सोरघाटी पिथौराघाटी के भैलौ का सोर जाने कहाँ गायब हुए।

यूँ अक्सर गाये-बगाहे ही सही। लेकिन जिन्होंने अपनी संस्कृति के रंगों में घुलकर उसका अकूत आंनद लिया हो भला उस पुरातन पौराणिक संस्कृति के अचानक लुप्तप्राय: हो जाने की पीड़ उसे क्यों नहीं सालेगी। ऐसी ही पिथौरागढ़ जिले की सोर घाटी की पीड़ा का वर्णन करते हुए पंकज सिंह महर के शब्दों को ताल देती गोरी गंगा कालीगंगा व महाकाली का कलकल छलछल बहता जल मानों उस पीड़ा में अपनी हामी के सुर मिला रहा हो। पंकज सिंह महर विधान सभा में अच्छे पद पर कार्यरत हैं लेकिन उनके शब्द जब आकुल ब्याकुल से उतरते हैं तो वह ठेठ उन्हें उनके गांव के लोक समाज लोक संस्कृति की खुद में डुबो देते हैं जो अन्तस तक पहुंचने के बाद मुख से आह व वाह दोनो ही बयान कर देते हैं। दिवाली के भैलो पर्व पर क्या कहना है पंकज सिंह महर जी का….आप भी पढिये।

फ़ाइल फोटो

पिथौरागढ में बीसवीं सदी तक दीपावली पर भैलो गाने की परम्परा रही है। अब नई पीढी को तो छोड़िये पुरानी पीढी भी भैलो के बोल नहीं जानते। यूं कहा जाय कि भैलो गायन अब सोरघाटी की लुप्तप्राय लोक थात बनकर रह गया है।

दीपावली के तीन दिन, अमूस, पडेवा और दूतिया को यह गीत गांव के किशोर और किशोरियां गाती थीं और घर-घर जाकर भैलो गाते हुये चावल मांगा करते थे। इन टोलियों को भैलार कहा जाता था। भैलो गाने के लिये इनके पास ढोलक और लाठी होती थी, जिसमें से लाठी को जमीन में ठोककर वह ताल देते थे।

अमूस यानि कि दीपावली के दिन गाया जाने वाला भैलो गीत-

अमसी बारो-भैलो जी भैलो, गाई को त्यारो-भैलो जी भैलो,
धरम तुम्हारो, भैलो जी भैलो, धरमें फागू-भैलो जी भैलो,
जू खेलो आजू-भैलो जी भैलो, आजु का काजु-भैलो जी भैलो।
पिरपला राजू-भैलो जी भैलो, पिरका भैलसि-भैलो जी भैलो,
खेलन मालो-भैलो जी भैलो, खेल हो खेलोती-भैलो जी भैलो,
बाकर मलौती-भैलो जी भैलो, बाकर कसो-भैलो जी भैलो,
हुरहुर छोट्टो-भैलो जी भैलो, सींगणी मोट्टो-भैलो जी भैलो,
सींग समाछ-भैलो जी भैलो, सींगे खुस्सी-भैलो जी भैलो,
हाड़ की हड़वाली-भैलो जी भैलो, रगते की नन्दी-भैलो जी भैलो।
सो नन्दि कां गै-भैलो जी भैलो, धौली धार-भैलो जी भैलो,
काली पार-भैलो जी भैलो, जाख कमाल-भैलो जी भैलो,
कुमली फुट्टी-भैलो जी भैलो, घ्यूखानि टुट्टी-भैलो जी भैलो,
ज्य़ु जागी रया-भैलो जी भैलो,अम्मर होय्या-भैलो जी भैलो,
दै भात खाया-भैलो जी भैलो, बोल भगवती मैय्या की जै।

पडेवा के दिन गाया जाने वाला भैलो-

परिया पलोदा-भैलो जी भैलो, दुब्तै धामी-भैलो जी भैलो,
देलासा धामी-भैलो जी भैलो, देलै फागू-भैलो जी भैलो,
जू खेल आजू-भैलो जी भैलो,………. इसके आगे अमावस वाले बोल

दूतिया के दिन गाया जाने वाला भैलो-

छमछम छाड़िया-भैलो जी भैलो, बक्कुल बढिया-भैलो जी भैलो,
बग्गाल फली-भैलो जी भैलो, क्या बार उप्ज्यो-भैलो जी भैलो,
काली चतुरदशी-भैलो जी भैलो, अमसी बारो-भैलो जी भैलो,
इसके आगे अमावस वाले बोल

अब यह गीत विलुप्त हो गये हैं, 41 की उम्र मेरी भी हो गई लेकिन कभी मैने अपने आस पास यह गीत नहीं सुने। एक बार दाज्यू Rajen ने अपने गांव के किसी बुजुर्ग से इसकी रिकार्डिंग भेजी थी और गूगल पर विचरते हुये कहीं इसके बोलों की फोटो दिखी तो उसी से यह गीत लिखे हैं, जानकार सुधीजन कृपया इस थाती के बारे में और अवगत करायें, ताकि इस पुरातन थाती का संरक्षण और संवर्द्धन हो सके।

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