1977 में आकाशवाणी लखनऊ से हुई लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की गीत जात्रा।
(मनोज इष्टवाल)

“सर्या बसग्याल बणु मा, रूढ़ि कूटण मा बीति ज्ञेना, म्यारा सदनी इनि दिन रैना।” एक ऐसी कालजयी रचना हुई जिसका जन्म एक अस्पताल में हुआ, और इस रचना ने अपने नाम एक सदी पुुुरुष कालजयी रचनाकार ही नहीं बल्कि लोकगायक को भी जन्म दिया। ऐसा लोकगायक जिसका जन्म 1977 में आकाशवाणी लखनऊ के ग्रीन रूम में हुआ। जिसका यह गीत जब आकाशवाणी लखनऊ से प्रसारित हुआ तो उसने अपने बाद रचनाधर्मिता की उत्कृष्टताओं पर एक के बाद एक मिशालें पेश की। जी हां…आप सही सोच रहे हैं कि वह सुप्रसिद्ध कालजयी रचनाकार व लोकगायक और कोई नहीं बल्कि नरेंद्र सिंह नेगी हुए।
केशव दास अनुरागी ने दिया संस्कृति को एक जननायक-
बहुत कम लोग जानते हैं कि लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी गीत संरचना या गायन से पहले तबला वादक थे. तबले से उन्हें बेहद प्यार था और यही कारण भी था कि लखनऊ में रजिस्टर्ड बुरांस संस्था जो भी बड़े कार्यक्रम हुआ करते थे वहां गढ़वाली कार्यक्रम के लिए लैंसडाउन से कलाकार बुलाया करती थी।
लोकगायक भी गायक बनने से पूर्व नरेंद्र सिंह नेगी इसी संस्था के साथ जुड़कर तबले में संगत करते थे। तब लैंसडाउन में इनके सहपाठी डॉ. सम्पूर्ण सिंह रावत, डॉ. एस.पी.नैथानी, सतीश कालेश्वरी, मोहन बिष्ट, सुरेश वर्मा, अरुण सुन्द्रियाल इत्यादि थे।
सन 1977 में इस जन नायक के लिए तब टर्निंग पॉइंट आया जब बुरांस द्वारा लखनऊ में आयोजित झंकार कार्यक्रम में ये तबला बजाने पहुंचे और वहाँ केशव अनुरागी जी ने ग्रीन रूम में इन्हें हारमोनियम पर अपने द्वारा रचित पहला गीत “सर्या बसग्याळ बणु मा रूडी कूटण मा बीतीग्येना, म्यार सदनी इनी दिन रैना…गीत को गुनगुनाते देखा।
नेगीजी बताते हैं कि तब न वे केशव अनुरागी जी को ही जानते थे और न उन्होंने ऐसा सोचा ही था कि वह रेडिओ से भी गायेंगे। केशव अनुरागी ने उन्हें यह गीत दुबारा गाने को कहा और सुनने के बाद इतने मन्त्र मुग्ध हुए कि उन्होंने नेगीजी को कहा कि तुम्हे आकाशवाणी से गाना चाहिए। नेगीजी ने जब गाने का प्रोसेस पूछा तो केशव अनुरागी जी ने उन्हें स्वर परीक्षा का फार्म पकडाते हुए उसे भरने को कहा।
लोक गायक नरेंद्र नेगीजी ने कहा कि जब आकाशवाणी से उनके घर पौड़ी स्वर परीक्षा में शामिल होने का पत्र आया तब उनका गला खराब हो रखा था लेकिन यह सोचकर वह लखनऊ निकल गए कि हो न हो फिर चांस मिले भी या नहीं। उन्होंने यही सोचा कि लखनऊ में गला गर्मी से ठीक हो जाएगा लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो उन्होंने केशव अनुरागी जी से मिलकर अपना दर्द बयान करते हुए कहा कि उन्हें अब बिना गाये ही वापस लौटना पड़ेगा लेकिन केशव अनुरागी जी ने उन्हें रोकते हुए परीक्षा ले रहे अपने साथियों को कहा कि इस लड़के को उन्होंने पूर्व में गाते हुए सुन रखा है इसका गला खराब चल रहा है इसलिए इसका ध्यान रखना ..और फिर उन्हें नीची पिच पर गाने की बात कही।
स्वर परीक्षा का पास हुई कि उनका पहला गीत “सर्या बसग्याल बणु माँ….म्यारा सदनी इनि दिन रैना…।” रेडिओ में बजना शुरू हुआ ..इसके बाद लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा…।
ज्ञात हो कि यह गीत नरेंद्र सिंह नेगी जी द्वारा तब लिखा गया था जब उनके पिता जी चूड़पुर (विकासनगर) के लेमन हॉस्पिटल में भर्ती थे।
धन्यवाद केशव अनुरागी जी आप जहाँ भी हो स्वर्ग में ईश्वर आप जैसे ब्यक्ति को शरण दे..क्योंकि आपने उत्तराखंड की संस्कृति को एक ऐसा रत्न दिया जो सन 1977 से आजतक अपना नम्बर एक का स्थान बरकरार रखे हुए हैं।

उत्तराखंड रत्न । श्री नरेन्द्र सिंह नेगी जी । अद्भुत प्रतिभा के धनी और सही मायनों में लोकगायक हैं ।