सती और थपलियाल एक ही वंशज भाई-भाई!
सती और थपलियाल एक ही वंशज भाई-भाई!
(मनोज इष्टवाल)
गुजरात नरेश कनकपाल के चांदपुर गढ़ी आकर बस जाने के कारण उनके पुरोहित गौड़, सती और कान्यकुब्ज इत्यादि ब्राह्मण भी उनकी गुरु पुरोहिताई करने यहीं आकर बस गए! इनमें सती जाति के गुरु गोबर सती(भारद्वाज गौत्र, भारद्वाजजांगीऋषि, त्रिपर्वर,महादुन्दनी साखा, यजुर्वेदी) जिन्होंने चार पीढ़ी तक चांदपुर गढ़ी में राजपुरोहिताई की! राजा द्वारा उनकी पांचवीं पीढ़ी के पंडित दलती सती को चांदपुर गढ़ी के पास ही थापली गाँव की जागीर भेंट की गयी जहाँ बस जाने से ये थपलियाल कहलाये!
शुरूआती दौर में ये थापलीवाल कहलाये जो बाद में अपभ्रंश होकर थपलियाल हुए! इनकी चार पीढ़ी चांदपुर गढ़ में पंडित गोबर सती, पंडित देवर सती, पंडित नागुर सती व पंडित वागुर सती हुए! पांचवीं पीढ़ी के पंडित दलती सती आकर चांदपुर गढ़ के पास थापली बसे जहाँ इनके गाँव के आधार पर इन्हें सती के स्थान पर थपलीवाल की उपाधि मिली जो बाद में थपलियाल हुई!
इनकी दसवीं पीढ़ी के पंडित नागचंद थपलियाल द्वारा संवत 1500 ई. में पौड़ी गढ़वाल के कफोलस्यूं स्थित थापली गाँव (राजा अजयपाल द्वारा चांदपुर गढ़ी से श्रीनगर राजधानी स्थान्तरित करने पर) बसाया गया! तथापि इसी काल में पंडित शोभानाथ के पुत्र पंडित धामदेव ने कफोलस्यूं सिमतोली में बसागत की जहाँ से इनके पीन पुत्र पंडित रुद्रदेव पंचुर (मवालस्यूं), पंडित सदानंद सिमतोली, पंडित देविन्द्र मासौं (मवालस्यूँ) जबकि खैड मवालस्यूं बसाने का श्रेय पंडित वृहस्पति थपलियाल को जाता है जो राजा के मुआफिदार व फौंदार रहे हैं! अत: इस सबसे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि सती व थपलियाल एक ही जाति वंश के हैं! इसके अलावा इनकी शाखाएं फैलती गयी और ये छोटे बड़े गाँव जिनमें कफोलस्यूं मरोड़ा, असवालस्यूं चिलोली, मनियारस्यूं ड्यूसी-बंगानी, भटकोटि सहित विभिन्न गाँवों में प्रतिष्ठाथित हुए!