हाईफीड ने छोटी बिलायत में शुरू करवाया आर्गेनिक सब्जी उत्पादन! ब्रोकेले को देख किसानों के चेहरों पर आई मुस्कान!
हाईफीड ने छोटी बिलायत में शुरू करवाया आर्गेनिक सब्जी उत्पादन! ब्रोकेले को देख किसानों के चेहरों पर आई मुस्कान!
(मनोज इष्टवाल)
यह उस दौर में नयी कहानी की शुरुआत है जब पहाड़ से मैदान में दौड़ लगाने की अंधी शुरुआत शुरू हो गयी है! जिसे जब मौक़ा मिल रहा है वह तभी मैदानी भाग में अपने भाग्य के स्वप्निल पल व परिवार की रोजी रोटी बच्चों की पढ़ाई के लिए अपने पुरखों की उस जमीन मकान को छोड़कर भागने में लगा है जिस जमीन ने उन्हें जाने कितनी पीढ़ियों तक अपनी हरित हरियाली से लहलहाती फसलों की हर बाल से उगे अन्न का रस्वादन करवाया लेकिन राज्य निर्माण क्या हुआ सारी परिकल्पनाएं धरी की धरी रह गई! ठीक उसी तरह जैसे साहित्यकार वीरेन्द्र पंवार के गीत को गाकर लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने आभास करवाया कि “सबि धाणी देहरादूण, होणी-खाणी देहरादूण, छवाड़ा पाड़ी ये गढ़वाल, मारा ताणी देहरादूण” (सब कुछ देहरादून, होना-खाना देहरादून, छोड़ो पहाड़ी इस गढ़वाल को, मारो जोर देहरादून) !
(स्थल निरिक्षण में ओएनजीसी के जनरल मैनेजर शरद झिल्डियाल, पूर्व वाइल्ड लाइफ चीफ श्रीकांत चंदोला व हाईफीड निदेशक उदित घिल्डियाल)
इन शब्दों में छुपा पहाड़ का ऐसा दर्द है जिसे बयाँ तो किया जा सकता है लेकिन दिल को चीर देने जैसे शब्द चीख-चीखकर कहते हैं कि किन मजबूरियों में पहाड़ के लोग अपने पुरखों की विरासत से मुंह मोड़कर मजबूरी में अपनी गुजर बसर करने मैदानी भू-भाग में आ रहे हैं! अमन पसंद ये लोग जिन झंझावातों से लड़कर अपनी कई एकड़ों जमीन छोड़कर एक छोटे से सौ गज के टुकडे में अपनी ग्रहस्थी की शुरुआत कर रहे हैं वह बेहद पीड़ा दायक है!
(पोली टनल क्लस्टर मल्ला बनास)
इन 18 बर्षों में राज्य सरकार ने पहाड़ की ओर ऐसा मुंह फेरा कि पलटकर नहीं देखा! भाजपा की वर्तमान सरकार के एजेंडे में रिवर्स माइग्रेशन की बात हुई थी उस पर काम भी हुआ, एक पलायन आयोग का गठन भी हुआ वह भी पहाड़ की जगह देहरादून में! बजट में रिवर्स माइग्रेशन के लिए योजना का प्राविधान में हुआ घोषणाएं भी होती रही लेकिन वो भी कागजों में!
छोटी बिलायत के नाम से मशहूर डांडामंडल क्षेत्र जोकि उत्तराखंड की राजधानी देहरादून से लगा पौड़ी गढ़वाल का सबसे निकटवर्ती क्षेत्र है के लोग इसी आस में 18 बर्षों तक इन्तजार करते रहे कि अब सरकार कुछ करेगी तब सरकार कुछ करेगी लेकिन नतीजे अभी तक सिफर हैं! तल्ला बनास की श्रीमती साधना रावत कहती हैं कि इस क्षेत्र की इकलौती मांग पेयजल है लेकिन पानी न होने से यहाँ घरों में एक एक करके ताले लगने शुरू हो गये हैं और मीलों फैली खेती बंजर होती जा रही है! कभी कभार अपने घर परिवार का मोह मेहमान के तौर पर उन्हें गाँव खींच तो लाता है लेकिन फिर संसाधनों की कमी के कारण मैदान याद आने लगते हैं! उनका कहना है शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल व रोजगार यहाँ की मूलभूत समस्याएं हैं यदि ये सब हों तो कौन बेवकूफ होगा जो ऐसी शांत सौम्य वादियों को छोड़कर मैदानों की और मुंह करेगा!
ग्रामीणों को पौध बांटते शरद झिल्डियाल (जी.एम. ओएनजीसी)
समस्याओं के तो तांते लगे हैं लेकिन उन्हें किस तरह से इम्प्लीमेंट करें यह उस से भी बड़ी समस्या है! ऐसे में ओएनजीसी हमेशा ही आगे बढकर कार्य करती रही है! हाईफीड नामक देश भर का प्रसिद्ध एनजीओ एक योजना लेकर छोटी विलायत के इस क्षेत्र में सर्वे के लिए पहुंचे व विधवा की तरह सूनी मांग के बंजर खेत कैसे आबाद करें किस तरह का प्रलोभन देकर ग्रामीणों को गाँव तक ही रोका जाय इसके लिए उन्होंने एक छोटी सी कार्ययोजना के तौर पर इम्पलीमेंट करना शुरू किया! ओएनजीसी से सहायता लेकर उन्होंने तल्ला बनास, मल्ला बनास व किमसार गाँवों में नगदी खेती के तौर पर सब्जी उत्पादन का एक प्रयोग शुरू किया! जिसमें बंजर खेतों में कम ऊँचाई के कई मीटर लम्बे पोली टनल क्लस्टर हाउस बनाए। ग्रामीणों ने भी अथक मेहनत की! उसमें ब्रोकली नामक विदेशी गोभी का उत्पादन, लाल पीली शिमला मिर्च, टमाटर इत्यादि का आर्गेनिक तरीके से उत्पादन के लिए यहाँ के ग्रामीणों को पौध उपलब्ध करवाए गई! शुरुआत दौर में ग्रामीणों को बेहद कठिनाई का सामना करना पड़ा क्योंकि जंगली जानवरों जिनमें सुअर, काखड इत्यादि ऊँचे पोली टनल क्लस्टर हाउस में घुस जाते व उन्हें तोड़ डालते!
पोली टनल क्लस्टर के अंदर उगी ब्रोकली व अन्य सब्जियां
मल्ला बनास के पूर्व प्रधान बचन सिंह बिष्ट व पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य वीरेन्द्र बन्धु कहते हैं कि ग्रामीण दिन भर बंजरों को सुधारने के लिए उसमें काम करते लेकिन खेतों की चौड़ाई ज्यादा न होने से उसमें ऊँचे पोली टनल क्लस्टर हाउस कैसे बनाए पहली दिक्कत यह आ रही थी और जो बना भी रहे थे वहां जानवर उन्हें सुबह होने ही तोड़ डालते थे! ऐसे में यह तय हुआ कि अपने देशी स्टाइल के पोली टनल क्लस्टर हाउस बनाए जायं जिसमें ज्यादा से ज्यादा लोगों को समिति में शामिल कर टीम वर्क हो ताकि ज्यादा लोगों को काम मिल सके और यह प्रयोग सफल भी हुआ!
मल्ला बनास की ग्राम प्रधान श्रीमती बिमला देवी बिष्ट का कहना है कि यह तो सत्य है कि किसी भी योजना को फलीभूत करवाने में वर्तमान में कई शुरूआती दिक्कतें आती हैं. लोग काम शुरू होने से पहले ही कितना मिल रहा है कितना खा रहा है! उसका क्या फायदा! सहित जाने क्या-क्या बातें लेकर चलते हैं! अभी हाल ही में पौड़ी से कृषि अधिकारी डॉ. रजनीश सिंह यहाँ आये थे जिन्होंने हमें बताया था कि किस तरह पोली हाउस संचालित किये जा सकते हैं! उन्होंने हमें जानकारी दी कि पूरे उत्तराखंड में हमारी ग्राम सभा के ये पोलीटनल कलस्टर सबसे बड़े हैं जो बेहद सुलभ लागत से बनाए गए हैं! उन्होंने इनके निर्माण की तकनीक में भी ग्रामीणों की सहायता की!
(पाली हाउस की बिशेषताएँ समझाते उदित घिल्डियाल)
वहीँ हाईफीड के निदेशक उदित घिल्डियाल कहते हैं कि शुरूआती दौर में यहाँ के ग्रामीणों ने सोचा कि जिसे तरह मनरेगा में उन्हें काम के बदले ध्याड़ी मिलती है यहाँ भी वही होगा! कुछ समय बाद हमसे सभी ने ध्याड़ी मांगनी शुरू कर दी! उन्हें समझाया भी कि हमारी जिम्मेदारी आपको संसाधन मुहैय्या करवाने की है इसमें ध्याड़ी का प्राविधान नहीं है ! भला ग्रामीण कहाँ मानने वाले थे! एक तो उनके द्वारा अथक मेहनत से पोली टनल क्लस्टर हाउस बनाए जा रहे थे दूसरा पौध उपलब्ध करने के बाद जब अंकुर आ रहे थे जंगली जानवर आकर उन्हें तबाह कर देते तब सचमुच हौसला टूटने जैसी बात होती ही है! फिर बमुश्किल हाईफीड ने अन्य फंड से कटौती कर जैसे तैसे ग्रामीणों की ध्याड़ी की व्यवस्था की और उन्हें समझाया कि जो भी साग सब्जी उग रही है वह आप लोगों की अपनी है! वे कहते हैं कि एक माता जी शिकायत लेकर आई कि बेटा तूने कैसी पौध दी, उसमें सफ़ेद गोभी की तरह हरी गोभी लग रही है! हम लोगों की सारी मेहनत बर्बाद जा रही है! फिर मैंने देहरादून मंडी में जाकर ब्रोकली को हाथ में लेकर उसका वीडिओ बनाया व उसके व आम गोभी के रेट पूछे! वह वीडियो गाँव में दिखाया तब उन्हें संतोष हुआ कि यह गोभी आम गोभी से काफी महंगी है!
(ब्रोकली उत्पादन)
तल्ला बनास के पूर्व क्षेत्र पंचायत सदस्य विजेंद्र सिंह पंवार व ग्रामीण बिजेंद्र सिंह रावत कहते हैं कि यहाँ दिक्कत पहले जानवरों की थी अब उनके लिए घेरबाड़ की तो पानी की समस्या के कारण पौध मुरझा रही है! वहीँ किमसार की उप-प्रधान सुमन देवी कहती हैं कि मेहनत तो इसमें हम जैसे भी करें कर लेंगे लेकिन जंगली जानवरों से इसे कैसे बचाएं रात भर तो चौकीदारी हो नहीं सकती! वही बात किमसार की श्रीमती आरती देवी, लक्ष्मी देवी, संगीता बिष्ट, वेदप्रकाश कंडवाल व मल्ला बनास की आशा देवी, अमृता बिष्ट इत्यादि का कहना है!
(पाली हाउस निरिक्षण)
पोली हाउस के निरिक्षण में आये ओएनजीसी के जनरल मैनेजर शरद झिल्डियाल ने ग्रामीणों से एक एक बात की बेहद बारीकी से जानकारी ली व पोली हाउस में उत्पादित सब्जियों का निरिक्षण करते हुए संतोष व्यक्त किया! उन्होंने कहा कि जो भी दिक्कतें यहाँ वर्तमान में उत्पादन में आ रही हैं वह मानवजनित नहीं हैं क्योंकि आप लोगों के अथक परिश्रम से ही आज आप सबके पोली हाउस में दुनिया भर की सबसे महंगी कही जाने वाली ब्रोकली नामक गोभी का उत्पादन शुरू हो गया है! इसे सिर्फ अपने खाने तक ही सीमित न रखें बल्कि आने वाले समय में इसे आय का जरिया भी बनाए! उन्होंने मल्ला बनास, तल्ला बनास व किमसार के प्रत्येक पोली टनल क्लस्टर हाउस का निरिक्षण किया और पाया कि जिस वातावरण में इन में कार्य हुआ है वह बेहद कठिन है क्योंकि पानी के संग्रहण के लिए कोई टैंक नहीं हैं लोग बाल्टियों और मग से पानी डाल रहे हैं!
(स्थल निरिक्षण में ओएनजीसी के जनरल मैनेजर शरद झिल्डियाल, पूर्व वाइल्ड लाइफ चीफ श्रीकांत चंदोला व हाईफीड निदेशक उदित घिल्डियाल)
वहीँ दूसरी ओर पूर्व वन्य जीव प्रतिपालक श्रीकांत चंदोला ने भी ग्रामीणों से बात करते हुए कहा कि हम सबकों इन वादियों घाटियों से बेपनाह प्यार होना चाहिए प्रकृति का हर पत्ता, पुष्प, झाडी हमारे जीवन की साँसों में ताजगी देंने वाला पौधा या पेड़ है ! अगर ये हैं तो हम हैं इनमें हर किसी में औषधीय गुण ब्याप्त हैं जब तक हम इन्हें अपने बच्चों जैसा प्यार दुलार नहीं देंगे तब तक मेहनत बेकार है चाहे वह सब्जी उत्पादन की बात हो या गाय भेड़ बकरी भैंस के चारे में शामिल भेमल जैसा बहुगुणी प्रजाति का पेड़! उन्होंने कहा कि ये बंजर उन्हें भी उतनी ही पीड़ा दे रहे हैं जितनी आप लोगों को देते होंगे! हम शुरुआत तो करें पुनः उन्हें आबाद करने की! पुनः हमें जुटना पडेगा क्योंकि आने वाला कल इसी पर निर्भर भी है!
(ब्रोकली उत्पादन दिखाते पूर्व ग्राम प्रधान बचन सिंह बिष्ट)