आखिर कहाँ गए हिमालयन गजेटियर ग्रन्थ –दो में वर्णित गोरिल/गोल्जू मंदिर !
आखिर कहाँ गए हिमालयन गजेटियर ग्रन्थ –दो में वर्णित गोरिल/गोल्जू मंदिर !
(मनोज इष्टवाल)
(ghorakhal golju temple)
विगत डेढ़ पौने दो बर्ष से घोड़ाखाल के जीवन चन्द्र जोशी उनकी श्रीमती कविता जोशी ने एक प्रोजेक्ट शुरू किया था जिसका नाम है – “गॉड ऑफ़ जस्टिस- गोल्जू देवता”! जिसका शोध व विजुअल डाकुमेंट करने की जिम्मेदारी मैं निभा रहा हूँ. लेकिन हैरत इस बात की है कि जितना सोचता हूँ कि काम अब निबटा तब निबटा लेकिन काम है कि निबटने का नाम ही नहीं लेता. जोशी परिवार परेशान है क्योंकि हर कोई अब उनसे यही कहता रहता है कहाँ गयी आपकी डाकूमेंटरी फिल्म!
मुझे बरबस गोरिल कंडोलिया की शूटिंग के दौरान का वह इत्तेफ़ाक याद आ जाता है जब पौड़ी में गोरिल कंडोलिया की पूजा में कमल किशोर रावत पर गोरिल देवता खेल रहा था तब उन्होंने मुझसे कहा था- “ तू क्या सोच रहा है कि तेरा काम पूरा हो गया, जब तक तू मेरे जन्मस्थान से इसकी शुरुआत नहीं करता तब तक मैं यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं होने दूंगा. अब ये तेरी मर्जी कि तू भी औरों की तरह काम करता है या अपनी तरह का! और अगर तूने अपनी तरह का काम किया तो तू व इस प्रोजेक्ट से जुड़े सभी लोग पूरी धरा में नाम कमाएंगे ये मेरा वचन है”!
तब मैं हतप्रभ था और मुस्कराया भी कि बस अब नेपाल का कुछ अंश ही तो रह गया है बाकी तो हो ही गया है. एक आध महीने में मैं यह प्रोजेक्ट गोरिल कन्डोलिया के श्रीचरणों में ले आऊंगा ! लेकिन आज भी मेरी कलम कहती है अभी कार्य पूरा नहीं हुआ है. हर दिन नए शिरे से सोचता हूँ हर दिन नया कुछ जन्म ले लेता है. जाने मेरी परीक्षा की घड़ी कब समाप्त होगी. कब मैं ऊँ लोगों के विश्वास पर खरा उतर सकूंगा जिन्होंने मुझ पर विश्वास किया!
अब तक गोरिल से जुडी दर्जनों किताबों का रेफरेंस जुटाने के बाद यही लगता रहा है कि हमने ईमानदारी से गोल्जू पर कार्य नहीं किया क्योंकि कुमाऊ और गढ़वाल का आम जनमानस गोल्जू के स्थान सिर्फ चम्पावत, चितई व घोड़ाखाल ही मानते हैं, हमने जी तोड़ मेहनत कर इसके कई स्थान ढूंढ लिए हैं जो बेहद पौराणिक और विभिन्न संदर्भों से जुड़े हैं. जैसे ही तसल्ली हुई कि अब बस कार्य पूरा हुआ और हुनैयनाथ (पश्चिमी नेपाल) में गोल्जू का जन्मस्थल ढूंढकर इसे शीघ्र सबके सम्मुख रखेंगे कि अचानक अटकिन्सन की हिमालयन गजेटियर ग्रन्थ- दो, भाग-2 का हिंदी अंश हाथ लग गया जिसे वरिष्ट पत्रकार व प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के प्रकाश थपलियाल ने अटकिन्सन थपलियाल नाम देकर प्रकाशित किया है के पृष्ठ संख्या 548 से लेकर 552 पर गोरिल/गोल्जू के बारे में अटकिन्सन ने ब्रिटिशकाल में खुलासा किया है कि
(golju temple udaypur)
“ बौरारो के भनारी चौड़, गरुड़, उच्चाकोट में बसोट, मल्ली डोटी में ताड़खेत, कत्युर में गागरगोल, नयाँ में, मानिल में, काली कुमाऊं में गोल चौड़, महर में कुमैर, छखाता में हैडियाखान, चौथान में राणीखेत, चौगॉव में सिलंगी, कत्युर में ठान, उदयपुर पट्टी में दमन्दा उनियाल में गोरिल के मंदिर हैं! गरुड़ इडियाकोट में गोरिल के नाम से इसकी पूजा होती है जबकि बसोट में हैडका गोरिल के रूप में पूजा जाता है. थान में गोरिल जिन्न देवता के नाम से जाना जाता है जो बेहद प्रसिद्ध है. यहाँ बीमार से बीमार व्यक्ति लाया जाता है जो चावल व उड़द की डाल अभिमंत्रित करने के बाद जिन्न देवता या गोरिल को बता देता है कि उसे क्या हुआ और क्यों हुआ.”
मुझे आश्चर्य है कि इन जगहों में से ज्यादात्तर स्थानों के बारे में गढ़वाल कुमाऊं के लोग वर्तमान में जानते भी नहीं हैं और अगर जानते भी होंगे तब भी ब्रिटिश काल के ये चुनिन्दा स्थान आज गोरिल के स्थान के रूप में इतने प्रसिद्ध नहीं हैं. आश्चर्य तो तब होता है जब एटकिन्सन कहीं भी चितई, चम्पावत का वर्णन नहीं करते भले ही घोड़ाखाल का वर्णन संदर्भवश आया है. मुझे लगता है कि एटकिन्सन का काली कुमाऊं का गोरिल चौड़ ही चम्पावत का गोल्जू थान है. मेरे इस लेख के माध्यम से हर उस पाठक लेखक व जानकार से अनुरोध है कि कृपया इन स्थानों के बारे में जानकारी पहुंचाए ताकि गोल्जू पर एक विस्तृत दस्तावेज आपके सम्मुख आ सके.