सोशल मीडिया की सक्रियता ने बचाए 10 दिन से चट्टान में फंसी बद्री गाय के प्राण!
जोशीमठ /चमोली 12 अप्रैल 2018 (हि. डिस्कवर)
वह काली गाय जिसे पशुपालन विभाग ने बद्री गाय (पहाड़ मूल की ) का नाम दिया है! चमोली बदरीनाथ राष्ट्रीय मार्ग में जोशी मठ के पास एक ऐसी चट्टान में जा फंसी जहाँ से निकलना बेहद दूभर था! पिछले 10 दिनों से वह रम्भा-रंभाकर सबको अपनी प्राण रक्षा के लिए आवाज देती रही, लेकिन उसने अपना धैर्य तब भी नहीं खोया! क्योंकि 10 दिन तक एक ही स्थान में भूखा-प्यासा रहना चाहे मनुष्य हो या कोई प्राणी उसके लिए बेहद मुश्किल कार्य है! आते जाते लोगों तक उसकी आवाज पहुंची तो दूर चट्टान के बीच फंसी गाय पर नजर पड़ते ही किसी ने उसका फोटो उतारकर उसे व्ह्ट्सअप्प में डालकर उसकी प्राण रक्षा की गुहार लगाईं!
यह सन्देश फैला तो मीडिया के माध्यम से यह सूचना जिले की पुलिस,आईटीबीपी व आपदा प्रबन्धन टीम एसडीआरएफ तक पहुंची! फिर क्या था विगत बुधवार को आईटीबीपी, पुलिस व एसडीआरएफ की टीम ने एक संयुक्त अभियान के रूप में उस विकट चट्टान पर चढ़कर बेहद सूझ-बूझ के साथ इस गाय को रस्से-फंसा-फंसाकर सकुशल निकाल लिया!
(फोटो- क्रान्ति भट्ट)
गाय जब सकुशल सडक पर उतारी गयी तो उसकी आँखों में सूख चुके आंसू फिर निकल आये वह एक एक वर्दी वाले जवान को सूंघती सी आगे बढ़ी जैसे सभी का ह्रदय से धन्यवाद कर रही हो! सच कहें मानव संवेदनाओं का अगर सही इस्तेमाल किया जाय तो हर प्राणी में उतनी ही जान है जितनी मनुष्य में! निरीह व मूक भाषा में गाय ने इस टीम का जिस तरह भी अभिवादन किया हो वह हम आम लोगों की समझ में नहीं आएगा लेकिन आईटीबीपी, पुलिस व एसडीआरएफ के जवानों के चेहरे में एक गाय की रक्षा के बाद खिली मुस्कान को देखकर यकीनन प्रकृति का निर्माता ईश्वर भी इतना ही खुश हुआ होगा! काश…ऐसी संवेदनाएं हम सबके अंत:पटल से जुडी हुई हों!
हिन्दुस्तान समाचार पत्र के चमोली जनपद के वरिष्ठ पत्रकार क्रान्ति भट्ट सोशल साईट पर लिखते हैं कि “सोशल मीडिया पर नकारात्मक अथवा तनाव . कटुता और विवाद जैसी बात फैलाने का आरोप लगता है । पर हर वक्त ऐसा नहीं होता । सोशल मीडिया का ” सकारात्मक स्वरूप भी है । अब हम सब पर निर्भर करता है कि ” हम संचार और सूचना के इस बेहरतीन माध्यम का उपयोग अफवाह , या घृणा और कटुता के लिए करते हैं कि या सकारात्मकता के लिए करते हैं । सोशल मीडिया से किसी के प्राण भी बचा सकते हैं।”
क्रान्ति भट्ट यहीं नहीं रुकते बल्कि वे जाने -माने पत्रकार रविश कुमार पर तंज कसते हुए उन्हीं के शब्दों को दोहराते हुए लिखते हैं-
” माना कि रबीश कुमार जी के अनुसार ” वर्डस अप यूनिवर्सिटी ( तंज और ब्यंग विशेषण , किन्तु बहुत बार सही भी ) में सब गडबड हो रहा है । पर सोशल मीडिया के इस सकारात्मक सूचना उदाहरण को भी नजरे इनायत करिये । सच्च यदि सकारात्मक उपयोग और इस उदाहरण को सम्मान मिले तो लोग विज्ञान की इस विधा का समाज और जीवन की बेहतरी के लिए अधिक प्रयोग करेंगे । एक बार फिर आई टी बी पी , एस डी आर एफ और पुलिस को इस भले कार्य के लिए धन्यवाद ।”
यकीनन पहले हमें उस व्यक्ति का शुक्रिया करना चाहिए जिसने सबसे पहले इसे व्ह्ट्सअप्प पर डाला और फिर उन लोगों का जिन्होंने इसे शेयर कर मीडिया तक पहुंचाया फिर उस सकारात्मक मीडिया का जिनकी खबर पर जिला प्रशासन के अधीन पुलिस व उत्तराखंड की एसडीआरएफ व केंद्र की अर्द्धसैनिक आईटीबीपी के जवानों की टुकड़ी ने इस कार्य को बेहद कुशलता के साथ अंजाम दिया! हमें आप सब पर गर्व हैं!