समाजसेवा कोई कवींद्र से सीखे। राजनीति अपनी जगह और कर्म में समाजसेवा अपनी जगह।

(मनोज इष्टवाल)

पार्टी राजनीति को एक तरफ रख देते हैं। बात करते हैं उस समाजसेवा की जिससे परिजन भी परेशान हैं। कब घर आता है, आता भी है कि नहीं। कब किस क्षेत्र में है यह बताना भी मुश्किल..! बस तभी पता चलता है जब उसकी फोटो फेसबुक पर दिखाई देती हैं कि आज वह वहां-वहां था। यह मैं नहीं बल्कि कवींद्र का वह हर परिजन कहता है जो ढूंढते हुए कवींद्र के घर तक पहुंच जाता है।

कवींद्र इष्टवाल वर्तमान में उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस में सचिव पद हैं। इससे पूर्व वे चौबट्टाखाल विधान सभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़े थे और हार गए। उससे पहले भाजपा किसान मोर्चा में थे और उससे पहले एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में अपने क्षेत्र में एक बर्चस्वशाली व्यक्ति। आज पार्टी पॉलिटिक्स में हैं इसलिए पार्टियों में बंटे समाज के बीच कद तो बढा है लेकिन छित्तरा सा गया है। कुछ की पीड़ा है कि उसे मरे हुए सांप को गले में नहीं टांगना था क्योंकि कांग्रेस की स्थिति को ये लोग वर्तमान में मरे हुए सांप से कम नहीं मानते तो कुछ का कहना है उसने बहुत अच्छा किया। ये भाजपाई मतलबपरस्त हैं व सिर्फ इस्तेमाल करना जानते हैं। कुछ तो कवींद्र के चुनाव हारने के पीछे डॉ. निशंक का हाथ मानते हैं तो कुछ सतपाल महाराज के विपक्ष में जानबूझकर भाजपा की अंदरूनी राजनीति का डम्मी कैंडिडेट।

बहुत समय से कवींद्र पर इसलिए नहीं लिख रहा था क्योंकि कवींद्र इष्टवाल है व मैं भी। परिवार के होने के नाते पहले ही अपनी 32 साल की पत्रकारिता में यह सुन चुका हूं कि मनोज इष्टवाल सतपाल महाराज का आदमी है उसी ने क्षेत्र में आकर लोगों को भड़काया और उसी के कारण कवींद्र विधान सभा चुनाव हारे।

यह राजनीति की बिसात है जिस पर बड़ी कूटनीति के तहत बड़े राजनेता मोहरे चलते हैं व उन्हें इस्तेमाल करते हैं। राजनीति में किसी का इस्तेमाल कैसे किया जाता है यह कवींद्र जानते भी होंगे या नहीं, मैं नहीं जानता लेकिन इस बार भले से जान गया हूँ जब अपने आप खुद कहीं इस्तेमाल किया गया हूँ।

मैं कवींद्र का इसलिए मुरीद नहीं हूं कि वह इष्टवाल हैं या फिर प्रदेश कांग्रेस में बड़े पद पर हैं। मैं कवींद्र का इसलिए मुरीद हूँ कि उसकी कार्यशैली में ओछी राजनीति शामिल नहीं है। उसने हार भी उतनी ही शान से स्वीकारी जितनी शान से उसने चुनाव लड़ा। हार के बाद से लेकर आज तक बमुश्किल कुछ खास अवसरों पर ही मैने कवींद्र को देहरादून में पाया बाकी समय वह उसी विधान सभा क्षेत्र में दुःख-सुख बांटता, काकी बोडी, चाचा ताऊ करता सबके साथ उठता बैठता व मुसीबत में आगे बढ़कर हाथ बंटाता दिखा।

वर्तमान परिवेश को ही देख लीजिए । कोरोना महामारी में जहां प्रदेश भर के गिने चुने दो चार मंत्री व इतने ही विधायक क्षेत्रीय जनता के बीच संवाद करते दिख रहे हैं व बाकी इस डर से बाहर झांक भी नहीं रहे कि कहीं कोरोना उन्ही पर चिपक गया तो क्या होगा? ऐसे में कवींद्र आये दिन सोशल साइट्स पर अपने समाज के बीच मेडिकल फेसिलिटीज सम्बन्धी जानकारियां साझा करते हुए अवेर्नेस फैलाते नजर आ रहे हैं।

मददगारों की ऐसी ही लिस्ट में समाजसेवी कविन्द्र इष्टवाल एक बार फिर जरूरतमंदों के साथ खड़े होकर उन्हें रसद सामग्री, कोरोना महामारी से बचने के लिए सैनिटाईजर्स, ग्लब्स, मास्क बांटकर इस भयावह परिस्थिति में जागरूक करने में लगे हुए हैं। उन्होंने कोटद्वार, दुगड्डा, गुमखाल, सतपुली, नौगांवखाल, किर्खू , चौबट्टाखाल, दमदेवल, एकेशवर, पाटीसैण, संगलाकोटी में जनता की सेवा में लगे प्रशासन, मेडिकल स्टाफ सहित आम लोगों को उक्त सामग्री का वितरण किया। साथ ही उन्होंने आम जनता को इस महामारी से बचाने के लिए भी जागरूक कर सोशल डिस्टेंस के महत्व को भी समझाया।

कवींद्र से आज बात करने का मन हुआ तो उन्होंने फोन पर बताया कि मेरे लिए “जनसेवा ही सर्वोपरि” है। आज वह पब्लिक वाले स्थान जैसे की बाजार, बैंक कर्मचारियों , आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ती, पुलिसकर्मी, पोस्ट ऑफिस, तहसील, पेट्रोल पंप और राहगीर लोगों को धरासू, रणस्वा, नौगाँवखाल, चौबट्टाखाल, दमदेवल, सिमारखाल, एकेश्वर, श्रीकोटखाल, पाटीसैण आदि क्षेत्रों में सैनेटाइज, मास्क, ग्लब्स आदि करते रहे और साथ ही जनता से यह अनुरोध भी कि लोग अपने घरों में रहे, अनावश्यक ना घूमें व भीड़ – भाड़ वाले स्थानों से दूरी बनाये रखे, जल्द ही हम इस वैश्विक महामारी लड़ाई को जीतेंगे।

सचमुच दिल को खुशी हुई कि कवींद्र जैसे समाजसेवी के पीछे मेरी जात “इष्टवाल” शब्द जुड़ा है। आने वाले समय में कवींद्र जैसे समाजसेवी राजनीति में कितने सफल होकर नाम रोशन करते हैं यह भविष्य की गर्त में है लेकिन एक समाजसेवक के रूप में इस नाम पर गर्व होता है।

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