हिमालयन राज्यों के लिए सेंट्रल हिमालयन डेवलपमेंट काउन्सिल का गठन जरुरी- प्रदीप टम्टा
नई दिल्ली 4 अगस्त (हि. डिस्कवर)
- पर्यावरणविद्ध राधा बहन बोली – पहले हिमालय हमारी रक्षा करता था अब हम हिमालय बचाओ, हिमालय बचाओ चिल्ला रहे है!
- पूर्व मंत्री गांववासी बोले- हिमालय के लिए हिमालय जैसा बनकर दिखाना होगा!
- प्रसिद्ध कृषक युद्धवीर सिंह का कहना है कि हिमालय को खोदने से नहीं संवारने से होगा उसका विकास!
राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा ने हिमालयी राज्यों के लिए अलग नीति बनाने पर जोर देते हुए कहा है कि हिमालयन राज्यों के लिए सेंट्रल हिमालयन डेवलपमेंट काउन्सिल का गठन जरुरी बेहद जरुरी हो गया है क्योंकि इसके बिना इन राज्यों के विकास की बातें बेईमानी है!
(राज्य सभा में सांसद प्रदीप टम्टा)
राज्य सभा में केन्द्रीय हिमालयी राज्य विकास परिषद् विधेयक-2016 पर बोलते हुए उत्तराखंड के राष्ट्रीय कांग्रेस के सांसद प्रदीप टम्टा ने कई तर्कों के साथ के साथ हिमालयी राज्यों की पैरवी करते हुए कहा कि विगत पांच बर्षों से हम लगातार जून से लेकर सितम्बर माह तक आपदा का तांडव झेलते आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि 2013 में सब केदार आपदा में ब्यस्त थे जबकि वे स्वयं अल्मोड़ा से सांसद होने के कारण पिथौरागढ़ धारचूला में आपदा का तांडव झेल रहे थे.
उन्होंने फारेस्ट लैंड को 5 से 10 हेक्टेअर बढ़ा देने की वकालत करते हुए कहा कि हमें आईआईटी रूडकी को सबमिट की हुई रिपोर्ट का भी अध्ययन करना चाहिए. साथ ही हिमालयी राज्यों की पर्यावरणीय महत्तता को भी जान लेना चाहिए ताकि उसकी इको सेंस को समझा जाय!
(पर्यावरणविद्ध राधा बहन, पूर्व सांसद गांववासी व कृषक युद्धवीर सिंह)
हिमालयी मुद्दों को राज्य सभा में उठाते हुए प्रदीप टम्टा द्वारा जिस तरह पैरवी की गयी वह काबिलेगौर कही जा सकती है. उन्होंने हिमालयी राज्यों को 12वीं पंचबर्षीय योजना में शामिल करने की बात उठाते हुए कहा कि इस से हिमालयी राज्यों को प्रति बर्ष १० हजार करोड़ मिल सकता था. उन्होंने हिमालय की आपदाओं के लिए बाँध व हाइड्रो-प्रोजेक्टों को दोषी मानते हुए कहा है कि इन्हीं के कारण विगत पांच बर्षों से उत्तराखंड भीषण आपदाएं झेल रहा है.
पंचेश्वर बाँध निर्माण पर अंगुली उठाते हुए उन्होंने राज्य सभा का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा है कि इस बाँध के बनने से लगभग 31 हजार लोग प्रभावित हो रहे हैं, जबकि 29 हजार लोगों को बाँध क्षेत्र प्रभावित मानने से सरकार ने मना कर दिया है. उन्होंने जोपर देते हुए कहा कि यदि हिमालयी सभ्यता ज़िंदा रखनी है तो हिमालय को हमें ज़िंदा रखना होगा. उन्होंने सभी हिमालयी राज्यों के लिए सेंट्रल हिमालयन डेवलपमेंट कौंसिल गठन करने की मांग की है.
(पर्यावरणविद्ध राधा बहन के साथ लेखक)
वहीँ कई अंतर्राष्ट्रीय पुश्कारों से सम्मानित सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद्ध राधा बहन ने भी बांधों व हाइड्रो प्रोजेक्टों के निर्माण पर नाखुशी जताते हुए कहा कि इन बांधों ने उत्तराखंड की सबसे उपजाऊ घाटियाँ हमसे छीन ली हैं. जहाँ ग्रामीण कृषक समृधि का जीवन जी रहे थे वहां से उन्हें उखाड़कर बाहर का रास्ता दिखा दिया है वहीँ दूसरी ओर चार धामों में निर्मित हो रही चार लेन सडक पर हो रहे बारूद के धमाकों से चट्टानों के खिसकने व बड़े-बड़े बोल्डरों को नदी में लुढकाने पर उन्होंने चिंता जताते हुए कहा कि यह पर्यावरण के लिए सिर्फ उत्तराखंड के लिए ही नहीं बल्कि समस्त देश के लिए खतरा है. जो हिमालय कल तक हमें बचाता रहा आज हम उसे बचाने की बात कर रहे हैं इस से साफ़ जाहिर होता है कि हम किस ओर जा रहे हैं.
वहीँ पूर्व मंत्री व सुप्रसिद्ध समाज सेवी मोःन सिंह रावत गांववासी ने कहा कि हिमालय के लिए हमें हिमालय की तरह सोचना होगा वरना न हिमालय ही रहेगा और न हम ही रह पायेंगे उसके लिए हमें अभी से एक मजबूत नीति बनानी होगी ताकि हिमालयी क्षेत्र में रहने वाले लोग जिस तरह आज जंगल को बचाने दौड़ पड़ते हैं उसी तरह हिमालय की पीड़ा भी समझने लगे.
रवाई घाटी के सुप्रसिद्ध किसान युद्धवीर सिंह का मानना है कि हिमालय को बचाने की मुहीम उसे खोदकर नहीं बल्कि उसका श्रृंगार कर की जा सकती है. हम जितना हो सके उसके प्राकृतिक स्वरूप से छेड़छाड़ करना बंद करें व जंगलों के अलावा उसकी धरती में ऐसे फल फूल के वृक्ष रोपित करें जो पर्यावरणीय जीवों को संग्रहित करने में हमारी मदद करें.