हम अपनी जिम्मेदारी को प्रेसर का नाम नहीं दे सकते हैं!
हम अपनी जिम्मेदारी को प्रेसर का नाम नहीं दे सकते हैं!
(मनोज कुमार श्रीवास्तव सहायक निदेशक, सूचना की कलम से )
अपने प्रेसर को एडिक्सन का नाम नहीं देना है। हम अपनी जिम्मेदारी को प्रेसर का नाम नहीं दे सकते हैं। हमें इस एडिक्सन से बाहर निकलना है। इसलिए हम एडिक्सन से बाहर निकलने के बारे में सोचें। हम जिस स्थिति में हैं, उसके बारे में ने सोचें बल्कि हमें जो बनना है उसके बारे में सोचें। मुझसे सिगरेट नहीं छूटती है, क्योंकि हम बार-बार अपने शब्दों में यह बोलते रहते हैं कि मुझे सिगरेट के एडिक्सन हैं। मुझे सिगरेट के एडिक्सन हैं, यदि इस वाक्य का बार-बार प्रयोग करते हैं तब हमसे सिगरेट कभी नहीं छूटेगी।
सुबह-सुबह मैं अखबार रोज के समय पढ़ता हूॅ, क्योंकि मुझे सुबह-सुबह अखबार पढ़ने की आदत है। यह आदत हमारी एडिक्सन है। यह कह कर हमसे सुबह-सुबह अखबार पढ़ने की आदत नहीं छूटेगी। मैं एडिक्टटैड हूॅ यह कहकर एडिक्सन हमारे जीवन का भाग बन जाता है। आज कुछ ऐसी चीजों के लिए भी एडिक्सन का प्रयोग किया जाता है। फिर भी इसके लिए हम एडिक्टेटैड नहीं हैं। अभी तक यह एडिक्सन हमारे जीवन की रियल्टी नहीं बना है। लेकिन बार-बार यह कहने से कि मैं एडिक्टटैड हूॅ, यह कहकर हम इस एडिक्सन को अपने जीवन की रियल्टी में बना लेते हैं।
जैसे, जब हम कहते हैं कि सुबह-सुबह हमें चाय मिलनी ही चाहिए। क्योंकि मुझे चाय की एडिक्सन है। जब हम एडिक्सन शब्द का प्रयोग करते है और यदि हमें उस समय चाय नहीं मिलती तब उसी समय हमारे सर में दर्द प्रारम्भ हो जायेगा। यदि वास्तव में यह एडिक्सन हमारे जीवन की रियल्टी बन चुकी है। हम अपने को अपने एडिक्सन पर फोकस न करें बल्कि एडिक्सन से बाहर निकलने के उपाय पर फोकस करें। अर्थात् यदि हम वास्तव में बीमार हैं तब अपने को बीमार न मानते हुए बीमारी से बाहर आने का प्रयास करेंगे।
आई0एम0 मैं हूॅ, ये दो शब्द बहुत शक्तिशाली हैं। इसके बाद हम जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं वह हमारे जीवन की रियल्टी बन जाती है। सबसे पहले मनुष्य इस जीवन मे आता है, इसके बाद मनुष्य स्वयं को वहीं पाता है जो अभी तक वह मनुष्य स्वयं को बनाया होता है। इसलिए मनुष्य ही शक्तिशाली है, ना कि मनुष्य का एडिक्सन
आज के दुनिया मंे अनेक बुराई है। लेकिन यदि हम बुराई पर बार-बार चर्चा करेंगे तब यह बुराई हमारे जीवन का हिस्सा बन जायेगी।
एडिक्सन से बाहर निकलने के लिए हम अपने को सुझाव दे सकते हैं। कोई व्यक्ति बढ़ी बात को भी छोटी बना देता है। कोई व्यक्ति छोटी बात को भी बड़ा बना देता है। कोई व्यक्ति यह कहता है कि मेरे लिये छोटा बैग भी भारी है। भले ही सारी दुनियाँ इस छोटे बैग को एक अंगूली से उठा ले लेकिन यह बैग हमारे लिये भारी है। चाहिए सभी लोग हमें जीवन भर यह राय देते रहेंगे कि यह बैग छोटा है परन्तु हमें यह बैग बड़ा ही लगेगा। क्योंकि हम दूसरों की तुलना में कमजोर हैं। हम जितना अधिक कमजोर होंगे उतना ही अधिक दूसरों की बात से जल्दी डिस्टर्ब होंगे।
लोग राय देते हैं कि यह बैग छोटा है इसे उठा लो। लेकिन हम यह बैग तब तक नहंी उठा सकते हैं जब हम अपने शरीर को शक्तिशाली नहीं बना लेते हैं। अलग-अलग व्यक्तियों के लिए उठाये जाने वाले सामान का भार अलग-अलग होगा। यह अलग अलग व्यक्तियों की कैपेसिटी पर निर्भर करता है। हमारी कैपेसिटी तभी बढेगी जब हम अपनी कैपेसिटी का उपयोग करेंगे। सभी व्यक्तियों की कैपेसिटी समान होती है। परन्तु अपनी कैपेसिटी का उपयोग न करने के कारण हम कहने लगते हैं कि हमारी कैपेसिटी कम है।
हमें लोग राय देते हैं कि भूल जाओ, इस बात को खत्म करो, छोड़ इसे कूड़े दान में फेंको। यह कहना दूसरे के लिए आसान है। क्योंकि राय देने वाले को राय लेने वाले की कैपेसिटी का पता नहीं है।
हमारी कैपेसिटी ही हमें बताती है कि हम कितना लोगों को एक्सेप्ट करते हैं और दूसरों की बातों पर रियेक्ट नहीं करते हैं। कितना अधिक हम लोगों की प्रशंसा के लिए भूखे होते हैं। कितना अधिक हम लोगों को खुश करने में लगे रहते हैं। यदि हम अपनी कैपेसिटी को मजबूत नही करते हैं तब हमें दोस्त से अधिक दुश्मन याद आयेंगे।
जब तक हम माफ करने का आदत नहीं डालते तब तक हमें अपनी गलती को भूलना मुस्किल है। जब तक हम स्वयं को माफ नहीं कर लेते दूसरों को माफ करना मुश्किल है। जब हम कहते हैं मैं अपने को माफ नहीं कर सकता तब हमारा इस विचार के साथ जीना मुस्किल हो जायेगा। हम दूसरों से भाग सकते हैं पर अपने आप से नहीं भाग सकते हैं। इसलिए सबसे पहले अपने से रिश्ता अच्छा कर लें। सबसे पहले अपने को माफ कर दें। एक सीन जो बीत चुका है उसे बार-बार याद न करें। हम पुरानी गलती के कैद में अपना जीवन न जियें। बार-बार पुरानी बात को याद करने की आदत को छोड़िये। शान्त और मानसिक रूप से स्तिर व्यक्ति अपनी बात प्रभावी ढंग से दूसरों तक पहुचा सकता है। हमारी आन्तरिक स्थिरता हमें एक्सेप्टेंस, टाॅलरेंस और एडजेस्टमेंट की शक्ति देता है।
हम और अधिक अच्छे कपड़े पहनेंगे लेकिन इसका उद्देश्य लोगों की प्रशंसा प्राप्त करना नहीं है। बल्कि आत्म प्रशंसा प्राप्त करना है। दो व्यक्तियों के मन की स्थिति का प्रभाव रिश्तों में दिखाई देता है। इसलिए कम से कम एक व्यक्ति के मन की स्थिति का अच्छा होना अनिवार्य है।
आई0एम0 बिजी की जगह आई0एम0 ईजी का प्रयोग करना चाहिए अन्यथा बिजी होना हमारे जीवन की सच्चाई बन जाती है। बिजी रहें परन्तु ईजी रह कर बिजी रहें। हम अपनी जिम्मेदारी को प्रेसर का नाम नहीं दे सकते हैं।