151 बर्ष पूर्व कैलाना शिखर में कर्नल पिर्यसन ने करवाया था इस फारेस्ट बंगले का निर्माण!
(मनोज इष्टवाल ट्रेवलाग 2 जून 2019)
जौनसार बावर का जब भी जिक्र होता है तो सच पूछिए यहाँ की खुद सी लग जाती है! जाने क्या है यहाँ की वादियों, घाटियों और पहाड़ियों के प्राकृतिक सौन्दर्य में! यहाँ का जनमानस हो या हवाओं की ताजगी! एक रूहानी जादू सा आपको यहाँ की उच्च शिखरों में फैले देवदार व शानदार बुग्यालों के बीच महसूस होता है, मानों कह रहा हो – अहो अतिथि आपका बाँहें फैलाए स्वागत है!
आज भी मौसम ऐसा ही कुछ था! पिछले दिवस यानि 1 जून को बुधेर बंगले के आस-पास फैले विशालकाय देवदार के रमणीक जंगल की हवा की शांय-शांय में सर्द ठिठुरन से बदन के रोंवे खड़े हो रहे थे! ऐसा इस देश में ही हो सकता है जहाँ हर 50 या 100 किमी. पर मौसम परिवर्तन आपको दिखाई दे! देहरादून में पिछले दिनों जहाँ तापमान 43-44 डिग्री सेल्सियस था वहीँ यहाँ मात्र 12 डिग्री सेल्सियस! जबकि देहरादून से यहाँ की दूरी मात्र 115 किमी. के आस पास है! हम बुधेर बंगले से जैसे ही 3.5 किमी. की जंगलात सडक पूरी कर लोहखंडी पहुंचे तो स्वेता पाठक उस तिलिस्मी माहौल से बाहर निकल चुकी थी! वरना वह बस इसी में खोई हुई शुकून के हर पलों को यादगार लम्हों में संवारे जा रही थी! उनके पति विंग कमांडर अविनाश ड्राइविंग सीट पर थे व मैं उनकी बगल में बैठा था! स्वेता अपने बेटे के साथ पिछली सीट पर थी! बह बोली- थँक्स मनोज! मैं पहाड़ों में इस तरह कभी नहीं घूमीं! मुझे समुद्र व उसके तट हमेशा पसंद रहे लेकिन इस बार सचमुच इस टूर ने तो मुझे मन्त्र मुग्ध कर दिया!

मैं धीरे से मुस्कराया व बोला- शुक्रिया स्वेता! मुझे ख़ुशी है कि आपने मेरे पहाड़ की तारीफ़ के कसीदे पढ़े वरना तुम्हे झेलना सरल नहीं है! अविनाश मुस्कराकर बोले- नहीं मनोज भाई! यकीनन यह टूर हमारे यादगार पलों का साथी रहेगा क्योकि यहाँ का पर्यावरणीय संतुलन अद्भुत है! यहाँ स्वत: स्पूर्ति है मानों बचपन वापस लौट आया हो! अब तब हम इन्हीं गप्पों में सर्पाकार सडक को नापते-नापते जाड़ी गाँव के आस-पास पहुँच गए थे! अविनाश बहुत सदी ड्राइविंग कर रहे थे, उन्हें बिल्कुल हड़बड़ी की आवश्यकता नहीं पड़ी! थोड़ी देर खामोशी के बाद बोले- मनोज भाई ये बताइये यहाँ जितने भी ड्राईवर गाड़ियां चलाते हैं क्या कभी यह ये नहीं सोचते होगे कि उनकी यह रफ्तार व रफ ड्राइविंग उन्हें कहाँ ले जायेगी! रफ्तार हमेशा रिस्क है और रफ ड्राइविंग गाडी की उम्र घटाता है! बात तो एकदम सही थी!
बहुत समय बाद आज घंटी बजी तो पाया विकास नगर विधायक मुन्ना सिंह चौहान जी का फोन था! कुशल क्षेम के बाद बोले- आपकी व्यवस्था हो गयी है आप आज इन मेहमानों के साथ चकराता रुकिए और इस क्षेत्र के पर्यटन विकास पर कुछ ऐसा लिखिए ताकि इस प्रदेश को कुछ लाभ मिलें! मैंने हृदय से शुक्रिया अदा किया और यह बात अविनाश व स्वेता को बताई! स्वेता बोली- यार तू तो कहीं और की बात कर रहा था फिर ये चकराता..! इतने में हम टोलटैक्स पर पहुँच चुके थे जहाँ से हमारा मार्गदर्शन फारेस्ट विभाग के फारेस्ट गार्ड ने किया! बंगले में अभी पहुंचे ही थे कि जोरदार बारिश ने स्वागत किया!
चकराता अर्थात राजधानी देहरादून से लगभग 95 किमी. दूर विकास खंड चकराता की खत्त बिरमऊ में 30.32”अक्षांश उत्तर व 77.54” देशांतर पूरब में समुद्र तल से 6885 फीट की उंचाई पर स्थित डमरूनुमा दो पहाड़ियों (चकराता व कैलना) पर बसा एक खूबसूरत वादियों का छोटा सा पहाड़ी शहर कहा जा सकता है! इसका मुख्य बाजार कैलाना पहाड़ी नैक (गर्दन) पर अवस्थित है! जिसकी बसासत यूँ तो सन 1866 में ब्रिटिश सैपर ( फ़ौज की टुकड़ी सैपरमैन व सैनिक टुकड़ी इंजीनियर्स) हुई लेकिन यहाँ एक साल बाद यानि 1869 में सर्वप्रथम कर्नल ह्यूम के अधीन महामहिल की 55वीं रेजिमेंट ने यहाँ डेरा डालकर इसे आबाद किया! तब तक यहाँ तक पहुंचने के लिए सैपर घोड़ागाड़ी टट्टू मार्ग का कालसी से निर्माण कर चुके थे!

इसी चकराता शहर के कैलाना पीक पर मुख्य बाजार से लगभग दो से ढाई किमी. दूरी पर चकराता देवबन मार्ग पर जंगलात के टोल टैक्स से कटता फारेस्ट विभाग का खूबसूरत बँगला है! यह बात आश्चर्यजनक है लेकिन सच भी उतनी ही है कि चकराता की बसासत से पहले अर्थात छावनी निर्माण से पहले चकराता की कैलाना पीक पर ब्रिटिश काल में 1863 में ही उप वन संरक्षक का रियायसी आवास था! मेरठ के कमिश्नर को इस प्रभाग का वन संरक्षक नियुक्त किया गया! फारेस्ट विभाग के पास पर्याप्त रखरखाव के बावजूद भी ऐसा कोई दस्तावेज नहीं है लेकिन जी आर सी विलियम्स द्वारा लिखी गयी “मेम्योर ऑफ़ देहरादून” नामक पुस्तक में इसका उल्लेख मिलता है!
अब प्रश्न यह उठता है कि बुधेर बँगला उत्तर भारत का सबसे पौराणिक फारेस्ट गेस्ट हाउस बताया जाता रहा है तो क्या चकराता की बसासत से पहले 1868 में इस क्षेत्र में पहली नियुक्ति पर आये व रहे कर्नल जी.एफ. पियर्सन जब यहाँ उत्तर पश्चिमी प्रांत के वन संरक्षक नियुक्त हुए तभी यहाँ बंगलों का निर्माण हुआ? क्योंकि जौनसार बावर क्षेत्र तब उप वन संरक्षक के अधीन था जो चकराता में तैनात था व सर्दियों में उसका कार्यालय मुख्यालय कालसी में शिफ्ट हो जाता था! ब्रिटिश काल में इस डिविजन में पांच रेंज हुआ करती थी जिसके प्रबन्धन के लिए तीन उप रेंजर, व सैंतीस फारेस्ट गार्ड नियुक्त थे!

इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि चकराता स्थित बँगला 1868-69 में फारेस्ट विभाग द्वारा तभी निर्मित हो गया था जब यहाँ छावनी आई क्योंकि छावनी परिसर क्षेत्र में अन्य किसी विभाग का कोई दफ्तर नहीं होना भी इस बात का संकेत करता है! यह आश्चर्यजनक तब लगता है जब जून 1863 में सर ब्रेंडिस ने इस क्षेत्र के जंगलों का मिस्टर विलियम्स व तत्कालीन दून अधीक्षक मिस्टर मेलविल के साथ संयुक्त निरिक्षण किया क्योंकि तब तक न यहाँ सैन्य छावनी थी न ही कोई ग्रामीण आबादी! लेकिन यह तय है कि बुधेर वन बिश्राम गृह और चकराता वन विश्राम गृह का निर्माण काल एक समय का ही है क्योंकि इनकी बनावट बिलकुल एक जैसी ही मिलती जुलती है!
बात साफ़ है कि वन संरक्षक कर्नल जी ए पियर्सन द्वारा नियुक्ति के फ़ौरन बाद जहाँ 1868 में बुधेर बंगले का निर्माण करवाया वहीँ इसी काल में चकराता की कैलाना पीक पर भी वन विभाग का यह खूबसूरत बंगला निर्माण किया व अपने इर्द-गिर्द फारेस्ट गार्ड्स के क्वाटर्स भी निर्मित करवाए! क्योंकि इसके बाद लेफ्टिनेंट गवर्नर सर डब्ल्यू म्यूर के निर्देश पर उन्होंने जौनसार बावर के जंगलों को तीन श्रेणियों में विभक्त करवाया! 1872 में इसका सीमांकन किया गया!
यह आश्चर्यजनक है लेकिन सच भी कि जीआरसी विलियम्स व कर्नल पियर्सन ने इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा बर्षों तक अपनी सेवाएँ दी हैं! कर्नल पियर्सन ही वह व्यक्ति हुए जिन्होंने न सिर्फ इस क्षेत्र के जंगलों का वर्गीकरण किया बल्कि 35 बर्ष तक जंगल न काटने के आदेशों को सख्ती से अमल में भी लाये! चाहे वह लोहखंडी, बुधेर, मशक, कोटिकणासर, बिनाल सिल्लीगाड, कुनैन, दारागाड़, तुतुवा-मौरा के जंगल या पश्चिम में कथियान के जंगल रहे हों या फिर कोटि-पंचकोटि व टोंस के पश्चिमी सिरेमें मुराच के जंगल..! इन सबको जीवन देने का श्रेय कर्नल पियर्सन को ही जाता है!
कर्नल पियर्सन ने यहाँ अपनी सर्विस के दौरान बुधेर, चकराता व कालसी वन विश्राम गृहों का निर्माण करवाया है! यह माना जाता है कि देवबन बंगले का निर्माण काल भी उन्हीं के कार्यकाल में हुआ लेकिन इसके पर्याप्त प्रमाण न होने के कारण आज भी यह अँधेरे में तीर मारने जैसा कहा जा सकता है! चकराता में वन संरक्षक आवास का निर्माण बर्ष 1888 है जो कि बुधेर बंगले के 20 बर्ष बाद निर्मित किया गया अत: सीधा सा अर्थ यह हुआ कि बुधेर बंगले से पूर्व चकराता का जो फारेस्ट बँगला है वह पहले वन संरक्षक का आवास कम कार्यालय हुआ करता था! व इसका निर्माण बर्ष भी 1868-69 का है जब कर्नल पियर्सन ने यहाँ आकर कार्यभार ग्रहण किया!
1879 व 1889 में लेफ्टिनेंट गवर्नर सर डब्ल्यू म्यूर के दो बार चकराता दौरे के समय वन संरक्षक आवास चकराता (1889) के बांये छोर व बुधेर वन बिश्राम गृह (1979) दांयें छोर पर जापानी पेड़ क्रिप्टोमेरिया जपानिका के एक एक पेड़ लगाए गए जो आज भी इस बात की गवाही देने को खड़े हैं! यह आश्चर्यजनक किन्तु सच है कि अपने आदेशों को अमलीजामा पहनाने के लिए तब अंग्रेज एक यादगार पहल करते थे! वही लेफ्टिनेंट गवर्नर सर डब्ल्यू म्यूर ने भी किया! उन्होंने अपने शासनादेश संख्या 21 दिनांक 9 जनवरी 1879) वन सीमांकन कार्य/वन अधिनयम जारी (मिस्टर रौस द्वारा निर्मित), शासनादेश संख्या 261/एफ-610-29 दिनांक 2 अप्रैल 1889) मवेशी वन चुगान सीमांकन को आधारभूत मानकर उन्हें जीवंत बनाए रखने के लिए इन्हीं दिनों पर यानी 9 जनवरी 1879 में बुधेर बंगले व 2 अप्रैल 1889 में लगभग दस साल बाद जापान से लाये दो पौधों (क्रिप्टोमेरिया जपानिका) का रोपण किया जो आज भी इन दोनों शासनादेशों की याद ताजा करते हैं!
ओहो रात तो बहुत गहरा गयी है! मेरी नजर अचानक घड़ी पर पड़ी तो देखा 12 बजकर 22 मिनट हो गए हैं! मैंने अविनाश जी की ओर नजर दौड़ाकर कहा कि खामख्वाह आपको भी बोर कर दिया इस बहस में ..! वे अंगडाई लेते हुए बोले- नहीं मनोज जी, मुझे हैरत है कि आप यह सब फिंगरटिप्स पर कैसे याद रखते हैं! चलो ये तो बता दो कि हम इस समय समुद्र तल से कितनी उंचाई पर हैं! मैंने कैमरा उठाया व अपनी क्लिक पर उसे ढूंढता हुआ बोला – डीएफओ बँगला- 7292 फुट! आपको याद है जब हम शाम को घूमने गए थे व बाबा के गाल छूते हुए इस रेंज के रेंजर बिष्ट जी, डीएफओ बंगले के पास मिले थे! तभी मैंने यह फोटो खींचा था!
मैं समझ रहा था कि अविनाश मन ही मन मेरी प्रशंसा कर रहे हैं जबकि स्वेता व उनका प्यारा पुत्र बाबा अपने कमरे में मजे की नींद में सो रहे थे! मैं भी अविनाश जी से हाथ मिलाकर अपने कमरे की ओर बढ़ गया! सचमुच यह बंगला मेरे नींद के झरोंकों में भी रात भर मुझे सहलाता सा महसूस हुआ! मानो कह रहा हो..देखो कर्नल पियर्सन! कोई तो है जिसने आपको 151 बर्षों बाद भी याद किया!