हजार रुपया मात्र पर गुजर-बसर कर रही है उत्तराखंड की पहली लोकगायिका! जिलाधिकारी के हस्तक्षेप के बाद एक साल बाद मिला गैस कनेक्शन!

हजार रुपया मात्र पर गुजर-बसर कर रही है उत्तराखंड की पहली लोकगायिका! जिलाधिकारी के हस्तक्षेप के बाद एक साल बाद मिला गैस कनेक्शन!

(मनोज इष्टवाल)
उत्तराखंडी लोकगायन की तीजन बाई के नाम से मशहूर व ऋतुरैण गायनशैली की अद्भुत गायिका पिथौरागढ के मूनकोट विकास खंड के गाँव क्वीतड की कबूतरी देवी विगत दिनों फिर चर्चा में आई जब एक साल बाद भी उन्हें रसोई गैस कनेक्शन आबंटित नहीं हुआ और वह अपनी बेटी हेमंती को लेकर जिलाधिकारी एस. रविशंकर से मिलने जा पहुंची. जिलाधिकारी पिथौरागढ़ कार्यालय द्वारा प्राप्त जानकारी से पता चला है कि जिलाधिकारी के तत्काल आदेश के बाद उन्हें गैस कनेक्शन तल्ली  डुंगरी गैस एजेंसी से जारी कर दिया गया है. जो एक अच्छी खबर है.
कबूतरी देवी  का आकाश वाणी नजीबाबादव लखनऊ  का वह दौर भला कौन भूल सकता है जब उत्तराखंड की प्रथम महिला लोकगायिका कबूतरी देवी की हाई पिच आवाज रेडियो में खनकती थी. लगभग 5-6 काले से गाना शुरू करने वाली कबूतरी देवी कभी कभी 8वें काले तक पहुँच जाती थी जोकि एक महिला गायिका के लिए काफी कठिन माना जाता है क्योंकि हाई पिच गायन में लय सुर दोनों ही टूटने का डर बना रहता है. आज भी उनके यह लोकगीतों के ये शब्द-“आज पनि झौं-झौ, भोल पनि झौं-झौं, पोरखिन त न्है जूंला” और “पहाड़ों को ठण्डो पाणि, कि भलि मीठी बाणी”। मनोमस्तिष्क पर गूजने लगते हैं.

(फाइल फोटो- कबूतरी देवी)
इस से बड़ा आश्चर्य क्या हो सकता है कि आज भी इस लोकगायिका के गाँव पहुँचने के लिए मीलों पैदल चलना पड़ता है. चम्पावत के मिरासी (लोकगायन शैली का परिवार) परिवार में जन्मी कबूतरी देवी को यह आवाज उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि की दें है क्योंकि उन्होंने गायन कला व हारमोनियम बजाने की संगीत कला गाँव के ही मिरासी समाज के देवराम, देवकी देवी व अपने पिता रामकाली से प्राप्त की जो उस समय के सुप्रसिद्ध लोकगायक/लोककलाकार माने जाते थे.
संगीत में प्रयुक्त पहाड़ी गीतों में प्रयुक्त होने वाले रागों का निरन्तर अभ्यास करने के कारण इनकी शैली अन्य गायिकाओं से अलग है। विवाह के बाद इनके पति दीवानी राम जी ने इनकी प्रतिभा को पहचाना और इन्हें आकाशवाणी और स्थानीय मेलों में गाने के लिये प्रेरित किया। उस समय तक कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थीं। 70 के दशक में इन्होंने पहली बार पहाड़ के गांव से स्टूडियो पहुंचकर रेडियो जगत में अपने गीतों से धूम मचा दी थी।
लोकगायिका कबूतरी देवी विशेषतः ऋतु आधारित गीत (ऋतुरैंण) गाया करती हैं, उन्होंने जो भी गीत गाये वे दादी-नानी से विरासत में मिले प्रकृति से संबंधित लोकगीत हैं। आकाशवाणी के लिये लगभग १०० से अधिक गीतों में ज्यादातर गीत ऋतुरैण शैली में गाने वाली कबूतरी देवी जहाँ आज भी पूरे उत्तराखंडी समाज के दिलों में राज करती हैं वहीँ दूसरी ओर उनकी आर्थिक स्थिति में अभी तक कोई बहुत ज्यादा सुधार नहीं हुआ है. उनके गीत आकाशवाणी के रामपुर, लखनऊ, नजीबाबाद और चर्चगेट, मुंबई के केन्द्रों से प्रसारित हुये। उन दिनों उन्हें इन केन्द्रों तक उनके पति लेकर जाते थे, जिन्हें वे नेताजी कहकर पुकारती थी और एक गीत की रिकार्डिंग के उन्हें २५ से ५० रुपये मिलते थे। अपने पति की मृत्यु की बाद इन्होंने आकाशवाणी के लिये और समारोहों के लिये गाना बन्द कर दिया था। इस बीच इनका एक मात्र पुत्र पहाड़ की नियतिनुसार पलायन कर गया और शहर का ही होकर रह गया। लेकिन पहाड़ को मन में बसाये कबूतरी जी को पहाड से बाहर जाना गवारा नहीं था।

(कबूतरी देवी अपनी पुत्री हेमंती के साथ)
इस कारण उन्होंने अपने २० साल अभावों में गुजारें, वर्ष २००२ में नवोदय पर्वतीय कला केन्द्र, पिथौरागढ़ ने उन्हें छोलिया महोत्सव में बुलाकर सम्मानित किया वहीँ लोक संस्कृति कला एवं विज्ञान शोध समिति ने अल्मोड़ा में सम्मानित किया। पद्मश्री शेखर पाठक की पहाड़ संस्था द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया। लेकिन एक बार भी उत्तराखंड के सरकारी महकमें ने यह जहमत नहीं उठाई कि पहाड़ की इस प्रथम लोकगायिका को कोई ऐसा लोकसम्मान दिया जा सके जिस से उसकी आर्थिक स्थिति में सुधार आ सके व पारिवारिक भरण पोषण में दिक्कत न आये. भले ही वर्तमान में संस्कृति विभाग की निदेशक बीना भट्ट के प्रयासों से उत्तराखण्ड का संस्कृति विभाग उन्हें 1000 रुपये प्रतिमाह पेंशन दे रहा है, लेकिन आज की महंगाई में मात्र 1000 रुपये से गुजर बसर करना बेहद कठिन है. बीमारी व आर्थिक आभाव के चलते कबूतरी देवी वर्तमान में पिथौरागढ़ में अपनी पुत्री हेमंती के साथ रह अपना गुजर बसर चला रहीं है।
यह हम सभी उत्तराखंडी लोक समाज के लोगों के लिए शर्म से डूब मरने वाली बात नहीं तो और क्या है कि हम एक ऐसी अद्भुत लोकशैली की गायिका के सामाजिक स्तर पर अभी तक सुधार नहीं ला सके. बीपीएल श्रेणी में जीवन यापन करने वाली उत्तराखंडी लोक गायिका की सुध प्रशासन कब लेगा यही देखना अब बाकी रह गया है.

2 thoughts on “हजार रुपया मात्र पर गुजर-बसर कर रही है उत्तराखंड की पहली लोकगायिका! जिलाधिकारी के हस्तक्षेप के बाद एक साल बाद मिला गैस कनेक्शन!

  • May 24, 2017 at 6:11 pm
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    जी सर बहुत हि सहरानीय लैख । और बाकी के पत्रकार तो तभी लिखेंगे जब महान लोकगायिका कबूतरी देवी हमारे बीच नही रहिँगी ।
    और सर मैने कही ये भि देखा कि । पवन दीप राजन इनके नाती है।???

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    • June 3, 2017 at 7:07 pm
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      जी बिलकुल पवनदीप इनके नाती हैं. मेरे इस लेख का इतना असर तो हुआ कि कबूतरी देवी को गैस मुहैय्या करवा दी गयी है.

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