सरकारी सिस्टम को दगड्या फाउंडेशन ने दिखाया आईना। बन्द होने जा रहे विद्यालय में छात्र संख्या ढाई गुना करवा दी।
(मनोज इष्टवाल)
यह तब हुआ जब प्रदेश के शिक्षा विभाग के सरकारी सिस्टम की मशीनरी ने अपने आप को अकर्मण्य व लाचार मानकर प्रदेश भर के उन सभी सरकारी प्राथमिक विद्यालयों को बंद करने का निर्णय ले लिए जिनमें 10 छात्र से कम छात्र अध्ययनरत हैं। ऐसे में यह बात विकास खण्ड एकेश्वर पौड़ी गढ़वाल के इसोटी ग्रामवासियों के उस बुद्धिजीविवर्ग को यह नाक का सवाल सा लगने लगा और साथ दुखी भी थे कि जहां से पढ़कर वे या उनके पूर्वज आगे बढ़े हैं आज वही स्कूल उनकी आंखों के आगे बन्द हो रहा है।

ऐसे में हाल ही में अपनी समस्त सुख सुविधाओं को तिलांजलि देकर अपने पुरखों के गांव आये सेवानिवृत्त कर्नल आशीष इष्टवाल ने ग्रामीणों के लिए एक सेतु का काम किया व स्वयं पहल करते हुए यहां के आर्गेनिक उत्पातों को दिल्ली जैसे महानगर में लेजाकर उसे अंतर्राष्टीय मंडी तक पहुंचाने का जरिया बनाया दगड्या को। दगड्या यानि दगड्या फाउंडेशन को एक प्लेटफॉर्म के रूप में आगे लाने के लिए कर्नल आशीष इष्टवाल, समाजसेवी कविंद्र इष्टवाल व सुप्रसिद्ध पत्रकार अंजिली इष्टवाल ने ग्रामीणों को साथ लेकर जिनमें अर्जुन इष्टवाल, दिव्या घिल्डियाल जैसे कई मुखौटों ने इसोटी गांव दगड्या फाउंडेशन से जोड़कर नई शुरुआत उन जड़ों की कर दी जो पलायन की आंधी में उखड़ने लगी थी।

समाज सेवी कविंद्र इष्टवाल ने दूरभाष में बातचीत करते हुए जानकारी दी कि दगड्या फाउंडेशन की स्थापना के पीछे एक ऐसी सोच विकसित करना हमारा मकसद था कि हम उन प्रवासियों का ध्यान अपनी थाती माटी की ओर आकर्षित कर सकें जो साधन संपन्न हैं और गांव भी आना चाहते हैं लेकिन उनके पास उसके कोई ऐसे ऑप्शन नहीं हैं जिसे वह गांव में रहकर पूरा कर सके। उन्होंने बताया कि कर्नल आशीष इष्टवाल के साथ मिलकर हमने यह फाउंडेशन स्थापित करने की सोच रखी व हम दोनों ही फाउंडेशन के निदेशक बनकर ग्रामीण स्तर पर मिट्टी से जुड़कर मिट्टी के जनमानस को आगे लाना चाहते हैं। उन्हें खुशी है कि कर्नल आशीष का यह प्रयास सफल हुआ और हम ग्रामीणों को साथ लेकर चल रहे हैं जो हमारा व खुद का भी उत्साह बढ़ा रहे हैं।

अब दगड्या फाउंडेशन ने दिव्या घिल्डियाल की अगुवाई में एक और नई पहल की जो शिक्षा के क्षेत्र में आस की किरण साबित हुई। कर्नल आशीष इष्टवाल ने जब इसोटी प्राथमिक विद्यालय की जल्दी ही बंद होने की खबर सुनी तो वे सन्न रह गए। दगड्या फाउंडेशन किसी भी हाल में स्कूल को बचाने की तरकीबें सोचने लगा । फिर पहल हुई कि प्राथमिक स्कूल को हम अंग्रेजी मीडियम स्कूलों के समकक्ष लाकर खड़ा करेंगे। शुरुआत वहां कम्प्यूटर, अच्छी साज सज्जा व सुंदर कपड़े देकर हुई। दगड्या ने स्कूल में कम्प्यूटर क्या दान किये 7 विद्यार्थी बढ़कर ढाई गुना से ज्यादा हो गए। जो विद्यालय बन्द होने वाला था उसमें 18 विद्यार्थी आ गए और लोगों के बीच चर्चा में इसोटी प्राथमिक विद्यालय आ गया।

दगड्या फाउंडेशन के कर्नल आशीष इष्टवाल के कहा कि अभी 3 और एडमिशन होने वाले हैं, उन्होंने कहा दगड्या का फोकस अब जर्जर हो चुकी स्कूल की इमारत को ठीक करवाना है वहीं ग्रामीणों का कहना है कि अब गांव ही नहीं बल्कि आस पास के गांव के लोग भी अपने बच्चों के भविष्य के लिए हमारे प्राथमिक विद्यालय में रुचि दिखा रहे हैं। उन्होंने कहा यहां दगड्या फाउंडेशन के अर्जुन इष्टवाल ने ग्रामीणों के साथ इस कार्य को सफल बनाने की जितनी कोशिश की वह काबिलेतारीफ है। यह सामुहिक प्रयास है जो संघ शक्ति के रूप में आगे बढ़ने का प्रयास हो रहा है। हम तो सिर्फ उसके अदने से मुखौटे भर हैं इसलिए मुझे क्रेडिट न देकर उन सभी ग्रामीणों व दगड्या टीम के सदस्यों को क्रेडिट दीजिये जो इसे सफल दिशा में सच्ची व अच्छी सोच के साथ ले जा रहे हैं।
बहरहाल यह किसी चमत्कार से कम नहीं है क्योंकि सरकारी सिस्टम की इस से बडी असफलता और क्या हो सकती है जो हर उस विद्यालय को बंद करना चाह रहा है जिसकी छात्र संख्या 10 से कम है लेकिन इसोटी गांव की दगड्या फाउंडेशन ने इतिहास रचते हुए न सिर्फ अपने पुरखों का सरकारी स्कूल बचा लिया बल्कि सरकारी सिस्टम की बड़ी नाकामी के लिए वे पूरे प्रदेश में एक ऐसा आईना साबित हुए जो हर उस ग्राम सभा के लिए सबक है जिनके स्कूल बंद होने के कगार पर हैं।