सतपाल महाराज- मंत्री नहीं जिन्हें भगवान मानते हैं पर्वत के लोग…!
सतपाल महाराज- मंत्री नहीं जिन्हें भगवान मानते हैं पर्वत के लोग…!
(मनोज इष्टवाल)
पहाड़ी समाज के लोगों ने पर्वतीय समाज की उस लोक संस्कृति, सभ्यता और प्रकृति के प्रति समर्पण तो भले से देखा होगा! ये लोग सचमुच खुद में देवतुल्य होते हैं! हिमालय के बेहद करीब रहने वाले पर्वतीय लोगों के भाव और भावनाओं को गढ़वाली मूर्धन्य कवि/गीतकार कन्हैय्या लाल डंडरियाल ने जितनी खूबसूरती के साथ उकेरा है उतनी ही अधिक खूबसूरती से सुप्रसिद्ध लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने अपने उत्कंठ स्वर से ऐसे समाज की संरचना में चार चाँद लगा दिए- “ झम-झम ले दादू मेरी ऊलरिया जिकुड़ी, दादू मी पर्वतुं को वासी!, झम झमाले दादू मी चैडी की चुलन्ख्युं, चळकदा ह्युंचलौंs देखुदु!!”
उत्तरकाशी जनपद की रुपिन सुपिन नदी घाटी सभ्यता के ये 44 गाँव यकीनन रोज हिमालय पर पड़ती धूप से चमचमाते पहाड़ों की उदमत ठंडी बयार को अपने आगोश में समेटकर जैसे उसकी शीतलता से सबको मन्त्र-मुग्ध करने के लिए ही बने हों! यह घाटी जितनी दुर्गम है उतनी ही खूबसूरत इसकी नदियाँ, बुग्याल और पर्वत श्रृंखलाएं हैं जिसमें कस्तूरी मृग सहित कई वन्य जानवर विचरण करते हैं ! जिसे परीलोक कहा जाता है और जहाँ का लोकदेवता सोमेश्वर (कुबेर) है !
विगत दिनों 18-19 अप्रैल 2018 को यहाँ के सबसे बड़े गाँव जखोल में बसंत के आगमन का बिस्सू मेला त्यौहार मनाया गया! जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में प्रदेश के पर्यटन, सिंचाई एवं संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज ने शिरकत की! जखोल गाँव में मानों आज कोई ख़ास लोक त्यौहार रहा हो! हिमालयी क्षेत्र में किसी मंत्री के आने पर इतनी अधिक भीड़ का अनुमान लगाया जाना बेहद कठिन है! गाँव के गाँव ऐसे उमड़ रहे थे मानों आज साक्षात शिब की बरात आई हो! दूरस्थ पर्वत के लिवाड़ी-फिताड़ी गाँव रहे हों या फिर ओसला गंगाड! सब ओर से जयकारों की सुबह से ही गूँज सुनाई दे रही थी!
जखोल के सोमेश्वर मंदिर प्रांगण में पैर रखने की जगह नहीं थी! और दूसरी ओर मौसम का मिजाज बेहद खराब था! सुबह से ही बारिस ने कहर ढाया हुआ था! ग्रामीण सब परेशान थे कि कैसे महाराज का हैलीकॉप्टर गाँव तक पहुंचेगा क्योंकि घने कोहरे व बरसात ने सब उलट कर दिया था! आखिर सब मंदिर प्रांगण में इकठ्ठा हुए और देवता को झुलाया फिर वही हुआ जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते! एकाएक बादल छंटे और मौसम बेहद खुशनुमा हो गया ! पूरे गाँव की महिलायें आज नहा धोकर सज संवरकर मंदिर प्रांगण में इकठ्ठा हुई थी! ऐसा मैंने दूसरी बार देखा देखा! पहले तब जब 12 बर्ष बाद सोमेश्वर की डोली जात्रा इस गाँव से देवक्यार हिमालयी क्षेत्र के लिए निकली थी या फिर आज! क्योंकि एक बार जयकारा लगता – “सोमेश्वर महाराज की जय” और फिर दूसरी बार जयकारा गूंजता- बोले सदगुरु भगवान् सतपाल महाराज की जय” !
सतपाल महाराज और भगवान? यह सचमुच सुनना मुझ जैसे आम व्यक्ति के लिए बेहद अलग अनुभव था! क्योंकि मैंने उन्हें मिनिस्टर के रूप में देखा था गुरु के रूप में देखा नहीं सिर्फ प्रवचन करते सुना था लेकिन यह रूप वह भी पहाड़ी प्रदेश उत्तराखंड में भी उनका होगा यह पहली बार देख व सुन रहा था! क्योंकि कहावत है- “घर का जोगी जोगना, आण गाँव का सिद्ध” ! सतपाल महाराज उत्तराखंड में भी अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश सहित नेपाल के पहाड़ी प्रदेश की भाँति पूजे जाते हैं यह पहली बार देखने व सुनने को मिल रहा था! वैसे तो मैंने विधान सभा, सचिवालय व स्वयं उनके घर में बड़े-बड़े सूरमाओं को उनके चरणों में नतमस्तक होते देखा था लेकिन हृदय से तब यही आवाज निकलती थी कि ऐसे लोग सिर्फ अपने चंद स्वार्थों की पूर्ती के लिए चाटुकारिता करते हैं और कुछ नहीं! लेकिन यहाँ पर्वत क्षेत्र में तो मंजर कुछ और ही था! सतपाल महाराज को अपने लोकदेवता के समान भगवान् मानते ये लोग जाने कितनी बेताबी से उनका इन्तजार कर रहे थे!
अभी हैलीकॉप्टर की दूर-दूर तक दिखाई देने की संभावना भी नजर नहीं आ रही थी कि महिलायें बूढ़े बच्चे हैलीपैड से सौ मित्र की दूरी पर करछीयों में आग और घी की सुगंध लिए, हाथों में पुष्प मालाये लिए, केदारपाती की खुशबूदार हरित मालाएं लिए अपने भगवान सतपाल महाराज का इन्तजार करते हुए जयकारा लगाते व क्षेत्र की देवियों मात्रियों से उनके कुशलता पूर्वक पहुँचने की कामना करते प्रकृति से अनुरोध करते सुनाई देते कि बस तू हमारी लाज रखना! हमारे भगवान के चरण इस धरती पर पड़ने देना! जिस व्यक्ति के खेत में आलू बोये गए थे और अब उस खेत में हैलीपैड था वह ख़ुशी से मानों झूम रहा हो! वह कहता सुनाई दे रहा था कि आज मेरे खेत की मानी सोना हो गयी है क्योंकि जखोल की धरती पर उनका पहला कदम मेरे खेत में पड़ने वाला है!
सचमुच महाराज का इस ख़ास त्यौहार में पदार्पण यहाँ के लोगों के लिए ख़ास था क्योंकि पर्वत क्षेत्र के 22 गाँव नहीं बल्कि यहाँ 44 गाँव के लोग विगत रात्रि से ही डेरा जमाये हुए थे! जखोल के पार दूर गाँव से पहुँचने वाले लोगों की बारात सुबह से ही पहाड़ी ढालों में उतरती दिखाई दे रही थी! ऐसे में पुलिस प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती थी क्योंकि यह ऐसी पब्लिक थी जो प्रदेश के किसी मंत्री-संतरी से मिलने नहीं बल्कि अपने सदगुरु और हृदय में भगवान की तरह बसे सतपाल महाराज के दर्शन के लिए जुटे हुए थे!
अचानक पश्चिम दिशा से बड़े बड़े पंख फैलाए एक वायुयान हवा में तैरता दिखाई दिया और जयकारों की आवाज में प्रतीक्षा की उदिग्नता का आभास आसमान की बुलंदियों तक पहुँचने लगा! अचानक ग्रामीणों ने देखा कि हैलीकॉप्टर गाँव आते आते दूसरी ओर मुड़ गया तो लगा कि जाने क्यों वापस लौट रहे हैं! ऐसा सन्नाटा मानों –काटो तो खून न निकले! बिणासु के परी मन्दिर/ मातृका स्थान से जैसे ही हैलीकॉप्टर चक्कर काटकर वापस जखोल की तरफ मुड़ा तो सब कहते सुनाई दिए देखा – हैलीकॉप्टर के ड्राईवर (पायलट) को बिणासु की मातृकाओं ने बुलाकर आशीर्वाद दिया है! और जैसे ही हैलीकॉप्टर ने लैंड किया धूल के गुब्बार ने जाने उन सैकड़ों करछीयो की आग और घी की खुशबु किस किस दिशा में फैला दी! पंखुड़ियां शांत हुई तो महाराज अपने पीताम्बरी चोले के साथ नीचे उतरे! जोर का जयकारा गूंजा और सुबह 7 बजे से प्रतीक्षा में बैठी कुछ कन्याएं शुद्ध पहाड़ी परिधानों के साथ महाराज की आरती उतारने सिर्फ पर लोटे में गंगाजली, श्रीफल व केदारपाती के साथ प्रकट हुई! धूप-दीप से सतपाल महाराज को अलंकृत करने के बाद हुजूम मंदिर प्रांगण की तरफ बढ़ने लगा! महाराज से दूरी बनाने में पुलिस व स्थानीय लोगो को काफी मशक्कत करनी पड़ी! हर कोई चाहता था कि वह सतपाल महाराज की चरण पादुका की धूलि अपने सिर माथे सजाये लेकिन यह सुरक्षा दृष्टि से संभव नहीं था! मंदिर प्रांगण पहुँचते ही मानों पब्लिक बेकाबू हो गयी हो हर किसी के पास अपने गुरुदेव अपने भगवान् को चढाने के लिए मालाएं, रेशमी साफे, शाल व धूप दीप नैवैध व गौ दुग्ध था! कई आँखें बंद कर बुदबुदा रहे थे _ जय सोमेश्वर जय भगवान् सतपाल महाराज! सच मानिए ऐसा आत्मीयता में बसा भगवान् मैंने पहली बार अपनी आँखों से देखा! पत्रकारिता की कुछ मजबूरियाँ होती हैं कि हम चाह कर भी वह सब नहीं कर पाते जो आम पब्लिक करती दिखाई देती है! भले ही वर्तमान में उसके मानक बदल गये हों लेकिन पत्रकारिता के सिद्धांत के आधार पर मैं चाहकर भी सतपाल महाराज के चरणों में कभी नहीं झुका ! आज आत्मग्लानि हो रही थी मन कह रहा था जाकर उनके चरण पकड ले, क्योंकि आज ऐसी जनता उनके मध्य थी जिनमें सिर्फ और सिर्फ आत्मा व परमात्मा के मिलन की पीड थी! मानों हजारों –हजार सुदामा एक साथ कृष्ण से मिलने को आतुर हों! आज पहली बार हृदय की गहराइयों से मैंने अपने अंदर का पत्रकार मारकर आँखें बंद कर सतपाल महाराज को ह्रदय से नमन किया!
यह बड़ा सुंदर नजारा था कि हर कोई महाराज की चरण पादुका छूना चाह रहा था और महाराज स्वयं अपने स्तर पर जनता को व्यवस्थित कर कुछ सेकेंड्स का समय हर एक को मुहैया करवा रहे थे! उनकी हाथों में पकड़ी मालाओं को खुद हाथ में लेकर गले डालते, उनके सम्मानों को अंगीकार करते और स्वयं ब्यवस्था बनाते क्योंकि पब्लिक न पुलिस की सुन रही थी न लोकल जनता की क्योंकि उनके तो साक्षात भगवान् विराजमान थे!
महाराज ने अपने अभिभाषण में विगत माह पूर्व सावणी गाँव के अग्निकांड पर चिंता ब्यक्त करते हुए उन्हें और सहायता मुहैय्या कराने की बात की! आम जनता के लिए कई दार्शनिक बातें रखी, बिस्सू मेला प्रबन्धन के लिए तीन लाख रूपये देने की घोषणा की और अंत में जखोल-देवक्यार ट्रेक को ट्रेक ऑफ़ द इयर -2018 घोषित कर हजारों हजार की संख्या में पहुंचे पर्वत वासियों को विलेज टूरिज्म से जोड़ने की सौगात दी! अब जब विदाई का वक्त आया तो उनके भक्त उनके रास्ते में बिलकुल लम्बवत लेते दिखाई दिए! और तो और हैलीपैड के पास तो एक ब्यक्ति ने पैर पकड़ कर उनकी चरण धूलि सर माथे लगाई! महाराज हवा में गायब हुए और पीछे खुशहाली का ऐसा आलम छोड़ गये जो सबके लिए एक सुखद सन्देश था! जहाँ कांग्रेसी समर्थक यह कहते सुने गए कि इसीलिए हम इन्हें भगवान् मानते हैं कि इन्होने किसी भी\ पार्टी का जिक्र किये बिना सबके दिलों में अपने लिए मान –सम्मान पैदा कर दिया है वहीँ कुछ अन्य अनुयायी कहते सुने गए – सद्गुरु का पूरा परिवार ही साक्षात भगवान के तुल्य है! इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण तो यह रहा कि लोग इतने आत्ममुग्ध ने कि गाँव के मालदार गंगा सिंह रावत द्वारा विगत दिन से सूक्ष्म जलपान की तैय्यारी, ड्राई फ्रूट इत्यादि सबी धरे के धरे रह गए और यह आत्ममुग्धता तब टूटी जब महाराज वायुयान से लोप हो गये!