हिल जातरा एक अनूठी भाव-व्यंजना जो भाव विभोर कर देता है।
पंकज सिंह महर की कलम से-
यह जिला पिथौरागढ का लोक नृत्य है, नाम है “हिरन-चीतल”। यह नृत्य हिलजात्रा के दौरान किया जाता है, मेरे जिले में मां नन्दा पार्वती को अपनी बेटी और भगवान शिव को जवांई के रुप में पूजा जाता है, नन्दाष्टमी के दिन धान के पौधों से गौरा बनाकर गांव में लाई जाती है और नवमी के दिन महेशर, फिर पूरा गांव अपनी दीदी-भिना के आने पर आह्लादित होकर रात-रात भर खेल-ठुलखेल-चांचरी-धम्मो धुस्सा लगाते रहते हैं, त्यौहार बनाया जाता है, सारी विवाहित लड़कियां इसके लिये मायके आती हैं, पूरे परिवार के लिये इसी त्यौहार में नये कपड़े बनाये जाते हैं।
यह लोक नृत्य चार लोगों द्वारा किया जाता है, पहला व्यक्ति हिरन का रुप धारण करता है, उसके मुंह पर मुखौटा लगाया जाता है, दोनों हाथों में लाठी दी जाती है, उसके पीछे तीन युवक आधा झुककर उसका धड़ बनाते हैं, दो बालिकायें उसके धड़ पर रुमाल फेरती रहती हैं, दमुवे की धुन पर यह मनमोहक नृत्य होता है और अंत में हिरन पर देवता अवतरित होते हैं और पूरे गांव को आशीर्वाद देकर यह नृत्य समाप्त होता है।
यह क्यों किया जाता है, मुझे भी ग्यात नहीं है, अभी लोक में बहुत सारे सवाल हैं, जो अनुत्तरित हैं।
फोटो- उड़ई, देवलथल की हिलजात्रा