हिटलर ने ध्यान चंद को देना चाहा था अपनी सेना का शीर्ष पद! ध्यान चंद बोले-भारत का नमक खाया है वहीँ के लिए खेलूंगा!
हिटलर ने ध्यान चंद को देना चाहा था अपनी सेना का शीर्ष पद! ध्यान चंद बोले-भारत का नमक खाया है वहीँ के लिए खेलूंगा!
(मनोज इष्टवाल)
मात्र 16 साल की उम्र में सन 1922 ई. में “फर्स्ट ब्राह्मण सेना” में बतौर सिपाही भर्ती हुए हाकी के जादूगर मेजर ध्यान चंद के खेल से प्रभावित तानाशाह हिटलर ने सन 1936 में उन्हें फाइनल में जर्मनी की हार के बाद बुलाया और कहा – भारतीय सेना में कब तक एक मामूली से पद पर कार्य करते रहोगे! हम अपनी सेना में आपको सर्वोच्च पद देंगे !
तब मेजर ध्यान चंद ने जवाब दिया था-“मैंने भारत का नमक खाया है इसलिए मैं भारत के लिए ही खेलूंगा!” यह बात उस वक्त पूरी दुनिया के अखबारों में सुर्ख़ियों में छा गयी. आपको याद दिला दें कि 15 अगस्त 1936 “बर्लिन ओलम्पिक” के फाइनल मैच में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर सनसनी फैला दी थी. अकेले ध्यान चंद ने 6 गोल दागे थे. भले ही अब कई जगह आंकड़ों में 3 गोल बताये गए हैं.
उस समय ध्यान चंद भारतीय आर्मी में मात्र नायक के पद पर नियुक्त थे. हिटलर उनके खेल से इतने प्रभावित हुए कि उन्हें सेना से सर्वोच्च पद देने का ऑफर रख दिया लेकिन ध्यान चंद ने उसे बेहद विनम्रता से ठुकरा दिया.
टीम के देश लौटने के बाद उन्हें आउट ऑफ़ टर्म प्रमोशन मिला और सन 1937 में वायसराय के कमीशन के साथ उन्हें सूबेदार बना दिया गया. द्वीतीय विश्व युद्ध के दौरान 1943 में उन्हें लेफ्टिनेट नियुक्त किया गया. 1948 में वे भारतीय सेना में कप्तान नियुक्त हुए. और सेवानिवृत्ति काल तक वे मेजर पद पर पहुँच गए.
1948 में उन्होंने 43 बर्ष की उम्र में हाकी को अलविदा कहा. 1905 में जन्मे मेजर ध्यान चंद का 3 दिसम्बर 1979 में लगभग 74 बर्ष की उम्र में स्वर्गवास हुआ उनका दाह-संस्कार किसी घाट में न होकर झांसी के उस मैदान में हुआ जहाँ उन्होंने प्रारम्भिक दौर की हाकी खेली. देश के ऐसे लाल वास्तव में महान हैं जिन्होंने देश के खातिर अपने सुखों की तिलांजलि दे दी!