हजारो सैल्यूट 'गोल्डन गर्ल'! — नौगांव के धान के खेतों से शुरू हुआ हिमा दास की गोल्डन रफ्तार बदस्तूर जारी है, 15 दिन में चौथा सोने का तमगा…।
ग्राउंड जीरो से संजय चौहान!
नौगांव एक्सप्रेस यानी असम के नौगांव जनपद की 19 वर्षीय हिमा दास नें पिछले साल फिनलैंड के टेम्पेरे में आयोजित आईएएफ वर्ल्ड अंडर-20 चैंपियनशिप में महिलाओं की 400 मीटर स्पर्धा में 51.46 सेकेंड्स की फर्राटा दौड़ लगाकर सोने का तमगा हाशिल कर पूरे विश्व को अचंभित कर दिया था। इस दौरान भारतीय राष्ट्रगान बजने पर गोल्डन गर्ल हिमा दास भावुक हो गयी थी और खुशी से आंखों में आंसू भी बहने लगे थे। देश की इस नयी उडनपरी नें एक नया इतिहास भी रच डाला था। वह भारत की ओर से किसी भी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट बनी। फिनलैंड से शुरू हुआ गोल्ड का सफर चेक रिपब्लिक तक जारी है। उन्होंने पिछले 15 दिनों में अपना चौथा गोल्ड मेडल जीता है।

गौरतलब है कि असम के नौगाव जिले के ढींग गांव की रहने वाली हिमा दास के गांव की हालत का अंदाजा लगा सकते हैं, जहां मोबाईल की कनेक्टिविटी अच्छी नहीं है। हिमा दास पांच भाई और बहनों में सबसे छोटी हैं, उनके पिता मुख्य रूप से धान की खेती करते हैं। उनके क्षेत्र में खेलों को ज्यादा तरजीह नहीं देते हैं, इसके अलावा उनके उधर ट्रेनिंग की व्यवस्था भी नहीं थी। हिमा दास अपने स्कूल में ही शौकिया रूप से खेत में ही फुटबॉल खेला करती थीं। लेकिन हिमा दास बाद में लोकल क्लब के लिए खेलने लगी थीं, जहां उन्हें पूरी उम्मीद थी कि वह भविष्य में जरूर भारत के लिए खेलेंगी। लेकिन साल 2016 में उनके टीचर ने उन्हें समझाया कि फुटबॉल में करियर बनाना कठिन है, इसलिए उन्हें किसी व्यक्तिगत इवेंट में ट्राई करना चाहिये। उसके कुछ ही महीने बाद दास ने साधारण खेत में ही स्प्रिंट की ट्रेनिंग करनी शुरू कर दी और गुहावाटी में आयोजित हुए 100 मीटर की रेस में भाग लिया। हालांकि उन्हें इस इवेंट में कांस्य पदक मिला लेकिन इसके बाद उन्हें अपने करियर में सही दिशा मिल गई। उनके कोच निपोन दास ने उनके परिवार के अलावा हिमा को खेलने के लिए राजी किया। जिसके बाद हिमा के कोच उन्हें गुवाहाटी में लेकर आये। हिमा दास को उनके कोच ने ट्रेनिंग देनी शुरू की और बहुत जल्द ही बेहतरीन स्पीड पकड़ने में सफल हो गईं।
दो बीघा जमीन!
हिमा का जन्म असम के नौगांव जिले के एक छोटे से गांव कांदुलिमारी के किसान परिवार में हुआ। पिता रंजीत दास के पास महज दो बीघा जमीन है जबकि मां जुनाली घरेलू महिला हैं। जमीन का यह छोटा-सा टुकड़ा ही दास परिवार के छह सदस्यों की रोजी-रोटी का जरिया है।
वास्तव मे देखा जाय तो हिमा दास का असम के एक गरीब किसान परिवार से गोल्डन गर्ल का सफर बेहद संघर्षमय और कठिनाइयों भरा रहा हो। परंतु आज हिमा दास देश की लाखों बेटियों के लिए प्रेरणास्रोत हैं और सफलता की नई इबादत लिख रहीं हैं।