सरैंss (सरइयां) नृत्य कर इतिहास रच गयी चरगाड़ चौन्दकोट की नेहा और अमीषा! इस कहते हैं फील गुड..!
सरैंss (सरइयां) नृत्य कर इतिहास रच गयी चरगाड़ चौन्दकोट की नेहा और अमीषा! इस कहते हैं फील गुड..!
(मनोज इष्टवाल)
यूट्यूब पर उत्तराखंड के सीमान्त जनपद जनपद पिथौरागढ़ के छोलिया नृत्य देख-देख कर नृत्य प्रशिक्षण ले रही नेहा और अमीषा की उम्मीदें उस समय टूटती सी नजर आई जब जनपद पौड़ी गढ़वाल के चौन्दकोट पोखड़ा क्षेत्र के गवाणी गाँव में फीलगुड संस्था द्वारा लोक संस्कृति के बढावे को प्रोत्साहन देने हेतु सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित था जिस पर ये दोनों कुछ अनूठा करने की सोच रही थी! उन्हें जैसे ही यह पता चला कि सिर्फ क्षेत्रीय नृत्य प्रस्तुत करने हैं तो दोनों के चेहरे पर निराशा के भाव आने लाजिम थे!
फिर क्या था फीलगुड में शैक्षिक क्षेत्र देख रही शुभा बुड़ाकोटी ने उनका हौसला बढ़ाया और छोलिया की टक्कर का ही एक क्षेत्रीय बहुआयामी नृत्य पर दोनों की ढाल-तलवार पैर चेहरे के हाव-भाव सब दिखने लगे! भला साधन-सम्पन्न गाँव चरगाड़ अपनी बेटियों की हौसला अफजाई में कहाँ पीछे रहने वाला था! सबने उनका उत्साह बढ़ाया!
शुभा बुडाकोटी बताती हैं कि कार्यक्रम के मात्र दो दिन बचे थे और हम ये तक नहीं जानते थे कि सरैं/ सरों /सरइयाँ नृत्य की कला क्या है फिर जैसे तैसे कहीं से ढूंढकर सरइयां नृत्य के जानकार बुलाये गए और मात्र दो दिन में ये बच्चियां जब मंच पर आई तो पूरी दर्शक दीर्घा ने तालियों के साथ इन बेटियों पर अपना प्यार लुटाते हुए स्वागत किया!
(नेहा और अमीषा)
आपको बता दें कि नेहा बुडाकोटी पुत्री सुशील बुडाकोटी, अमीषा नेगी पुत्री विजय सिंह नेगी दोनों ही चरगाड़ गाँव की बेटियाँ हैं नेहा 12वीं कक्षा की जबकि अमीषा 11वीं कक्षा की छात्राएं हैं और दोनों ही इंटर कालेज कुटियाखाल में अध्ययनरत हैं! दोनों के साथ अजीब इत्तेफाक जुड़े हैं! नेहा की माँ का स्वर्गवास हो गया है जबकि अमीषा के पिता उसके जन्म से ही घर से लापता हैं!
(नेहा/अमीषा के साथ बीच में फीलगुड की शुभा बुडाकोटी)
शुभा बुडाकोटी बताती हैं कि फीलगुड संस्था के संरक्षक सुधीर सुन्द्रियाल हैं जो अपनी थाती माटी से जुड़े हर बिन्दुओं पर संस्था के माध्यम से कार्य कर रहे हैं चाहे वह शैक्षिक हो सामाजिक हो लोक संस्कृति से जुडा हो या फिर रोजगारपरक ! संस्था का एक मात्र लक्ष्य है अपनी जमीन से जुड़कर पलायन को रोकना व यहाँ के नौनिहालों के भविष्य को स्वर्णिम बनाना!
वे बताती हैं कि हम कहते हैं-“भलु लगद/फील गुड “- उड़ान आसमां की। भलु लगद/ फील गुड संस्था द्वारा ग्रामीण बच्चों की शिक्षा हेतु नए कदम उठाए जा रहे हैं। संस्था निराश्रित बच्चों की मदद हेतु आगे आरही है, उन्हें पढ़ने हेतु प्रेरित कर रही है। वर्तमान में संस्था 21 बच्चों की जिम्मेदारी उठा रही है जिनकी शिक्षा का समस्त भार संस्था द्वारा उठाया जाएगा। इसके अलावा कुछ बच्चों के लिए ट्यूशन क्लासेज की व्यवस्था भी संस्था ने ग्राम चरगाड में की है। वर्तमान में संस्था द्वारा अलग- अलग पांच जगहों (चौबट्टाखाल, चमनाऊँ, चरगाड, किमगड़ी एवं सलाण) में बच्चों के लिए ‘एक्स्ट्रा एक्टिविटी क्लासेज” की व्यवस्था भी की गई है। जिनमें बच्चों की छुपी हुई प्रतिभा को बाहर निकलने एवं उन्हें निखारने का प्रयास किया जा रहा है, इसके अलावा उनके आत्मविश्वास में वृद्धि, खेल खेल में उन्हें सिखाना और पढ़ाई को और अधिक रोचक बनाना इन एक्स्ट्रा एक्टिविटी क्लासेज का उद्देश्य है। इसके लिए संस्था एक्स्ट्रा एक्टिविटी के संचालकों को समय समय पर आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम में भी भेजती रहती है। देविखेत में UANA, “भलु लगद/ Feel Good” एवं किताब क्लब फाउंडेशन के सहयोग से आयोजित छहः दिवसीय कार्यशाला तथा श्रीनगर में आयोजित UANA, “भलु लगद/ Feel Good” एवं फ्यूचर आइकॉन द्वारा आयोजित छः दिवसीय कार्यशाला (Entrepreneurship Development programme) में “भलु लगद/ Feel Good” से दो संचलिकाएँ प्रतिभाग कर चुकी हैं। साथ ही हाल ही में देहरादून में “भलु लगद/ Feel Good” एवं Young Spark द्वारा आयोजित पांच दिवसीय प्रोग्राम Abacus and Brain gym program में भी संस्था से दो संचलिकाएँ प्रतिभाग कर चुकी हैं। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य बच्चों की काउंटिंग स्पीड को बढ़ाना है। अबेकस की सहायता से यह काम कुछ ही सेकण्ड्स में हो जाता है। इसी प्रशिक्षण को हम अपने बच्चों को भी देने वाले हैं। इसके अलावा यह संस्था कृषि के क्षेत्र में भी बहुत सारे काम कर रही है। बंजर खेत आबाद करो एक नई मुहिम संस्था द्वारा चलाई जा रही है जो लोगो को वैज्ञानिक व तकनीकी पर आधारित खेती करने के लिए प्रेरित कर रही है। संस्था द्वारा बड़ी इलायची, बेगन बोलिया, नीम्बू, एलोवेरा आदि की खेती भी की जा रही है। इसके साथ ही मौसमी फल व सब्जियों के उत्पादन पर भी जोर है।
बहरहाल जहाँ संस्था के धरातलीय कार्य दिखने शुरू हो गए हैं वहीँ नेहा और अमीषा दोनों ने लोकसंस्कृति को बढ़ावा देने के लिए चौन्दकोट की अनुपम नृत्य कला के पुनर्जीवन का पन्ना पुन: खोल दिया है! आपको बता दें कि इस नृत्य कला ने उस युग में जन्म लिया था जब गढ़वाल 52 गढ़ों में विभाजित था और गढ़वाल नरेश श्रीनगर के अधीन ये सभी गढ़पति हुआ करते थे!
यह रणबाजा भी माना गया है जो वीरता का प्रतीक है! कहा तो यह भी जाता है कि इसका उदय महाभारत के चक्रब्यूह संरचना से जुड़ा हुआ है और उसी को देखते हुए यह सरों/सरैं या फिर सरईयां नृत्य तैयार किया गया. ठीक उसी तरह जिस तरह कुमाऊं में छोलिया का जन्म हुआ!
रजवाड़े गए तो सरौं नृत्य थोकदारों के शादी विवाह में शान बन गया! ढोल दमाऊ मशक की धुन पर नृत्य करते सरईयां अपनी अद्भुत नृत्य कला से सबको मोह लेते थे. लेकिन भौतिकता के चरम ने सब कुछ बदल डाला! फिर बैंड बाजा आया और अब डीजे! इन जातियों का रोजगार छिनता गया और हम मूक बने रहे! कभी जो सरौं चौन्दकोट पिंग्लापाखा, तलाई की आन-बान-शान होती थी आज वह नाम के लिए छटपटा रहा है!
ऐसे में फील गुड संस्था ने अपने तीन बर्ष पूरे होने पर गवाणी गाँव में एक वृहद सांस्कृतिक कार्यक्रम रखकर अपने लोकगीतों लोकनृत्यों के पुनर्जीवन की भी रूपरेखा रखनी शुरू की है! ज्ञात हो कि ग्राम चरगाड़, पट्टी -पिंगलापाखा, विकास खंड पोखड़ा , जिला पौड़ी गढ़वाल की नेहा बुडाकोटि और अमीषा नेगी ने एक ऐसे नृत्य को चुना जो उन्होंने देखा भी हो इस पर संशय होता है लेकिन उन्होंने युट्यूब पर छोलिया देख प्रेरणा ली और सरों नृत्य प्रस्तुत कर इतिहास में सरों नृत्य प्रस्तुत करने वाली पहली बेटियाँ होने का गौरव हासिल कर लिया!
हिमालयन डिस्कवर न्यूज़ पोर्टल द्वारा उनका वीडियो युट्यूब में डाउनलोड किया है आप भी देखिये-https://youtu.be/cf4gXqcfzYk
Great work done by Sobha burakoti with bright talent …
जय हो।
Bhut sundar