सोशल मीडिया के मित्रों से एक अपील।
सोशल मीडिया के मित्रों से एक अपील।
(मनोधर नैनवाल की कलम से-सूचना एवं संचार प्रोद्यौगिकी के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त शिक्षक)
साथियों! सोशल मीडिया की पहुंच आज प्राय:हर व्यक्ति तक है। संचार की इसी सुविधा का फायदा राजनैतिक और धार्मिक समूहों द्वारा अपने प्रचार-प्रसार हेतु भी किया जा रहा है। लगभग सभी राजनैतिक दलों और धार्मिक संस्थाओं के अपने मीडिया सेल हैं जो चौबीसों घंटे व्यावसायिक ढंग से इसी कार्य में लगे हैं। इसमें कुछ गलत भी नहीं।
किंतु आजकल आप रोज सोशल मीडिया पर विभिन्न अज्ञात एवं फ़र्ज़ी नामों अथवा फ़र्ज़ी समूहों के द्वारा अनेक प्रकार की घृणा फैलाने वाली, सामाजिक विद्वेष उत्पन्न करने वाली और दूसरों का मानमर्दन करने वाली पोस्टें देख सकते हैं। इस प्रकार की अपरिपक्व किस्म की राजनीतिक खबरें एवं धार्मिक पोस्टें बड़ी तेजी से वायरल होती हैैं। ऐसी पोस्टों के द्वारा प्राय: राजनीतिक एवं धार्मिक समूह स्वयं के प्रचार तथा दूसरे विचारधाराओं के प्रति लोगों के मन में नफरत पैदा करने के कार्य में लगे हैं।
हममें से अधिकांश लोग प्रायः बिना सोचे समझे ऐसी पोस्टों को फॉरवर्ड करते जाते हैं इसी वजह से ऐसी पोस्टें तेजी से वायरल होती हैं और मूल रूप से पोस्ट भेजने वाले का मकसद पूर्ण हो जाता है। ऐसी पोस्टों के कारण समाज में, आपके मित्रों में एवं समुदाय में घृणा का यह कारोबार निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है। यह एक प्रकार का राजनीतिक जिहाद है, जिसमें हम लोग जाने अनजाने भागीदार बनकर इस प्रकार के राजनीतिक जिहादियों का हथकंडा बनते जा रहे हैं।
सर्वाधिक अफसोस की बात यह है कि अत्यधिक शिक्षित और जागरूक लोग भी इस राजनीतिक जिहाद का हिस्सा बनते जा रहे हैं। कोई अपनी राजनीतिक विचारधारा के कारण तो कोई अपनी सामाजिक एवं धार्मिक अभिवृति के कारण इस प्रकार की पोस्टों से प्रभावित होता है। और इसे लगातार सोशल मीडिया में अपने मित्रों को फॉरवर्ड करता है। बिना यह सोचे-समझे कि इससे समाज में दूसरे धर्म, संप्रदाय या विचारधारा के लोगों में क्या संदेश जाएगा। हम निरंतर राजनीतिक लोगों के इस राजनीतिक प्रोपेगेंडा का हथियार बनते जा रहे हैं। साथियों, भले ही एक सामान्य व्यक्ति इस प्रकार की बातों से अधिक प्रभावित नहीं होता हो लेकिन कम उम्र के बच्चे, कुछ अत्यधिक भावुक अथवा संवेदनशील व्यक्ति इस प्रकार की पोस्टों से अत्यधिक उत्तेजित, तनावग्रस्त अथवा मानसिक रूप से प्रभावित होने लगते हैं। कश्मीर में स्कूली बच्चों द्वारा की जा रही पत्थरबाजी की घटनाएं इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।
इसके अतिरिक्त भी मैं आजकल सोशल मीडिया पर अपने कई बुद्धिजीवी मित्रों के द्वारा फारवर्ड की जा रही पोस्टों अथवा विभिन्न पोस्टों पर लिखी जा रही टिप्पणियों पर गौर करता हूं तो कई बातों से ऐसा लगता है जैसेे लोग अपनी संस्कृति, तहजीब और मानवीयता भूलकर सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक दलों के अंधभक्त बन गये हैं। उनका अपना बुद्धि-विवेक दूसरों के विचारों के प्रभाव में कहीं खो गया है। वे किसी और की भाषा बोल रहे हैं। वे अपुष्ट खबरों, घृणा फैलाने वाली खबरों, राष्ट्रविरोधी बातों के वाहक बनते जा रहे हैं। वे खुद की विचारधारा को महान और दूसरी विचारधाराओं को निकृष्ठ साबित करने में अपनी भाषा के स्तर पर भी गिरते जा रहे हैं। वे अपनी सारी ऊर्जा इस घृणा व्यापार में झोंक रहे हैं, यह जानते हुए भी कि इससे सीधे तौर पर उन्हें और अप्रत्यक्ष तौर पर समाज अथवा राष्ट्र को कोई लाभ नहीं है, बल्कि हानि ही होने वाली है। यह कदाचित इसी प्रकार के प्रोपेगंडा का दुष्प्रभाव है। जो हमारे विवेक को कुंठित कर रहा है।
अतः मैं अपने समस्त मित्रों से यह अपील करता हूं कि चाहे आप की राजनीतिक विचारधारा कुछ भी हो, चाहे आप किसी भी धर्म या संप्रदाय से संबंध रखते हों, चाहे आप के व्यक्तिगत रुझान कुछ भी हों। आप सोशल मीडिया पर बिना किसी नाम अथवा किसी भी नाम से भेजी गई ऐसी किसी भी पोस्ट को फॉरवर्ड ना करें जिससे आपको यह लगता हो कि यह पोस्ट किसी दूसरे धर्म, संप्रदाय अथवा राजनीतिक विचारधारा की निंदा करती है अथवा उनके प्रति घृणा पैदा करने का कार्य करती है। यदि आप घृणा फैलाएंगे तो स्वयं भी उसी घृणा का शिकार अवश्य होंगे। अतः यह ध्यान अवश्य रखें कि सोशल मीडिया समाज में मित्र बनाने के लिए है घृणा फैलाने के लिए नहीं। सूचना के इस अस्त्र का प्रयोग राष्ट्र, समाज और चरित्र के निर्माण के लिए कीजिए हनन के लिए नहीं।