हरसू मामा तंदयाई च तान्दा…..! जौनसार लखवाड़ जब मीर रंजन नेगी पर फिल्माया गया यह गीत।
हरसू मामा तांड्याई च तान्दा…..! जौनसार लखवाड़ जब मीर रंजन नेगी पर फिल्माया गया यह गीत।
(मनोज इष्टवाल)
प्रसिद्ध हाकी खिलाडी मीर रंजन नेगी और नीलम चौहान पर जौनसार के लखवाड गॉव में फिल्माए गए इस गीत ने जितनी सुर्खियाँ बटोरी उतनी ही परदे के पीछे की गयी कसरत आज भी मुझे याद है। दरअसल सुप्रसिद्ध गढ़वाली निर्देशक अनिल बिष्ट के लिए यह गीत इसलिए फिल्माना कठिन नहीं था कि इसकी क्या रूपरेखा हो बल्कि इसलिए कि पहली बार अंतर्राष्ट्रीय हस्ती जिसकी जीवनी पर आधारित फिल्म “चक दे इंडिया” बन चुकी है उस अंतरराष्ट्रीय छवि मीर रंजन नेगी पर यह गाना फिल्माया जाना था।
राजू गुसाईं हमारे पत्रकार साथी से मीर रंजन नेगी जी ने इच्छा व्यक्त की थी कि वो लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के एक गीत में अभिनय करना चाहते हैं वह भी बिना किसी मेहनताना लिए बगैर..।अब समस्या यह थी कि जौनसारी लुक की समझदार लड़की जो जल्दी से पिक करे कहाँ मिले!
मेरा फोन बजा देखा अनिल बिष्ट का है! बात हुई उन्होंने अपनी इच्छा जाहिर की कि लोकेशन और अभिनेत्री की ब्यवस्था करनी है! समय बहुत कम है, फिर जनगायक नरेन्द्र सिंह नेगीजी की आवाज कानों में गूंजी- हाँ जी इष्टवाल जी ध्याखा भई जल्दी करा ये काम! आज्ञा मिली थी दिमागी घोडा दौड़ा और अनिल बिष्ट को बोला फ़ौरन पहुँचों! लोकेेशन एकाएक दिमाग में क्लिक कर गई। मुझे देहरादून से सबसे निकटवर्ती लोकेशन जौनसार बावर के सुप्रसिद्ध गांव लखवाड़ की ही लगी। और फिर क्या था फोन पर गांव के स्याणा शूरबीर सिंह चौहान व उनके भाई भाजपा नेता दिग्विजय चौहान से बात हुई। उन्होंने हामी भरी तो बात लोकेशन की बन गयी।
यहाँ सूचना विभाग में कार्यरत हमारे मित्र उप निदेशक सूचना कलम सिंह चौहान मेरे काम आये और उन्होंने प्रतिभाशाली उभरती अपने क्षेत्र की कलाकार नीलम चौहान का नाम सुझाया। नीलम का अक्स जैसे ही आँखो के आगे आया मैंने सेकंड नहीं लगाया और कहा नीलम के पिताजी व नीलम का नम्बर व घर का पता दीजिये। कलम सिंह चौहान के एक गुण की तारीफ तो करनी ही होगी। बात जौनसार बावर की लोकसंस्कृति की हो तो यह व्यक्ति एक सेकेंड नहीं लगाता अपने क्षेत्र के प्रमोशन में। हमें दोनों के नम्बर मिले। हम नीलम के घर पहुंचे। आम जौनसारी सभ्यता के तहत घर ने पूरा मान सम्मान दिया। अनिल बिष्ट को नीलम चौहान देखते ही पसंद आ गयी।और लोकेशन का तो क्या कहना .
जब हम लखवाड पहुंचे तो स्वागत के लिए पूरी ख़त खड़ी दिखी। लोग मीर रंजन नेगी को कम जानते थे लेकिन लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी की झलक पाने को आतुर थे। जब फिल्मांकन शुरू हुआ और बार-बार हर लाइन बाद कट ओके रिटेक चलता रहा तब धीरे धीरे जनता कम होती गयी! एक सज्जन तो बार-बार चिल्लाकर यह कह रहे थे कि इसकी जगह मुझे खड़ा करके देखो, एक मिनट में पूरा गाना निबटा दूंगा। अब उन्हें कैसे समझाएं कि शूटिंग ऐसे ही चलती है। यहां जौनसार बावर के प्रसिद्ध रंगकर्मी व लोककलाकार नन्द लाल भारती भी अपनी टीम के साथ पहुंचे थे।
अहा…. सारी टीम के खाने की व्यवस्था गॉव के सयाना ख़त सयाना शूरबीर सिंह चौहान के घर में थी। आज भी वहां के लोगों की सहृदयता याद आती है..जबकि मैं अन्दर से डरा हुआ कि लखवाडियों के बारे में कहते हैं कि वो अपने गॉव में किसी को नहीं पूछते।व उनके यहां एक कहावत चरितार्थ है कि मेरे घर आओगे तो क्या लाओगे अपने घर बुलाओगे तो क्या दोगे। यह मिथक टूटा और झूठ भी। धन्य है जौनसार की माटी और वहां की सुसंसकृत जनता जिसकी रग-रग में सांस्कृतिक परिवेश समाया हुआ है.