सन 47 में 47 रुपये की तहसीलदार श्रीराम घिल्डियाल की वह घड़ी।
तहसीलदार श्रीराम घिल्डियाल ने गुलाम हिंदुस्तान से स्वतंत्र हुए भारत की याद में घड़ी खरीदी।
(मनोज इष्टवाल)
वो क्या जज्बा रहा होगा जब स्वतंत्र भारत में पहली दफा हम हिन्दुस्तानियों ने सांस ली होगी। अपने समय के सुप्रसिद्ध तहसीलदार श्रीराम घिल्डियाल एक ऐसे बिरले व्यक्ति हुए जिन्होंने एक अनूठा रिकॉर्ड बनाया और वह रिकॉर्ड है उनके द्वारा सन 1947 में खरीदी गयी 47 रुपये की घड़ी।
l
उनके मालरोड स्थित नैनीताल आवास में जब मैं उनके इतिहासविद्ध पुत्र प्रोफेसर संजय घिल्डियाल से मिला तो यह अजूबा देख हैरान रह गया।
दरअसल गोलज्यू देवता पर अपनी शूटिंग पूरी करने के बाद पहाड़ पत्रिका के संपादक व वरिष्ठ इतिहासकार साहित्यविद्ध पदमश्री डॉ शेखर पाठक से गंगोलीहाट गुमानी पंत जी पर फोकस एक कार्यशाला में मुलाकात हुई और तब यह तय हुआ कि शेखर दा मुझे 13 मार्च को नैनीताल समाचार के संपादक राजीव लोचन शाह के तल्ली ताल स्थित कार्यालय में मिलेंगे।
तय समय पर घोड़ाखाल से फ़िल्म के प्रोड्यूसर जीवन चन्द जोशी मुझे लेकर तल्ली ताल पहुंचे भी लेकिन राजीव दा कार्यवश मल्ली ताल गए थे।
मुझे भी लगा कि अपना सामान मल्ली ताल सुप्रसिद्ध फोटोजर्नलिस्ट राजीव काला के घर छोड़कर शाम को आराम से निकलूंगा। मल्ली ताल पहुंचा तो राजीव काला हरिद्वार आये थे लेकिन उनके घर में मुझे हमेशा ही पुत्र सा प्यार मिला व भाई बहनों जैसा लाड़। इसलिए निश्चिंत हुआ वहीं से शाह जी को फोन किया तो पता चला अब वे तल्ली ताल नैनीताल समाचार के दफ्तर में पहुंच गए। फिर शेखर दा को फोन लगाया तो उन्हें हल्द्वानी जल्दी निकलना था क्योंकि हॉस्पिटल किसी रिश्तेदार को देखना था और वहीं से दिल्ली..!
हार्ड लक होंठ लाचारी की मुस्कराहट मुस्कराने लगे क्योंकि लब तक आते आते हाथों से सागर जो छूट गया था।
रेखा पंचभैया दी यह देखकर कुछ बेचैन हुई तो उन्होंने झट से एक और नाम सुझाया और वह थे प्रोफेसर संजय घिल्डियाल।
बात हुई तो संजय घिल्डियाल जी ने गोलज्यू पर असमर्थता जताते हुए कहा कि उनका काम मॉडर्न हिस्ट्री पर रहा लेकिन मुझे उनकी बातों से लगा कि जरूर यहां कुछ गुंजाइश है।
रेखा पंचभैया दी ने टाइम फिक्स करवाया और मैं अपना झाम ताम उठाकर मल्ली ताल प्रोफेसर घिल्डियाल के घर जा पहुंचा।
ये उदित घिल्डियाल के बाद मुझे दूसरे ऐसे घिल्डियाल मिले जिनमें जितनी इनपुट है आउटपुट भी उतनी ही। बातों का सिलसिला जारी हुआ तो पता लगा इनके पिताजी श्रीराम घिल्डियाल जी मूलतः खोला गांव श्रीनगर से यहां बतौर तहसीलदार बनकर ब्रिटिश शासन काल में आये और यहीं के होकर रह गए।
अचानक सरसरी नजर दीवार पर दौड़ाई तो पाया पेंसिल से स्केच किये हुए 1937 के दो मैप पौड़ी गढ़वाल के टंगे थे।दो बड़े बड़े फ्रेमों पर बादामी कागज देखा तो पूछा ये क्या है? प्रोफेसर घिल्डियाल के बताने से पहले ही रेखा पंचभैया बोल पड़ी- अरे आपने अभी देखा ही क्या है। ये देवदार की छाल है जिसे इन्होंने किसी कैमिकल के माध्यम से कई बर्षों से जिंदा रखा है और हां अंदर कमरे में संजू की बड़ी लाइब्रेरी भी है।
वो देखो टेबल पर फ्रेम किया हुआ घड़ी का बिल!
घड़ी का बिल…? बात अटपटी लगी लेकिन जब संजय घिल्डियाल ने बताया कि उनके पिताजी ने यह घड़ी स्वंत्रता दिवस के उपलक्ष में यादगार के तौर पर मंगवाई। क्योंकि तब भारत स्वंत्रत होने वाला था इसलिए उन्होंने सोचा क्यों न ऐसी कोई वस्तु उनके पास चौबीस घण्टे मौजूद रहे जो खराब भी न और गुलाम भारत के स्वतंत्र होने की याद भी दिलाता रहे।
वे प्रसन्न होकर कहते हैं कि घड़ी उन्हें स्वंत्रत भारत के चन्द महीने पहले प्राप्त हुई लेकिन 1947 की यह घड़ी तब 47 रुपये में आई। जिसका बिल व गारंटी कार्ड आप देख ही रहे हैं।
70 साल की उम्र में यह घड़ी सिर्फ इतनी खराब हुई कि इसका पट्टा खराब हुआ है और कुछ नहीं। प्रोफेसर संजय घिल्डियाल कहते हैं वे आज भी उतने ही शौक से इसे पहनते हैं जितने शौक से यह उनके पिता की कलाई में सजी रहती थी।
श्रीराम घिल्डियाल अपने जमाने के जाने माने शख्स व गढवाळी नैनीताल में माने जाते थे क्योंकि तब नैनीताल में बमुश्किल दो या चार परिवार ही गढवाळी हुआ करते थे।
बहरहाल आपको बता दें कि उस काल में एक फौजी को मात्र 3 या 4 रुपया महीना वेतन मिलता था ऐसे में एक घड़ी 47 रुपये की खरीदी जाय तो सीधा सा अर्थ हुआ कि यह घड़ी एक फौजी की सालभर की कमाई से बनती।
तहसीलदार श्रीराम घिल्डियाल तो नहीं रहे लेकिन उनके पुत्र ने स्वंतत्र भारत की यानी 1947 की 47रुपये में खरीदी गयी यह घड़ी ही बेहद सम्भालकर नहीं रखी बल्कि उसका बिल फ्रेम कर अपने पिताजी की यादों को भी बेहद सम्भालकर रखा हुआ है। ऐसे पुत्र को मेरा सलूट…।