हम होंगे सिनला पार एक दिन…! किस्सागोई…धारचूला से दार्चुला पहुंचे उत्तराखण्डी बाराती का।

( ट्रेवलाग……केशव भट्ट)

हमारे पास समय था तो नदी पार दारचूला जाने की योजना बनी। वैसे भी पार हमारे लिए एक अजूबा विदेश ही था, जिसके बारे में बचपन से सुनते आए थे कि नेपाल के बाज़ार में मिलने वाले जूते बड़े मजबूत होते हैं। वहां तमाम अजीबोग़रीब सामान बहुत सस्ते में मिल जाता है। नेपाल की ऐसी कई सारी कहानियां मन में बसी थीं तो काली नदी के पार न जाने की कोई वजह न थी। नीचे उतर पुल के गेट पर नाम-पता लिखाते वक्त सुरक्षा कर्मियों से पूछ लिया, “कुछ सामान खरीद कर ला सकते हैं…? जब्त तो नहीं हो जाएगा।” मुस्तैद एसएसबी गार्ड ने मुस्कुराते हुए आश्वासन दिया, “पर्सनल यूज की चीज़ लाने की मनाही नहीं है, हां! बिजनस के लिए लाओगे तो ज़ब्त हो जाएगा.” झूला पुल पर आगे बढ़े। काली नदी पूरे उफान पर थी. पुल पर आने-जाने वाले लोगों का तांता लगा था। पुल पार नेपाली पुलिस से रूबरू हुए. उनसे वापसी का वक्त पूछा तो उन्होंने बड़ी हिक़ारत से टाइम बताया। पुल की दीवारों पर माओवादियों के झंडे-बैनर भी लगे दिख रहे थे।

अब हम भारत के पड़ोसी देश में थे। विदेश में होने की मेरी कल्पनाओं को तत्काल झटका लगा जब बाजार के शुरू में ही दोनों ओर शराब की दुकानों के साथ-साथ चाय के खोखों जैसे बार ग्राहकों से भरे हुए थे। इन खोमचा बारों में खोमचे की मालकिन उबले अंडे छील कर ग्राहकों को परोस रही थी, जबकि मालिक उन्हें शराब दे रहा था। सीढ़ियों से लेकर भीतर की कोठरी तक खोमचे ग्राहकों से पैक थे। मय के दीवाने मय में डूब अपनी गप्पों को गालियों से सजाकर पेश करने में मशगूल थे। मालकिन निर्विकार भाव से अपना काम कर रही थी. लगता था जैसे वर्षों से काम करते हुए उसे इसकी आदत पड़ गई थी, और वैसे भी यह उसका रोजगार था, जिससे उसकी गृहस्थी की गाड़ी चलती थी।

आगे सीढ़ीनुमा रास्ते के इर्द-गिर्द बाजार बसा हुआ था जिनमें से एक बांई तरफ ऊपर की ओर जाकर करीब सौ मीटर के बाद ही खत्म हो गया था। यत्र-तत्र-सर्वत्र शराब की दुकानें खुली हुई थीं। अद्भुत दृश्य था। यहां कोई भी बंदा कहीं पर भी एक चादर पर बोतलें रखकर अपना बार चला सकता है! साथ में एक स्टोव और अंडों का कैरेट, दीवाने आएंगे, पीने के साथ अंडे का चखना लेंगे और वहीं किनारे लोट जाएंगे। किसी को कोई शिकायत नहीं। हां… ज्यादा ग्राहक लुढ़क गए तो दुकान का स्वामी चादर और सामान समेटकर किसी दूसरी जगह बार जमा लेता है। बाज़ार से आगे ग्रामीण बस्तियां और सीढ़ीनुमा खेत दिखे. वापस लौटकर दूसरी बाज़ार में पहुंचे। यहां भी काफी चहल-पहल थी। साथी पूरन ने एक दुकान से मज़बूत और बड़ी सी छाता ले ली। मैंने भी एक रोबोटिक लाइट खरीदकर विदेश में सामान खरीदने की रस्म अदा की।
मुझे उन मित्रों की बातों पर हंसी आ रही थी, जिनके मुताबिक नेपाल में खासतौर पर दारचूला में ओरिजनल और सस्ता सामान मिलता है। अब हम इस विदेशी बाजार में थे।

दुकानदारों से बातचीत में पता लगा कि यहां ज्यादातर सामान दिल्ली से ही आता है। कोई चीज़ यहां सस्ती है भी तो वह है सिर्फ शराब। मज़े की बात तो यह है कि यहां के ज्यादातर व्यापारी भी भारतीय मूल के हैं, जिनके घर भारतीय धारचूला में हैं। हर रोज सुबह दुकान खोलने के लिए वे नेपाल के दारचूला में आते थे और और शाम को वापस अपने घर चले जाते।

अंधेरा घिरने लगा और दुकानों के बल्ब टिमटिमाने लगे। यहां मोबाइल की अच्छी सुविधा है, जबकि पार धारचूला में आज भी लोग नेपाली सिम से मंहगी दरों पर फोन करने को मजबूर हैं।

भारत की तरह नेपाल में भी ठगी के कई किस्से मशहूर हैं। एक बार सुना कि बागेश्वर से एक बारात धारचूला आई। कुछ लोग विदेश घूम आएंगे की तर्ज पर उस बारात में शामिल हो गए. बरात जब धारचूला पहुंची तो वे बांकी बारातियों को नाचता-गाता छोड़ काली पार दारचूला की विदेश यात्रा को निकल गए। जब उन्होंने वहां हर जगह ‘बार’ देखे तो फिर वे बाकी चीजें देखना भूल गए। खाते-पीते उन्हें पता ही नहीं चला कि पुल के गेट बंद हो गए हैं। शाम को झूमते हुए जब वे गेट के पास पहंचे तो नेपाली प्रहरी से भिड़ गए। उन्होंने खुद को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बताते हुए उनके सांथ की जा रही बदसलूकी के लिए उन्हें लताड़ना शुरू कर दिया। उन्होंने अपना मोबाइल निकालकर उत्तराखंड के तात्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी को काल्पनिक फोन लगाया और कुछ देर तक बातें करने का नाटक भी किया। उनकी हरकतों को देखकर सख्त चेहरे वाले नेपाल प्रहरी भी मुस्कराए बिना न रह सके। प्रहरियों का पाला हर रोज इस किस्म के नमूनों से पड़ता ही था। उनकी हंसी का कारण यह था कि भारत के मोबाइल तो पार भारतीय धारचूला में भी काम नहीं करते हैं और यह तो फिर नेपाल था।

गेट नहीं खुलना था तो नहीं खुला। मजबूरन बराती ये कह वापस लौटे गए कि उनके साथ की गई गुस्ताखी को वे विश्व पटल में उठाएंगे। किसी को बख्शा नहीं जाएगा। उन्होंने वहीं एक होटल में कमरा लिया। रात्रि भोजन के सांथ मदिरापान के बाद उन्होंने एक नेपाली लड़के से ‘इच्छा’ जताई कि वे दिनभर की भागदौड़ी से थकान महसूस कर रहे हैं.. क्या कुछ मालिश का ‘इंतजाम’ हो पाएगा? नेपाली नौजवान मौके की नज़ाकर को भांपकर अग्रिम मुद्रा के नाम पर दो हजार की भारतीय रुपए झटक लिए। आधे घंटे का ‘इंतजाम’ के साथ आने का मीठा वादा कर नौजवान वहां से जो फुर्र हुआ तो फिर लौट के नहीं आया उसके इंतजार में होटल के कमरे का दरवाजा खुला छोड़, बिस्तर पर अधलेटे पड़े वे साहेबान मालिश की मीठी कल्पनाओं में खोए रहे. (जारी..)

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