हिमालयन में स्थित लार्ड कर्जन रोड ! जहाँ वायसराय लार्ड कर्जन ने किया था लाल भालू का शिकार..!
हिमालयन में स्थित लार्ड कर्जन रोड ! जहाँ वायसराय लार्ड कर्जन ने किया था लाल भालू का शिकार..!
(मनोज इष्टवाल)
सुनने में कुछ अटपटा या आश्चर्यजनक लगता है न! आखिर लगे भी तो क्यों नहीं क्योंकि जिस हिमालयी भू-भाग में आजाद देश के हम अपनी सड़कें अभी तक नहीं पहुंचा पायें हैं वहीँ आज से एक सदी पूर्व वहां लार्ड कर्जन ने इस हिमालयी भू-भाग में 200 किमी. से भी ज्यादा लम्बा छकडा मार्ग (छ: फुटी रोड) बनवा दिया था ! तब से अब तक यह ट्रेक रूट वायसराय लार्ड कर्जन के नाम से बदस्तूर जारी है! भले ही इसका नाम बदलने के लिए चमोली जनपद में कुछ आन्दोलन भी हुए लेकिन उस से इस पैदल मार्ग के नामकरण पर कोई फर्क नहीं पड़ा!
(वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन बिष्ट के दांयी ओर पड़ता है जेठा खरक)
बात मेरे नंदा राज जात के दौरान लिखे लेख ” घेस के बाद देश नहीं” से पहुँचती हुई आखिर लार्ड कर्जन पर जा पहुंची! घेस में हमारे ही मित्र अर्जुन सिंह बिष्ट की पहल पर सरकार आर्गेनिक सब्जियों के बड़े उत्पादन को हरी झंडी दे चुकी है और यह सब्जी वर्तमान में अंतर्राष्ट्रीय मार्केट तक पहुँच गयी है! पत्रकार से मटरमैन के रूप में हमारे बीच लोकप्रिय हो चुके अर्जुन सिंह बिष्ट ने चर्चा के दौरान बताया कि लार्ड कर्जन के बारे में उनके क्षेत्र में कहा जाता है कि वे घेस के पास और औली बुग्याल के नीचे बसे सबसे दूरस्थ गाँव बलाण के जेठा खर्क सिर्फ लाल भालू का शिकार करने आये थे!
(कैंप खुलारा बुग्याल)
उन्होंने बताया कि किसी अंग्रेज पर्यटक ने यहाँ लाल भालू का शिकार करना चाहा लेकिन वह गोली लगने के बाद भी मरा नहीं और जब यह बात लार्ड कर्जन तक पहुंची तो उन्होंने जेठा खरक के उस बुग्याल में जाने की इच्छा जाहिर की जहाँ लाल भालू था! दरअसल यह आश्चर्यजनक ही है कि लाल रंग का भालू विश्व के किसी भी कोने में नहीं पाया जाता ऐसे में भला वायसराय की यह उत्सुकता क्यों न रहे कि यह यकीनन होता भी है या नहीं!
भले ही आज विश्व के ध्रुवीय भालू (उर्सूस मारीटिमस) एक ऐसा भालू है जो आर्कटिक महासागर, उसके आस-पास के समुद्र और आस-पास के भू क्षेत्रों को आवृत किये, मुख्यतः आर्कटिक मंडल के भीतर का मूल वासी है। यह दुनिया का सबसे बड़ा मांसहारी है और स्र्वाहारी कोडियक भालू के लगभग समान आकार के साथ, यह सबसे बड़ा भालू भी है।एक वयस्क नर का वज़न लगभग 350–680 कि॰ग्राम (12,000–24,000 औंस) होता है, जबकि एक वयस्क मादा उसके करीब आधे आकार की होती है। हालांकि यह भूरे भालू से नज़दीकी रूप से संबंधित है, लेकिन इसने विकास करते हुए संकीर्ण पारिस्थिकीय स्थान हासिल किया है, जिसके तहत ठंडे तापमान के लिए, बर्फ, हिम और खुले पानी पर चलने के लिए और सील के शिकार के लिए, जो उसके आहार का मुख्य स्रोत है! लेकिन इसका रंग भी लाल नहीं होता जबकि यह अन्य भालुओं से अलग होता है! ऐसे में भारत बर्ष के उत्तराखंड में ऐसा भालू होना अपने आप में बेहद कौतुहल का बिषय हुआ!
(लार्ड कर्जन सड़क उच्च हिमालयी क्षेत्र)
शोध के आधार पर जो आंकड़े मैंने इस चर्चा के बाद कई पुस्तकों से जुटाए हैं उस से यह ज्ञात होता है कि तत्कालीन पर्वतारोही यंग फ्रेंक स्मिथ ने यहाँ सर्वप्रथम लाल भालू देखा और उस पर अपना निशाना साधा था जो भालू पर लगने से पूर्व ही भालू अलोप हो गया! यह बिषय चर्चा में तब आया जब फ्रेंक स्मिथ दिल्ली वापस लौटे व वायसराय जॉर्ज नथानिएल कर्जन (लार्ड कर्जन) से चर्चा में उन्होंने बताई!
(आली बुग्याल ! मेरे दांयी ओर से मार्ग जेठा खरक पहुँचता है)
सुनने में यह भी आया कि लार्ड कर्जन सिर्फ और सिर्फ उत्तराखंड आने का एक बहाना ढूंढ रहे थे क्योंकि उन्हें गोपनीय तौर पर ब्रिटिश साम्राज्य में जघन्य अपराध करने वाले प्रिंस से जो मिलना था ! इस राजकुमार को सजा के तौर पर गैरसैण के आस-पास कहीं एकांत जीवन यापन करने के लिए भेजा गया था ! सन 1889 में वायसराय बने लार्ड कर्जन ने सन 1901 के दिसम्बर माह में यह खबर जब उत्तराखंड पहुंचाई कि उन्हें जेठा खरक लाल भालू को देखने जाना है तब उनके लिए हिमालयी भूभाग में उस काल में छकड़ा मार्ग बनाया गया जब आम लोग ढाकरी मार्ग का प्रयोग करते थे! ग्वालदम से क्वांरीपास (कुंआरी पास) तक लगभग 200 किमी. लम्बा यह पैदल मार्ग आज भी लार्ड कर्जन मार्ग के नाम से जाना जाता है जिसमें पाणा, ईराणी, रामणी, सातताल सिंवे बुग्याल बालपाटा का पैदल मार्ग व आली, गोरसों, ताली, खुलारा, कुलिंग, तुगासी होकर क्वांरी पास जाने वाला पैदल मार्ग पड़ता है!
मुन्दोली गाँव के शीर्ष व बालण गाँव से गुजरकर निकलता यह ट्रेक रूट जेठा खरक पहुँचता है जहाँ लार्ड कर्जन ने लाल भालू के दर्शन के लिए कई रातें काली की! शायद तब लार्ड कर्जन ऋषिकेश होकर गंगा और फिर अलकनंदा के तट से न होकर रामनगर, ढिकाला राजा जी नेशनल पार्क होकर ढाकरी छकडा मार्ग से रामनगर, गर्जिया, ढिकुली, मर्चुला, शंकरपुर, धुमाकोट, दीवा, बीरोंखाल, कालिंका, जोगिमढ़ी, ढौंड होते हुए चोपड़ाकोट-चौथान से बिनसर जंगल पार कर गैरसैण क्षेत्र में पहुंचे जहाँ ब्रिटिश काल में चाय के उन्नत बागान थे और यहीं सजायाफ्ता ब्रिटिश राजकुमार तत्कालीन समय में रहता था जिसे उन्होंने चमोली जनपद की मजिस्ट्रेट पावर प्रदान की व तत्कालीन समय में यह मामला काफी उछला व उछाला भी गया!
यहाँ से बिनसर रिज के रास्ते वे ग्वालदम गए और वहां उन्होंने अपना पड़ाव रखा! यह बेहद आश्चर्यजनक है कि मात्र तीन महीने के शोर्ट नोटिस में ही लार्ड कर्जन के लिए मध्य हिमालय से लेकर उच्च हिमालयी क्षेत्र तक 200 किमी. छकडा सडक बनकर तैयार हो गयी जबकि वर्तमान में सारे आधुनिक संसाधन होने के बाद भी हमारी नीतियों में कागजी झोल व कमीशन की मारा-मारी के चलते यहाँ तीन किमी सडक तीन माह में बनकर भी तैयार नहीं होती!
वरिष्ठ पत्रकार अर्जुन बिष्ट बताते हैं कि आज भी उनके गाँव में लाल भालू पर चर्चा होती है व वे बचपन से सुनते आये हैं कि जैसे ही वायसराय लार्ड कर्जन को लाल भालू दिखा और उन्होंने उस पर निशाना साधना चाहा भालू साधू के रूप में प्रकट हो गया व उसने लार्ड कर्जन को कहा कि यह मेरा क्षेत्र है यहाँ जीव हत्या करना पाप है! लार्ड कर्जन नतमस्तक हुए और बोले – मुझे साक्षात भगवान् शिब के दर्शन हो गए! तब घेस बलाण व मुन्दोली बाण सहित कई गाँव के ग्रामीण हलकारे के रूप में उनके साथ थे !
इस घटना की ऐतिहासिक पुष्टि के लिए ब्रिटिश लेखकों की तत्कालीन पुस्तकें पढना आवश्यक है ताकि प्रमाणिकता पर विश्वास किया जा सके लेकिन यह तय है कि यह किंवदन्ती आज भी इस पूरी घाटी में प्रचलित है व पूर्व में इस पर कई गीत भी लिखे गए हैं जो भौतिकवादी इस युग में कहीं दफन हो गए हैं!
हमेशा की तरह नया, ज्ञान वर्धक व प्रेरक आलेख। धन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद।