समय की चोट खाकर जो सुरक्षित रहे वह पांडुलिपि है!

(कुसुम रावत की कलम से)

द्रोण नगरी का कैम्ब्रिन हाल स्कूल ऐतिहासिक तीन दिवसीय चारधाम यात्रा विषयक पांडुलिपि यात्रा की राष्ट्रीय संगोष्ठी का गवाह बना। आज इस संगोष्ठी का विद्धतापूर्ण समापन हुआ। यह संगोष्ठी संयुक्त तौर पर राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार नई दिल्ली एवं टिहरी बांध के कारण समाधि ले चुके टिहरी शहर की धरोहर पुराना दरबार ट्रस्ट देहरादून ने संयुक्त रूप से आयोजित की। इस संगोष्ठी के समापन समारोह की अध्यक्षता डा. लक्ष्मी प्रसाद द्वारा की गई।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि चार धाम कमेटी के उपाध्यक्ष आचार्य शिव प्रसाद मंगगाई ने कहा कि जगह-जगह बिखरी पांडुलिपियां हमारी धरोहर हैं। यह समय की चोट और काल के थपेड़े खाकर सदियों से सुरक्षित रही हैं। इस धरोहर को सहेजना हमारी जिम्मेदारी है। उत्तराखंड के लोग भारतीय पांडुलिपि मिशन और पुराना दरबार ट्रस्ट के आभारी हैं कि आपके सद्प्रयासों से यह द्रोणनगरी इतने ऐतिहासिक महत्व की संगोष्ठी का गवाह बना। मैं पांडुलिपी यात्रा के गवाह बने हर प्रतिभागी का हदय से आभारी हूं कि आपने इसके सफल आयोजन में अपना योगदान दिया।

इस बेहद महत्वपूर्ण संगोष्ठी में तीन दिन तक चारधाम विषयक, कैलाश मानसरोवर, जागेश्वर धाम, गंगा जी, यमुना जी, लोक साहित्य, लोक मान्यताओं, लोक परंपराओं, लोक विश्वासों, लोक कवियों, स्तुतियों, पूजा पद्धतियों, देव स्थलों, पूजा-अर्चना के तौर तरीकों, उत्तराखंड की पांडुलिपि परंपरा, विभिन्न यात्रा पथों, बही खातों, तीर्थ यात्रिओं, नंदा देवी राजजात, नरसिंह देवता, कर्मकांड, धार्मिक-पौराणिक अनुष्ठानों, संगीत, भक्ति, उपासना, तंत्र मंत्र, बाबा काली कमली वाला, बुग्यालों, मौखिक साहित्य, मुल्तान जोत महोत्सव, धर्मशालाओं, तंत्र-मंत्र, मंदिरों, धार्मिक यात्राओं, बौद्ध धर्म, पांडुलिपी क्या-कैसे-संरक्षण और उत्तराखंड के महत्वपूर्ण धामों व पंथों आदि के बारे में रोचक जानकारियां दी गईं। संगोष्ठी में हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल, राहुल सांस्कृत्यान, कुमांऊ की जसुली सौक्याणी, गंगा से गंगा सागर तक, टिहरी राजवंश के योगदान, कई जींवत मानव पांडुलिपियों आदि के बारे में रोचक वक्तय देश भर से आये विद्वानों ने अपने-अपने व्यापक अनुभवों में बांटे और अपने व्याख्यानों व अनुभवों से संबधित ऐतिहासिक दस्तावेजों को भी दिखाया।

संगोष्ठी में पांडुलिपि शब्द के उद्भव, पांडुलिपी और लिपियों के विकास के इतिहास, श्रुति परंपरा, पांडुलिपियों के कागज और संरक्षण विधा, प्रस्तर-कागज-चर्म-स्वर्ण-ताम्र पत्र लिपियों आदि पर महत्वपूर्ण जाकारियां दी गईं। आज के सत्रों में असीम शुक्ल, प्रो. उमा मैठाणी, डा. मुनी राम सकलानी, प्रो. सुधा रानी पांडेय, उमा मैथाणी, प्रो. राम विनय सिंह, डा. संजय लाल शाह, डा. कमला पंत, डा. सुदेश व्याला, डा. योगम्बर बर्त्वाल, कुसुम रावत, डा. प्रभाकर जोशी, डा. यशवंत कटौच, डा. लालता प्रसाद , अर्चना बहुगुणा सहित कई विद्धानों ने शोध पूर्ण वक्तव्य दिये।

यह संगोष्ठी एक ऐतिहासिक पल की गवाह बनी जब श्री बद्रीनाथ धाम की स्तुति पवन मंद सुंगध शीतल की पांडुलिपी को उनके संरक्षक ठाकुर धन सिंह बर्तव्वाल के पौत्र महेन्द्र सिंह बत्र्तवाल ने संगोष्ठी में दिखाया। इस परिवार को संगोष्ठी में सम्मानित किया गया। उत्तराखंड में पांडुलिपियां बिखरी पड़ी हैं जिसका उदारहण श्रीनगर में प्रो. उमा मैठाणी के पास 900 साल पुरानी दुर्गा सप्तशती सहित कई ऐतिहासिक पांडुलिपियां हैं। इन पांडुलिपियों के बारे में जानना एक तरह से पांडुलिपी यात्रा से गुजरना था। संगोष्ठी में पद्मश्री जागर गायिका बसंती पाठक ने श्री बद्रीनाथ जी की स्तुति को जागर शैली में पहली बार गाया।

संगोष्ठी मे ऐसे भी उदारहण आये जब वक्ताओं ने कहा कि कई जगह पांडुलिपियों का महत्व ना समझकर उनको कबाड़ी को बेच दिया या जला दिया या नष्ट कर दिया। यह दुर्भाग्यपूर्ण है इसलिए इन पांडुलिपियों को संरक्षित करने की जरूरत है। साथ ही उन लोगों को भी सम्मान देने की जरूरत है जिन्होंने विषम परिस्थितियों में इन ऐतिहासिक दस्तावेजों को बचाकर रखा है। कुसुम रावत ने कई उदारहण देकर पांडुलिपियों के साथ जीवंत पांडुलिपियों के ज्ञान की अनमोल धरोहर को बचाने की ओर सभी का ध्यान आकृष्ट किया. कमला पन्त ने लोक मत व्की मान्यता की महता पर जोर दिया.

संगोष्ठी में समाजसेवी सविता कपूर, लेखिका वीणा पाणी जोशी व शिक्षाविद् राजेश्वरी चंदोला को सम्मानित किया गया। संगोष्ठी के मुख्य आयोजक पुराना दरबार ट्रस्ट के सूत्रधार महान इतिहासकार ठाकुर शूरवीर सिंह पंवार के कार्यों पर डा. यशवंत कटौच द्वारा संपादित ऐतिहासिक दस्तावेज ‘गढ़वाल के प्रमुख अभिलेख’ का विमोचन हुआ। आयोजक ठाकुर भवानी प्रताप सिंह ने कहा कि पुराना दरबार ट्रस्ट के पास अभी तक 250 महत्वपूर्ण पांडुलिपियां प्राप्त हुई हैं। हम उत्तराखंड में यत्र-तत्र-सर्वत्र बिखरी पांडुलिपियों के संरक्षण, संर्वद्धन हेतु प्रतिबद्ध हैं। हमारी कोशिश होगी कि हम भविष्य में इन सभी पांडुलिपियों का प्रकाशन राष्ट्रीय पांडुलिपी मिशन के सहयोग से करें। गोष्ठी में शहर के मूर्धन्य विद्धानों और सुधीजनों ने प्रतिभाग किया।

निसंदेह यह एक रोमांचक संगोष्ठी रही जो उत्तराखंड के चारधाम यात्रा से जुड़ी पांडुलिपियों ही नहीं उत्तराखंड की संस्कृति, सभ्यता और जन जीवन से जुड़ी हर विधा को संजोने और संभालने के काम में मील का पत्थर साबित होगी। इस ऐतिहासिक पांडुलिपी यात्रा संगोष्ठी के सूत्रधार डा.देवेन्द्र कुमार सिंह और ठाकुर भवानी प्रताप सिंह ने संगोष्ठी के सफल आयोजन हेतु सभी का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का सफल संचालन वीना बेंजवाल ने किया।

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