह है कि पुत्र वीर सिंह की बलि के बाद वीर भड माधौ सिंह भंडारी की पत्नी उदीना का प्रलाप आज भी इन खेतों में गूंजता सुनाई देता है!

ऐ जाणु रुकमा म्यारे मलेथा..कसो च भंडारी तेरो मलेथा! यह गीत रुकमा और माधौ भंडारी के प्रेम प्रसंग को सदृश्य कर यह पटकथा लिखता हुआ सदियों से अपने अमरत्व की कहानी बखान करता नजर आता है वहीँ उदीना से जुड़ा प्रेम प्रसंग रुकमा से उदीना कब बन गया यह इतिहास की गर्त का ही एक हिस्सा है! यहाँ उस सब पर चर्चा करना निरर्थक है!
पर्वतीय नाटी मंच मुंबई की पूरी टीम ने जब सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता बलदेव राणा के नेतृत्व में गढ़ नरेश महिपत शाह के काल के महा सेनानायक माधौ सिंह भंडारी की 424वीं पुण्यतिथि पर उस ऐतिहासिक बलिदान को सजीव करने उस धरती पर उतरी तब चार सदी पुरानी इस ऐतिहासिक घटना का सजीव चित्रण देखने हजारों-हजार लोग यहाँ उपस्थित थे!

वीर भड माधौ सिंह भंडारी की यह गीत नाटिका पर्वतीय नाट्य मंच द्वारा यूँ तो पूर्व में मुंबई, देहरादून, ऋषिकेश, रूद्रप्रयाग, मसूरी, टिहरी, श्रीनगर में अब तक 11 बार प्रदर्शित हो चुकी है लेकिन यह पहला अवसर है जब पहली बार इसे उनकी कर्मभूमि मलेथा में प्रदर्शित किया गया है! मलेथा वासियों का बड़ा दिल देखिये! अपने लहलहाते हरित अन्न के खेतों को इन्होने उस वीर भड के वीर पुरुष की उस शहादत को समर्पित कर दिए जिसकी बदौलत आज यह पूरा गाँव पिछली चार सदियों से साधन सम्पन्न है! यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि वीर भड माधौ सिंह भंडारी के यहाँ वंशज हैं भी कि नहीं क्योंकि जिन खेतों में यह गीत नाटिका प्रदर्शित की गयी उन में एक भी भंडारी जाति का नहीं था ! यह अचंभित करने वाली बात थी! जिन लोगों ने दरियादिली दिखाते हुए अपनी श्रम साध्य के हरित खेतों में अन्न उगने से पहले ही उन खेतों की वीरांगना महिलाओं ने उन्हें हरियाली स्वरूप काटकार वीर भड माधौ सिंह भंडारी व उनके परिवार को समर्पित कर दिए उनके लिए सचमुच ह्रदय में एक अपार श्रद्धा भाव यूँहीं जन्म ले लेता है! ये लोग प्रमोद रतूड़ी, सत्यनारायण सेमवाल, दयाराम सेमवाल, श्रीमती लीला देवी भट्ट, सुंदर सिंह नेगी, वीरेंद्र सिंह नेगी, उपेन्द्र सिंह नेगी व दिनेश नेगी मुख्य थे क्योंकि इन्हीं के खेतों में इसका मंच से लेकर दर्शक दीर्घा तैयार की गयी थी!

अब आते है किरदारों की भूमिका पर! हम सब जानते हैं कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवन काल के 34 बसंत सिर्फ और सिर्फ अभिनय को ही दे दिए हों भला ऐसे व्यक्ति बलदेव राणा के अभिनय को दीया दिखाना कहाँ लाजिम होगा! यहाँ चर्चा उस अभिनय उस किरदार की की जानी जरुरी है जिसने अभिनय किया नहीं बल्कि अभिनय को जिया है! तेजी से उभरती गढ़वाल फीचर फिल्म “हे भुली” की नायिका में दमदार अभिनय के बूते पर अपनी छाप छोड़ने वाली अभिनेत्री प्रियंका रावत जब इस बार उदीना की भूमिका में मंच पर उतरी तब जाने क्यों मुझे यह परिवर्तन ज़रा अटपटा सा लगा क्योंकि इस से पूर्व दो तीन बार यह अभिनय करते हुए हम अभिनेत्री गीता उनियाल को इस भूमिका में देख चुके हैं व वह लम्बाई में प्रियंका रावत से ज्यादा लम्बी हैं इसलिए अभिनेता बलदेव राणा के साथ उसकी जोड़ी ज्यादा अच्छी दिखाई देती है! लेकिन जैसे जैसे हम दृश्यों की खूबसूरती के साथ प्रियंका रावत को उदीना के अभिनय में किरदार निभाते देखते हैं वैसे-वैसे वह भ्रम भी मिटता जाता है कि इस अभिनय को पूर्व में भी कोई अदाकारा निभा चुकी है!

पिछली बार की तरह इस बार भी वीर सिंह की भूमिका निभाने वाला बाल कलाकार अक्ष चौहान अपनी अभिनय क्षमता से सबका मन मोह ले गया! लेकिन उदीना सचमुच अपने को साबित कर गयी! वह एक प्रेमिका, एक बहु, एक माँ की भूमिका में जो अभिनय को जी गयी वह इस अदाकारा के अग्रिम भविष्य को संवारने सजाने के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है क्योंकि मुझ जैसी हजारों आँखों ने उस दृश्य की सजीवता को बेहद निकट से देखा है जब एक माँ अपने बच्चे के सिर्फ बलिदान की बात सुनकर प्रलाप करती है! जब एक माँ अपने बलिदानी पुत्र के सिर और धड़ को ढूंढती उन खेतों की मुंडेरों तक पहुँचती है जिनके आस-पास उसकी सजीली तिबारी में कभी अपने पुत्र वीर सिंह के कोमल पंजों को अपने पैरों के ऊपर रखकर वह जीवन भर का दुलार लुटाती हुई कहती है- बडू बाबू कु बेटा वीर सिंगा..!

वाह प्रियंका रावत जब आप उदीना का वह किरदार निभा रही थी तब आप प्रियंका नहीं लग रही थी बल्कि सचमुच उदीना जैसी नजर आने लगी थी ! लोग सचमुच यह सोचने को मजबूर हो गये होंगे कि यह अभिनेत्री है या साक्षात् उदीना बौराणी! यह रंगमंच का वह मंच होता है जहाँ वन टाइम ओके कहा जाता है कोई रिटेक नहीं कोई गलती की गुंजाइश नहीं! अभिनय के दौरान प्रियंका की नाक की नथ खुल जाती है जिसकी वह एक पल भी परवाह नहीं करती वह सचमुच तब एक ऐसी माँ लगती है जिसने जीवन का सबसे ज्यादा प्यार दुलार जिस बेटे पर लुटाया उसी की बलि की बात सुनकर वह अपना मानसिक संतुलन खो देती है! वह तब न प्रियंका रावत होती है और न तब वह उदीना का किरदार निभाने वाली एक पात्र! बल्कि वह उस किरदार को जीवंत करने वाली एक ऐसी अदाकारा नजर आती है जो साक्षात उदीना बन जाती है! ऐसे सचमुच बिरले कलाकार ही होते हैं!

प्रियंका की आँखें भी बेटे के विलाप में जब बरसने लगी तो जाने कितनी माँ बहनें दर्शक दीर्घा में सिर्फ सुबक नहीं रही थी बल्कि अपने आंसू साफ़ करने के लिए अपने पल्लू, अपनी चुनरी अपने शाल का सहारा ले रही थी! अगर यह कहा जाय कि सारे नाटय मंचन का क्रेडिट उदीना चुरा ले गयी तो कोई दोराय नहीं है!

व्यक्तिगत तौर पर मैं पर्वतीय नाट्य मंच मुंबई की पूरी टीम का आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे सम्मान देते हुए नाटक के उन हिस्सों में परिवर्तन किया जो ऐतिहासिक दृष्टि से विवादित थे ! यह बलदेव राणा व उनके सहयोगियों की दरियादिली कही जा सकती है कि उन्होंने भी इसकी प्रमाणिकता के लिए अपने स्तर पर शोध कर मेरे द्वारा लिखे पूर्व लेखों को खोजबीन के बाद सही पाया व इस गीत नाटिका में अमूलभूत परिवर्तन कर इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को सजीवता दी! यह अपने आप में सचमुच बड़ा फैसला कहा जा सकता है!
यहाँ क्षेत्रीय विधायक व कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विनोद कंडारी ने दरियादिली दिखाते हुए जिस तरह इस नाटय टीम को अपनी ओर से बतौर पारितोषिक एक लाख रूपये की घोषणा की वह काबिलेतारीफ कही जा सकती है वहीँ उत्तराखंड सरकार में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत व उच्च शिक्षा,सहकारिता, प्रोटोकॉल राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. धन सिंह रावत ने वीर भड माधौ सिंह भंडारी की जन्म स्थली में उनके स्मारक के लिए डेढ़ करोड़ की राशि मंजूर कर इस धरती का सचमुच सदियों बाद मान बढाते हुए यह साबित कर दिया कि यह सरकार यथार्थ में कार्य संस्कृति को बल दे रही है! यह डॉ. धन सिंह रावत की जिद का परिणाम ही कहा जा सकता है कि सदियों बाद इस धरती पर वह वीर व उसके परिवार का बलिदान जीवंत हो पाया है! वहीँ राज्य सभा सांसद अनिल बलूनी के इस कदम की भी प्रशंसा की जानी चाहिए कि उन्होंने बिना समय गंवाए इस गूल को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करवा दिया है! वही इस अवसर पर पद्मश्री डॉ. प्रीतम भरतवाण द्वारा जहाँ गीत नाटिका के सूत्रधार के रूप में गाये हुए अपने गीत का मुखड़ा गाकर सुनाया वहीँ सुप्रसिद्ध लोकगायिका मीणा राणा ने भी इसी नाटिका से जुड़े गीत का स्थाई इस मंच से गाकर समापन की शमां बांध डाली! मंच संचालन गणेश खुगशाल ‘गणी” द्वारा किया गया जो अपने अलग ही अंदाज के लिए लोकप्रिय हैं!