स्वास्थ्य-शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में लीक से हटकर काम करता चेहरा-डॉ.विनोद बच्छेती!

स्वास्थ्य-शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में लीक से हटकर काम करता चेहरा-डॉ.विनोद बच्छेती!
वरिष्ठ पत्रकार जगममोहन ‘आज़ाद’ की कलम से-
कहा जाता हैं कि उत्तराखंड में जिन लोगों ने संघर्षों के मायनों को खुद के वजूद के साथ पहाड़ों के लिए नयी भूमिका तैयार की,वह भी विकास की,रोजगार की और तटस्थ रहने की,उन लोगों ने निश्चित तौर पर पहाड़ों को नये परिवेश में ढालने के लिए दिन रात कड़ी मेहनत कर पहाड़ों को विकास के मायने भी दिए।
कुछ लोग सामाजिक स्तर पर चुप-चाप लीक से हटकर कुछ ऐसी भूमिका अपने समाज के लिए निभा रहे हैं कि उनकी इस भूमिका के सफल-सुफल परिणाम,समाज को नयी दिशा देने में निरंतर महत्वपूर्ण परिणामों रे साथ आगे बढ़ रहा हैं,और इन्हीं लोगों में एक नाम हैं डॉ.विनोद बच्छेती का।

31 मार्च 1971 को पौडी गढ़वाल के सितोनस्यू पट्टी के कांडा गांव में जन्में डॉ.विनोद बच्छेती उत्तराखंड के पहले ऐसे व्यक्ति हैं। जिन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे छात्र-छात्राओं को विश्व के शिक्षक पटल पर नयी भूमिका के तौर पर उतारा हैं,जिन छात्र-छात्राओं ने अपनी इस भूमिका की कल्पना भी कभी नहीं की थी। जो छात्र-छात्राएं मूल भूत सुविधाओं से वंचित रहकर,अपनी शिक्षा की सीढ़िया नहीं चढ़ पा रहे थे। उनके लिए डॉ.बच्छेती ने शिक्षा का ऐसा मंच स्थापित किया की आज इस मंच पर आकर हजारों की संख्या में छात्र अपना भविष्य संवार रहे है।
डॉ.विनोद बच्छेती आज देश में डीपीएमआई( दिल्ली पैरामेडिकल मैनेमेंट इस्टियूट) नाम से लगभग बाईस पैरा मेडिकल संस्थान चला रहे है। जिनसे शिक्षित होकर देश ही नहीं बल्कि विदेशों के छात्र भी कई बड़े अस्पतालों में टैक्निशियन साहयक के तौर पर काम कर रहे हैं.जिनमें दिल्ली का एम्स,वेदांता,एस्कॉर्ट और फोर्टिज एवं मैक्स अस्पताल प्रमुख है।
मैडिकल टैक्निशियन के तौर पर बच्चों को शिक्षित करने वाले डॉ.विनोद बच्छेती ने कड़ी मेहनत और संघर्षों के बाद डीपीएमआई जैसी संस्था की नींव रखी और कम से कम फीस पर लाखों छात्रों के भविष्य को संवारने का जो बीड़ा उन्होंने उठाया हैं। उसके निरंतर सुफल परिणाम हमारे सामने आ रहे है। यही नहीं उनकी संस्था में कई बच्चे ऐसे भी हैं,जो पढ़ाई के लिए फीस ज़मा नहीं कर पाते है,लेकिन डीपीएमआई इन छात्रों को बहुत ही मामूली फीस पर शिक्षित कर रही है। ताकि हमारे देश के नौजवान शिक्षा के क्षेत्र में नयी ऊंचाईयों को छू कर विश्व के शैक्षिक मंच पर नया अध्याय लिख सकें।
डॉ.विनोद बच्छेती नयी पीढ़ी को शिक्षित करने के साथ-साथ सामजसेवा के क्षेत्र में भी काम कर हैं। जिसमें उन्होंने कई महत्वपूर्ण स्तरों पर पहाड़ को पहाड़ जैसे दिखने के मायने भी बताएं हैं, दिल्ली जैसे शहर में पहाड़ के लोगों को एक मंच पर लाकर,खुद की ताकत के साथ आगे बढ़ने की बात हो या किसी जरूरमंद पहाड़ को अपनी भविष्य निर्माण के लिए आगे बढ़ाने की बात हो, डॉ.विनोद बच्छेती निरंतर इस कोशिश में लगे रहते हुए देखे जा सकते हैं कि पहाड़ के इस कुनवे को किस तरह सहयोग कर आगे बढ़ाया जाया। जिसकी एक छवि डॉ.बच्छेती ने 20 नवंबर 2016 को दिल्ली के रामलीला मैदान में दिल्ली में निवासित उत्तराखंड के लोगों ‘एक जुट एक मुट’ कर उकेरी,जिसने दिखा दिया था की पहाड़ वाकई मैं बहुत ऊंचे होते हैं,उनकी ऊंचाई हर कोई नहीं नाप सकता हैं,और ये जब एक जुट एक मुट होते हें तो,इनके होने का अर्थ तमाम लोगों को समझ आता है।
स्वाभव से सरल,मृदुभाषी और हर किसी को भावनात्मक तौर पर हो जानने की क्षमता रखने वाले   डॉ.विनोद बच्छेती से जब उनके जीवन संघर्षों को लेकर बातचीत होती हैं तो वह सहज हो जाते हैं। उनसे बातचीत के दौरान कई बार ऐसा लगता हैं कि इतने बड़े फलक का व्यक्ति अगर खुद को सबके साथ कुछ-कुछ होने की हर पल चेष्टा रखता हैं तो उस व्यक्ति का व्यक्तित्व कितने विशाल फलक का होगा। क्योंकि उनका व्यक्तित्व सामाजिक स्तर पर समाज के साथ होता हैं,राजनैतिक स्तर पर राजनीति के साथ होता हैं,और जरूरतमंद और असाहया लोगों के स्तर पर उनकी जरूरतों के साथ होता हैं। उनके लिए सामाजिक राजनैतिक और सांस्कृतिक कुनवे के मायने अपने लोगों को साथ लेकर आगे चलने से हैं। जिसमें डॉ.बच्छेती की भूमिका हमेशा सराहानीय होती हैं।
अपने बारे में बात करते हुए डॉ.विनोद बच्छेती कई बार भावुकता के क्षणों को छू जाते हैं,जो उनकी कामियाबी की दास्तां बयां कर देता हैं…कुछ इस तरह…मैं पहाड़ से हूं,जो खुद हमेशा संघर्षों के साथ चलते है। यहां का जीवन परिवेश और यहां की पंरपराओं से तो आप खुद भी अवगत होगें। मैं तो खुद को सौभाग्याशाली मानता हूं की मेरी जन्मभूमि उत्तराखंड हैं। मेरा जन्म एक मध्यवर्गी परिवार में हुआ। पिताजी दिल्ली में सरकारी नौकरी करते थे। हम सभी भाई-बहन मां के साथ गांव में रहते थे। मेरी शुरूआती शिक्षा-दिक्षा गांव में ही हुई। गांव में पढ़ाई के साथ-साथ हम मां जी के साथ खेतों में काम किया करते थे। तमाम दूसरे बच्चों की तरह, मैंने पहाड़ की संघर्षरत लोगों के साथ एक लंबा समय गुजारा हैं,और आज भी गुजार रहा हूं। पहाड़ की नारी के संघर्षों को मैने बहुत करीब से देखा हैं। जिन्होंने मुझे संघर्ष की वास्तविक परिभाषा समझायी और इसी का परिणाम हैं कि मैं आज जो कुछ हूं सब इन्हीं संघर्षों की वजह से हूं।
पिताजी दिल्ली में सरकारी नौकरी में थे। तो वह हमें अपने साथ दिल्ली ले आए। आठ साल गांव में रहने के बाद हम सब दिल्ली आ गए और यहां की भागती-दौड़ती जिंदगी में हम भी शामिल हो गए। जीवन की नयी तलाश में,लेकिन पहाड़ और पहाड़ की जीवनशैली हमेशा मेरे साथ रही। दिल्ली आकर मैंने अपनी आगे की पढ़ाई शुरू की बी.एम,एस किया। इसके बाद घर पर सभी कहने लगे कि अब कुछ नौकर चाकरी करो। तमाम पहाड़ के नौजवानों की तरह मैं भी दिल्ली में मौजूद कई दफ्तरों में नौकरी की तलाश में गया,नौकरी मिली भी,लेकिन मेरा मन नौकरी में नहीं लगा। मुझे कुछ अलग से करना था। मेरे दिमाग में हमेशा था कि मुझे अपना काम शुरू करना है। मैं जीवन को नयी गति देना चाहता था। मेरे नाना जी व्यसायिक परिवार से थे। मैं अक्सर उनके साथ बैठा करता था,वो मुझे कहते थे। कुछ नया करो,ऐसा जो बहुत लोगों को रोजगार दे सके। मुझे लगता हैं,उनकी सोच और उनकी विचारधारा ने मुझे कुछ नया करने के प्रेरणा दी।
इसी सोच के साथ मैं रात-दिन संघर्ष में जुट गया मैने सोचा कुछ ऐसा किया जाया जो सबसे हटकर हो। इसी सोच के साथ मैं अपने मित्रों के साथ बैठा परिवार के साथ कई मसलों पर चर्चा की और आखिर में मैने निर्णय लिया की मैं स्वास्थ्य-शिक्षा के क्षेत्र में काम करूंगा,वो भी स्वास्थ्य तकनिकी के क्षेत्र में,क्योंकि मैंने देखता था कि मेडिकल के क्षेत्र में हर कोई एम.बी.बी.एस,जीए.एम.एस और बीए.एम.एस जैसे कोर्स कर रहे है। लेकिन इनके सपोटिंग स्टाफ के लिए कोई काम नहीं कर रहा है। तब मैने निर्णय लिया की मैं इस क्षेत्र में काम करूंगा। मेरे लिए यह क्षेत्र बिल्कुल नया था। लेकिन मैं इसके माध्यम से एक नयी सोच को जन्म देना चाहता था। जो सिर्फ देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में हमारा नाम रोशन करें और इस सोच के साथ हमने 24 सितंबर 1996 को दिल्ली में दो कमरो से डीपीएमआई(दिल्ली पैरामिडिकल इंस्टियूट) की शुरूआत की,जिसके लिए हमने दिल्ली सरकार और अपने कई मित्रों से सहयोग लिया और हम शिक्षा के क्षेत्र में काम करने लगे।
शुरूआत में आपने किसी तरह के कोर्स शुरू किए? डॉ.विनोद बच्छेती थोड़ी देर चुप रहने के बाद, बातों-बतों में अचानक शांत हुए माहौल को फिर गुंजयमान करते हुए बताते हैं।   हमने दो कमरे किराया पर लेकर डीपीएमआई संस्थान की शुरूआता की,इसके लिए हमने कई लोगों से सहयोग मांगा जिन्होंने हमें प्रोत्साहित भी किया कुछ हम ने सरकारी तौर पर भी सहयोग लिया और इस तरह इस संस्थान की नींव रखी। शुरूआत में हमने निर्णय लिया कि हम बच्चों को स्वास्थ्य-शिक्षा के क्षेत्र में उस क्षेत्र में लेकर जाएगें। जहां इन बच्चों को आसानी से नौकरी मिल सकें,इस विजन को लेकर हम आगे बढ़े। शुरूआत में हमारे पास दस से ग्याहरा छत्रा थे। जिन्हें हमने लेब तकनिशियन,ओटी तकनिशियन,नर्सिंग अस्सिटेंट और होटल मैंनेजमेंट जैसे कोर्स कराने शुरू किए। जिसको बच्चे दसवीं-बारहवी कर आसानी से कर सकते हैं,और रोजगार के अवसर इस क्षेत्र में निरंतर बढ़ रहे है। बस इसी शुरूआत के साथ धीरे-धीरे हमारे यहां छात्रों की संख्या बढती गयी,और आज हमारे पास देश भर में लगभग हजारों की संख्या में छात्र हैं। मुझे आपको ये बताते हुए खुशी हो रही हैं कि हमारे छात्र देश के बडे-बड़े मेडिकल संस्थानाओं में काम कर रहे है।
मेरा मक्सद हैं कि मैं शिक्षा के क्षेत्र उत्तराखंड को विश्व के शैक्षिक मंच तक लेकर जाऊं और ये मैं करूंगा। आपको जानकर हैरानी होगी कि पैरामेडिकल और होटल मैनेजमेंट के क्षेत्र में जो छात्र हमारे पास आते है। उन में से अधिकांश डाक्टर बनना चाहते है। लेकिन उनका ये सपना पैसे की कमी के कारण पूरा नहीं हो पाता हैं। आज आप अपने बच्चों को एम.बी.बी.एस,जीए.एम.एस और बीए.एम.एस जैसे कोर्स करना चाहें तो आपकी जेब में पांच से दस लाख तक होना चाहिए। इस फीस की जरूर कैसे पूरी हो,ये बहुत गंभीर सवाल हैं,और इस सवाल के साथ एक मध्यवर्गिय परिवार के बच्चों का सपना टूट जाता हैं। इनमें कई बच्चे ऐसे भी होते हैं,जो उधार लेकर या लोन लेकर अपने सपने पूरे करते है। लेकिन एक समय ऐसा आता हैं कि वह भी अंतिम दौर में पिछड़ जाते है,वो कहीं स्लैक्ट नहीं हो पाते।
लेकिन हम बच्चों के सपनों को बिखरते हुए नहीं देखना चाहते,हम उन्हें साकार करना चाहते है। जिसके लिए हम काम कर रहे है। फिर मोटी-मोटी फीस के हमारे लिए कोई मायने नहीं है। हम बच्चों को पैरामेडिकल के क्षेत्र में बहुत ही मामूली फीस लेकर तैयार कर रहे है। कई बार ऐसा भी होता हैं कि हमारे पास ऐसे गरीब छात्र भी आते हैं जो कम से कम फीस भी नहीं दे पाते। ऐसे छात्रों को भी हम अपने यहां पढ़ा रहे है। सिर्फ भारत से ही नहीं बल्कि हमारे यहां नेपाल,भूटान और नाइजिरिया जैसे देशों के बच्चे पढ़ रहे है। जिनकी फीस उनकी सरकार दे रही है। आजाद भाई मुझे खुशी हैं कि हमारे छात्र आज देश के कई बड़े संस्थानों में काम कर रहे है। जिनमें एम्स,वेदांता,एस्कॉर्ट,फोर्टिज और मैक्स प्रमुख हैं। इन संस्थानों द्वारा हमारे यहां कैंपस इंट्रव्यू होता हैं और बच्चों को सैलेक्ट किया जाता है। शायद यही वजह भी हैं कि भारत सरकार के तहत काम करने वाली संस्था एन.एस.डी.सी.जिसके तहत हम बच्चों को शिक्षित कर रह हैं,ने भी हमारी सराहना की हैं।
हमने राष्ट्रीय कौशल विकास निगम,भारत सरकार के साथ करार किया हैं,और यह बहुत ही महत्वपूर्ण करार हैं। इसके तहत हमको दस साल में एक लाख पच्चीस हजार बच्चे तैयार करके एन.एस.डी.सी को देने है। जिसके लिए एन.एस.डी.सी ने हमें पांच करोड़ का लोन दिया है। ये हमारा सौभाग्य हैं कि सरकार ने हमें काम करने का मौका दिया है। वो भी अपोलो,फोर्टिज बेदांता और देश की कई बड़ी संस्थाओं के साथ जो मेडिकल के क्षेत्र में काम कर रहे हैं,हमें भी काम करने का मौका मिला हैं। ये सब इसलिए की हम शिक्षा के क्षेत्र में नयी सोच के लिए काम कर रहे हैं,और यही नयी सोच एक दिन भारत में विकास का नया अध्याय लिखेगी
इसके सुफल परिणाम दिखाई भी दे रहे हैं। हम मेडिकल के क्षेत्र में जिस पीढ़ी को तैयार कर रहे है। उन्हें चुनने के लिए देश के बड़े से बड़े मेडिकल संस्थान हमारे यहां कैंपस इंट्रव्यू के लिए आते हैं। इन संस्थाओं में डीपीएमआई के छात्र बड़ी संख्या में सपोटिंग स्टाफ के तौर पर काम कर रहे है। यही नहीं डॉ.अबदुल कलॉम साहब हमारे चुने हुए छात्रों को अपने घर पर विशेष तौर पर पढ़ाने के लिए बुलाते थे। यह हमारे लिए हमारे बच्चों के लिए बहुत बड़ी उपल्बधि हैं कि हमारी नयी पीढ़ी उस क्षेत्र में आगे बढ़ रही है। जिसके लिए उन्होंने वास्तव में सपने संजोए थे।
उत्तराखंड में हमने अपने गांव कांडा में इसकी शुरूआत की है। आपको तो जानकारी हैं कि पहाड़ पर स्वास्थ्य-शिक्षा के क्या हालात हैं। हर कोई अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए लगातार शहरों की तरफ भेज रहा है। दूर-दराज के क्षेत्रों में जो गांव हैं। वहां स्कूल हैं,तो शिक्षक नहीं हैं,इस लिए भी स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में हम तमाम दूसरे राज्यों के मुकाबले अभी भी बहुत पिछड़े हुए है। इस पिछड़ाव से हम बहुत आगे निकलने की कोशिश कर रहे हैं। जिसके लिए हमने उत्तराखंड में शुरूआत की है। मैने अपने स्तर पर पचास-साठ लाख रूपये लगा कर डीपीएमआई की शुरूआत उत्तराखंड में की,हमारे इस प्रयास को पहाड़ के संवेदनशील लोगों ने बहुत सराहा,लेकिन बहुत दुःख के साथ कहना पड़ रहा हैं कि इस मसले पर सरकारी अधिकारियों ने हमारी कोई साहयता नहीं की,हम चाहते थे की डीपीएमआई के माध्यम से हम पहाड़ के बच्चों को मेडिकल स्पोटिंग स्टाफ के तौर पर डिग्री कोर्स करा के नयी भूमिका में देखें। इसके लिए हमने सरकार को कई बार अपनी योजनाएं भेजी लेकिन वो सारी योजनाएं सरकारी अधिकारियों के ढूल-मूल रव्वये और उनकी मांगों के कारण आज तक लटकी हुई है। ऐसे में कैसे बेहतर होगी पहाड़ की स्वास्थ्य सेवाएं,आप समझ सकते है। लेकिन हम अपने स्तर पर जो कर पा रहे है। उसे हर हाल में पूरा करेगें। जगमोहन भाई आपने देखा होगा कि तमाम बड़े-बड़े अस्पतालों में जो तकनीकि स्पोटिंग स्टाफ होता हैं,वह अधिकतर साउथ से होता है। स्पोटिंग स्टाफ के रूप में इनकी बहुत बड़ी भूमिका हैं। हम इस भूमिका के रूप में पहाड़ के बच्चों को देखना चाहते है। जिसके लिए हम काम कर रहे हैं,और करते रहेगें। फिर चाहे सरकार हमारे साथ चले या ना चले। मेरा संकल्प हैं की मैं उत्तराखंड के बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में निश्चित तौर पर विश्व के शैक्षिक मंच तक लेकर जाऊंगा। जिसके लिए हम मिलकर प्रयासरत है। यह सब इसलिए भी जरूरी हैं कि हमारे बच्चों को रोजगार के अवसर मिलेगें और मिल भी रहे है। हमारे बच्चे स्वास्थ्य-शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ रहे हैं,यह और भी खुशी की बात है। मुझे खुशी होती हैं जब मैं देखता हूं कि देश के तमाम बड़े-बड़े मेडिकल संस्थानों में डीपीएमआई के छात्र मेडिकल स्पोटिंग स्टाफ के रूप में कार्यरत है।
इधर हमने उत्तराखंड का पहला वेब चैनल हिमालय न्यूज शुरू किया हैं। जब हम व्यवस्थाओं से लड़ते हैं,वह भी किसी अच्छे मक्सद के लिए। लेकिन आपके इस मक्सद को कोई सुनते हुए भी अनसुना कर दे तो वह बहुत दुःख दायी होता है। कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हुआ। दिल्ली में जिन दिनों उत्तराखंड की बच्ची किरन नेगी को न्याय दिलाने के लिए मुमेंट चल रहा था। उन दिनों हमने दिल्ली के हर बड़े नाम और जंतर-मंतर से लेकर हर गली-कुचे तक इस बच्ची को न्याय दिलाने के लिए आवाज उठायी। लेकिन हमारी आवाज को सुनते हुए भी इगनौंर किया गया। मीडिया की तरफ से भी हमको स्पोट नहीं मिला,जिससे हम दोषियों को सज्जा दिला पाते। तब हमने निर्णय लिया की हम अपने माध्यम से पूरे देश में अपनी आवाज पहुंचाएगें और इस तरह हम हिमालय न्यूज़ के नाम से अपना पहला वेब चैनल लेकर आए। जिसका हमें बहुत अच्छा रिस्पोंस मिला और हम इसके माध्यम से हर व्यक्ति तक अपनी ख़बर.अपनी बात पहुंचाने में सफल हुए।
आपने समाज सेवा की  बात कि तो,समाज सेवा तो हम शिक्षा के क्षेत्र में कर ही रहे हैं। गरीबों बच्चों को शिक्षित कर के,इसके साथ ही जब भी पहाड़ के जन मानस को हमारी आवश्यकता होती हैं,हम हमेशा उनके साथ खड़े रहने का प्रयास करते है। हम से जो बन पाता हैं,हम प्रयास करते हैं कि वह कर पाए। मैने पहाड़ों के जीवन को बहुत करीब से देखा हैं,यहां का जीवन जितना सरल हैं। उससे ज्यादा कठिन और कठोर भी हैं। मैं इस जीवन को नयी ऊंचाईयों तक लेकर जाना चाहता हूं। क्योंकि यह जीवन बहुत मेहनती होता है। यह शिकाता हैं कि हर चीज का शोटक्ट हो सकता हैं,लेकिन मेहनत का कोई शोटक्ट नहीं होता। इस मेहनत के साथ हमारा कोई साथी आगे बढ़ना चाहता हैं और उसकी आगे बढ़ने में कोई रूकावट आती हैं,तो हम उस रूकावट को दूर करने के लिए हमेशा प्रयासरत है। इसे आप लोग समाज सेवा कहते हैं तो यह हमारा सौभाग्य हैं।
 
 
 

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