सुबेरो घाम फिल्म का पार्ट 2 “बथौंs” की शूटिंग होगी विदेशों में! पहली गढ़वाली फिल्म बनाएगी ऐसा कीर्तिमान!
सुबेरो घाम फिल्म का पार्ट 2 “बथौंs” की शूटिंग होगी विदेशों में! पहली गढ़वाली फिल्म बनाएगी ऐसा कीर्तिमान!
(मनोज इष्टवाल)
गढवाली सिनेमा की बात हो और बात आकर उर्मी नेगी पर ठहरे तो हर किसी के मुंह से निकलता वाह…! क्या अभिनेत्री है वाह तीन दशक से भी ज्यादा समय से क्या फिजिकल फिटनेस है! बात यहीं रुक जाती तो आई गयी हो जाती लेकिन उर्मी पर जब भी कोई जिरह होती है तो वह घंटों तक वैसे ही खिंच जाती है जैसे लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी के गीतों की तुलनात्मक परिभाषा पर!
गर्व इस बात का भी होता है कि इन दोनों महारथियों ने एक ही गाँव अर्थात पौड़ी गाँव में जन्म लिया और वहीँ के धारे का पानी पिया उसी चौक खलिहान में थिरकते उन क़दमों की चाप व गीतों के बोल सुने जो पोड के उपर बने पंचायती आँगन में ग्रामीणों के सामूहिक कदम हुआ करते थे सामूहिक बोल हुआ करते थे जिसे हम लोक संस्कृति व लोक समाज के रूप में परिभाषित करते हैं!
(बथौंs की पटकथा लेखक, निर्देशक, निर्मात्री व अभिनेत्री उर्मि नेगी)
यहीं विगत सदी से लेकर वर्तमान तक का ऐसा लोकनायक निकला जिसकी संरचनाओं में पनपे गीतों ने सात समुन्दर पार तक न सिर्फ गीतकार के रूप में बल्कि संगीतकार व गायक के रूप में व धुन कम्पोजर के रूप में हम सभी का मान मनोबल बढ़ाया. जिसके गीतों की गंगा में नहाते नहाते हमें दूसरी सदी हो का प्रारम्भिक काल भी देखने को मिला!
अब ये मत कहिएगा कि यहाँ लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी व प्रोडूसर डायरेक्टर अभिनेत्री पटकथा लेखक उर्मी नेगी की यहाँ आपसी तुलना कर रहा हूँ क्योंकि दोनों ही भले ही अपने अपने फील्ड में हैं और दोनों ही अपने अपने फील्ड के सफलतम माने जाने वाले कहे जा सकते हैं! सच कहिये ये दोनों ही पौड़ी की सरजमीं पर जन्में ऐसे रत्न हैं जिनकी चमचमाहट देश दुनिया में उत्तराखंडी संस्कृति का जोरदार इकबाल करवा रही है!
(उर्मी नेगी उद्योगपति मोहनकाला के साथ)
उर्मी नेगी ने कब मुंबई जाकर अपने कैरियर की शुरुआत की यह कहना ठीक नहीं रहेगा लेकिन विशेश्वर दत्त नौटियाल द्वारा निर्मित पहली 35 एमएम फिल्म घरजवैं फिल्म बर्ष 1985 में बनकर तैयार हुई और यहीं से उर्मी नेगी की पहचान फ़िल्मी जगत में होनी शुरू हुई यानि लगभग 33 बर्ष पूर्व से ! भले ही इस फिल्म की मुख्य भूमिका में बलराज नेगी व शान्ति चतुर्वेदी रही हों लेकिन उर्मी नेगी की गढ़वाली सिनेमा का यह शुरूआती बर्ष गिना गया!
(सुबेरो घाम फिल्म के खलनायक बलदेव राणा)
फिर उर्मी नेगी के होम प्रोडक्शन की फिल्म कौथीग रिलीज हुई जिसके ऑडियो ने बाजार में उस दौर में धूम मचा दी! सुप्रसिद्ध गायक सुरेश वाडेकर, नरेंद्र सिंह नेगी, संतोष खेतवाल, सतेन्द्र डंडरियाळ, अनुराधा पौडवाल व सुषमा श्रेष्ट की आवाज से सजे गीत “धगुला झाँवरा छणमणान्दी”, कौथिगेरू न थौळ भोरेग्ये.. सुरमा भैर ओये, ब्यखुनी कु घाम, अपणी तौं शर्मयाली आंख्युं, सुलपा की साज, सूणा सौतू की बाता इत्यादि गीतों ने तब जो बबाल मचा सब जानते हैं लेकिन फिल्म ऑडियो के बाद आने में काफी इन्तजार करना पड़ा!
उर्मी नेगी फिल्म की मुख्य भूमिका में थी जबकि अभिनेता के रूप में अशोक मल्ल इस फिल्म से अपने अभिनय की छाप छोड़ने में कामयाब रहे!
यह उर्मी नेगी की पहली ऐसी फिल्म थी जिसने उन्हें साइन जगत में अपने अभिनय के साथ खड़ा कर दिया और उन्हें मुंबई फिल्म इंडस्ट्री जानते लगी! उन्होंने कई हिंदी फिल्मों में भी अभिनय किया लेकिन गढ़वाली सिनेमा पटल से उर्मी के अचानक गायब हो जाने के बाद कई कयास लगाए जाने लगे जिनमें उर्मी कहीं विदेश चली गयी! उर्मी ने किसी मोटे पैंसे वाले से शादी कर ली! उर्मी पता नहीं कहाँ चली गयी जैसी बातें आये दिन ऑडियो वीडिओ की दुनिया में होती रहती थी! फिर सुनने में आया कि डिस्कवरी चैनल में कोई उर्मी नेगी है जो उर्मी की शक्ल की लगती है! आभासी समाज यह कैसे स्वीकार करता कि पौड़ी जैसे छोटे से शहर से कम संसाधनों में निकली कोई बेटी डिस्कवरी जैसे वर्ल्ड वाइड चैनल में जुड़कर एंकरिंग भी कर सकती है! यह मुझे अपने अतीत काल से जुडती उस घटना की याद दिलाता है जब बर्ष 1992 में मेरा एक वीडिओ अल्बम “खैरी का आंसू” दूरदर्शन लखनऊ से प्रसारित हुआ और गाँव के सब लोग एक घर में टीवी में मुझे देख भी रहे थे लेकिन ज्यादात्तर यह मानने को तैयार नहीं थे कि यह मैं हूँ! जबकि मेरा नाम, मेरी शक्ल मेरा निर्देशन सब उसमें लिखा आ रहा था! दरअसल तब समाज इतना जागृत नहीं था क्योंकि गाँव के समुचित समाज से निकलकर रुपहले परदे पर पहुँच बनाना बड़ा कठिन कार्य होता था!
उर्मी नेगी, मीर रंजन नेगी व मनोज इष्टवाल
उर्मी ने कौथीग के बात हिंदी सीरियल “कहीं दूर पहाड़ों के पीछे” बनाना शुरू किया यहाँ भी उन्होंने अपने लोक समाज व लोक की खुलकर वकालत की! जैसा कि वह कहती ही हैं कि पौड़ी और पहाड़ में उसके प्राण बसते हैं! फिर लम्बे अंतराल बाद विगत बर्ष अचानक उर्मी ने गढ़वाली सिनेमा के अन्धकार में छलांग लगाकर उजाला कर दिया और फिल्म का नाम भी उसी उजाले की तरह था – सुबेरो घाम!
फिल्म की शुरुआत एक डाकूमेंटरी फिल्म के रूप में होता देख ही मैंने यह तय कर दिया था कि फिर से गढ़वाली फिल्मों का स्वर्णिम काल लौटने वाला है और जो गढ़वाली फिल्मों पर पैंसा लगाना पैंसे की बर्बादी समझते हैं उनकी सोई खोई आँखें फिर से उजाले की चमक महसूस करेंगी! क्योंकि अब तक जितनी भी फ़िल्में जग्वाल से लेकर अब तक बनी सभी के निर्माता अपना पैंसा वसूल नहीं होने का रोना रोते रहे हैं! मात्र उर्मी नेगी ही एक ऐसी प्रोडूसर रही जिन्होंने अपनी फिल्म सुबेरो घाम के माध्यम से न सिर्फ पैंसा वसूला बल्कि प्रॉफिट भी लिया!
वे कहती हैं पहले तो उत्तराखंड सरकार को हर क्षेत्रीय भाषा में बन रही फिल्मों को उत्तराखंड में टैक्स फ्री करना चाहिए ताकि क्षेत्रीय भाषाओं पर फिल्म बनाने वाले प्रोडूसर का उत्साह बना रहे लेकिन यहाँ अभी ऐसी शुरुआत नहीं हुई है! वो कहती हैं उत्तराखंड में लोकेशन के हिसाब से फिल्म उद्योग के लिए बहुत कुछ करने को है लेकिन यहाँ अब तक यह होता आया है कि कोई बड़ा प्रोडूसर अगर यहाँ फिल्म निर्माण के लिए आता भी है तो उसे लोकेशन के हिसाब से इतना खर्चा बता देते हैं कि वह दुबारा यहाँ आने का साहस नहीं करता! उन्होंने प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत के इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उन्होंने फिल्मों के लिए जिस तरह से लोकेशन शूट फ्री कर दिया है वह फिल्म उद्योग को नई ऊर्जा देगा व प्रदेश में फिल्म उद्योग का नया रोजगार शुरू होगा! उन्होंने उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद् के पुनर्निर्माण की वकालत करते हुए कहा कि उसमें ऐसे लोग शामिल किये जाएँ जो देश व विदेश के फिल्म निर्माण से जुड़े लोगों को अपने प्रदेश की वादियों घाटियों के प्रति आकर्षित कर सके व यहाँ हर भाषा में बनने वाली फिल्मों की टॉप लोकेशन बन सके!
फिल्म सुबेरो घाम में अभिनेता बलराज नेगी व उर्मी नेगी
सुबेरो घाम फिल्म का सीक्वेल “बथौंs” फिल्म के बारे में चर्चा करते हुए उर्मि नेगी कहती हैं कि सुबेरो घाम जहाँ शराब पर केन्द्रित फिल्म थी वहीँ “बथौंs” पहाड़ की सबसे बड़ी पीड़ा पलायन पर केन्द्रित है! वह फिर दुबारा जोर देकर कहती हैं यह सौ फीसदी पलायन पर केन्द्रित फिल्म है और आपको बता दूँ कि न सिर्फ उत्तराखंड बल्कि इस फिल्म की शूटिंग वह बैंकाक, सिंगापुर, थाईलैंड व शंघाई इत्यादि में भी करेंगी! प्रारम्भिक बजट कितना होगा इस पर वह हंसती हुई कहती हैं कि सुबेरो घाम फिल्म में भी हमारे पहाड़ के उद्योगपति मोहन काला ने उन्हें सपोर्ट किया और इसमें भी कर रहे हैं! बजट कितना भी क्यों न हो आपकी नियत साफ़ होनी चाहिए ताकि प्रोडूसर आप पर आँख मूंदकर विश्वास कर सके!
फिल्म की निर्माता निर्देशक ,पटकथा लेखक व अभिनेत्री उर्मि ने विश्वास जताते हुए कहा कि आपके पास फिल्म का कंटेंट अच्छा होना चाहिए तभी आप पब्लिक को आकर्षित कर सकते हैं! उन्होंने कहा जैसे उन्होंने सुबेरो घाम विदेशों में भी प्रदर्शित की व वहां उसे खूब सराहना मिली उन्हें उम्मीद है कि “बथौंs” भी वैसा ही अच्छा व्यवसाय करेगी! भले ही फिल्म उद्योग का यह क्राइसेस का दौर उत्तराखंड में चल रहा हो लेकिन सुबह जरुर होगी!
वहीँ उर्मि की फिल्म “बथौंs” में अपना किरदार निभाने को तैयार देश के पूर्व हाकी कप्तान मीर रंजन नेगी जिनकी जीवनी पर केंद्रित शाहरुख खान की फिल्म “चक दे इंडिया” ने अच्छा व्यवसाय किया व उसके बाद मीर रंजन नेगी ने नरेंद्र सिंह नेगी के स्वर से सजा गीत “ हर्षु मामा” से पहाड़ की पृष्ठभूमि में पदार्पण किया कहते हैं कि उर्मि की एक खासियत है वह जितनी सरल व सरस आम जिन्दगी में दिखती हैं उतनी ही अधिक डेडिकेटेड अपने काम के प्रति भी हैं और यही कारण भी है कि उनकी लगातार यह तीसरी फिल्म बनने जा रही है ! यह उन प्रोडूसर व निर्देशकों के लिए सबक है जो यह सोचते हैं कि गढ़वाली सिनेमा का भविष्य अन्धकारमय है क्योंकि यहाँ से पैंसा निकालना मुश्किल कार्य है! उन्होंने कहा कि अब उनका रिटायरमेंट करीब है फिर वे पूरा वक्त इस फील्ड में देंगे !
इस दौरान प्रसिद्ध समाज सेवी उद्योगपति मोहन काला, उद्योगपति व समाजसेवी चंदर कैंतुरा, सुप्रसिद्ध अभिनेता बलदेव राणा, घनानंद, अभिनेत्री सुशीला रावत, प्रशांत गगवाड़ी व उत्तराखंड फिल्म विकास परिषद् के पूर्व सदस्य चन्द्रवीर गायत्री सहित कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे!