24 किलो की मूली उगाने का रिकॉर्ड पौड़ी के सांगुडा गांव निवासी विद्यादत्त के नाम।
(मनोज इष्टवाल)
यों तो मोती बाग बर्षों से कृषि कास्तकारी के नाम से पूरे पौड़ी गढ़वाल में विख्यात रहा है और उसके नाम ऐसे कई रिकॉर्ड हैं जिन्हें तोड़ना सम्भव नहीं है।
सर्वे एक्सपर्ट व कृषि पंडित के रूप में प्रसिद्ध विद्यादत्त उनियाल ” शर्मा” मूलतः ग्राम सांगुडा, असवालस्यूँ विकास खण्ड कल्जीखाल पौड़ी गढ़वाल के निवासी हैं जिन्होंने अंतिम भूमि बंदोबस्त के दौरान नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ इत्यादि स्थानों में चकबन्दी विभाग में विभिन्न पदों पर कार्य किया।
उन्होंने 1966 के बाद यह तय कर लिया कि क्यों न ऐसा किया जाय कि एक स्थान पर ऐसा आवास बनाया जाय जहां से सम्पूर्ण खेतों पर नजर पड़े। उन्होंने गांव का आवास छोड़कर जंगल के पास मोती बाग नामक आवास बनाया जहां गांव की बेहद दोयम दर्जे की जमीन थी। अपने कर्म बल से उन्होंने वहां कृषि कार्यों के लिए जैविक खाद प्रचलन में लानी शुरू की।बंजर ढालों को रात दिन परिश्रम कर खेतों में ढालकर उन्हें कृषि योग्य बनाया। जब वह यह सब करते तब आस पास गांव के लोग उनके कृत्य पर ठहाके लगाते कि विद्यादत्त का दिमाग खराब हो गया है। उस बंजर में सोना तलाशने की कोशिश कर रहा है। इस दौरान ऐसा भी जरूर हुआ होगा कि पारिवारिक सहयोग भी विचलित हुआ हो। लेकिन विद्यादत्त शर्मा अडिग रहे।
फिर वह दिन भी आया जब उनके मेहनत की गूल पपीता पाणी नामक स्थान से उनके आवास तक आ पहुंची। अब वहां न पानी की किल्लत रही न साधनों की। वर्तमान में अगर किल्लत है तो वह है जन मानस की। क्योंकि उनके बेटों के बच्चे यानी नाती पोते सब अच्छी स्कूलों में पढ़ रहे हैं। छोटा बेटा त्रिभुवन उनियाल पौड़ी में पत्रकारिता करते हैं जो परिवार सहित अक्सर एक आध दिन हर 15 दिन गांव जाया करते हैं। ज्ञात हो कि इनके बड़े दिनेश उनियाल पुत्र जोकि कुमाऊं में अध्यापक थे की एक बस दुर्घटना में मृत्यु हो गयी थी! दीनानाथ पशु बलि के सख्त विरोधी रहे व उन्होंने गढ़वाल कुमाऊं में इसका जागरूकता अभियान पूरे जोर शोर से चलाया!
विद्यादत्त शर्मा जी ने अपने मोती बाग में एक नेपाली परिवार बसा रखा है जिसकी बकरियों की मल खाद उनकी कृषि काश्तकारी के लिए बेहद उपयोगी साबित होती है।
विद्यादत्त शर्मा विगत सदी में 70 के दशक में तब क्षेत्र में प्रसिद्ध हुए जब किसान मेला में उन्हें कृषि पंडित नामक पदवी से सम्मानित किया गया। तब भी उन्होंने ऐसा ही पहाड़ी मूला प्रदर्शनी में लगाया। हाल ही में एक 14 किलो की गोबी का फूल उन्होंने अपने खेतों में उगाया है।
यह पहाड़ी मूल तराजू के हिसाब से 23 किलो 500 ग्राम का है । जोकि वर्तमान में एक रिकॉर्ड के रूप में दर्ज हुआ है। अब तक इतना बड़ा मूला (मूली) उत्पादन का कोई रिकॉर्ड दर्ज नहीं है। इस मूली की ग्रोथ मात्र दो माह की है। अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि विद्यादत्त जैसे कृषि पंडित कृषि काश्तकारी में किस तरह आये दिन प्रयोग करते होंगे। उनका कहना है कि प्रकृति प्रदत्त सभी संसाधनों में जितनी जैविकता है मनुष्य प्रदत्त संसाधन उसे नष्ट करने में तुले हुए हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि जैविक अन्न कालांतर से ही निरोग बनाये रखने की क्षमता रखता है। अतः जैविक अन्न ही प्रयोग में लाना चाहिए। आज विद्यादत्त शर्मा लगभग 85 बर्ष के है लेकिन उनके कर्मयोग की गाथा यह है कि आज भी वे मीलों पैदल चलते हैं। बिना चश्मे के अखबार पढ़ते हैं व रोज बागवानी व कृषि कार्यों की समृद्धि के लिए खेतों की मुंडेर उनका सबसे सुखद समय काटने के लिए होता है।