सचमुच आज के युग का सपनों जैसा है- गंगी गाँव! जहाँ के साहूकार देवता को गवाह मानकर बिना शर्तों पर देते हैं उधार..!
सचमुच आज के युग का सपनों जैसा है- गंगी गाँव! जहाँ के साहूकार देवता को गवाह मानकर बिना शर्तों पर देते हैं उधार..!
(मनोज इष्टवाल)29-09-2017
आर बसणा पार बसणा लाणा गंगी रे गीत…! ये शब्द मुख्यतः उन भेडालों के हैं जो अक्सर 6 माह घर से बाहर हिमालयी उतुंग श्रृंखलाओं में भेड़ बकरियां चुगाने का कार्य करते हैं ! मुझे लगा कि कहीं गंगी गीत की संरचना कहीं भेड़ालों ने गंगी पहुंचकर ही तो नहीं की होगी? जहाँ एक ओर भारतबर्ष भौतिकता के दोहन के चरम पर पहुँच गया है वहीँ इसी देश में आज भी एक ऐसा गाँव है जिसके अधिक्तर लोगों ने सड़क व बाजार नहीं देखे ! जहाँ बिजली नहीं, मोबाइल नहीं, टीवी नहीं और बाहरी दुनिया में रोजमर्रा क्या घट रहा है उसकी कोई खबर नहीं! फिर भी यह गाँव उत्तराखंड में आई पलायन की आंधी से कोसों दूर सपनों का एक ऐसा गाँव है जहाँ के धनासेठ केदारनाथ से लेकर गौरीकुंड, सोनप्रयाग, त्रिजुगीनारायण, सीतापुर और गुप्तकाशी जैसे बाजारों में सैकड़ों होटल, ढाबे, घोड़े खच्चर और छोटे-बडे व्यवसाइयों को सिर्फ अपने देवता की कसम खिला देने पर ही ब्याज में रूप्या दे देते हैं. वे किसी भी व्यवसायी से न कोई सेक्युरिटी ही मांगते हैं और न ही कोई लिखत पढ्त! उनका एकमात्र गवाह बस उनके गाँव का सोमेश्वर देवता है जिसके दरवाजे पर जाकर उधार मांगने वाले को कसम खानी पड़ती है!
(फोटो साभार- गूगल)
गंगी टिहरी जिले के भिलंगना विकास खंड का वह अंतिम गाँव है जहाँ पहुँचने के लिए आपको लगभग 10 किमी के आस-पास पैदल चलना पड़ता है! पहाड़, ढलान, तंग रास्ते, नदी नाले, हरियाली जंगल, हवा और सुंदर पर्यावरणीय माहौल में आप रीह से गंगी तक पहुँचने में लगभग पूरा दिन खर्च कर देते हैं. लेकिन हम जैसे ट्रेकर्स इस रास्ते को 6 घंटे में आराम से तय कर लेते हैं. भिलंगना घाटी में आजकल लोग मंडुवा,दालें, चोलाई की फसलों को काटने संभालने में लगे हैं वहीँ गंगी गाँव जोकि लगभग 130 परिवारों का गाँव है पूरा का पूरा खाली है. बस नौनिहाल व बूढ़े बुजुर्ग ही आपको आजकल गाँव में दिखाई देंगे क्योंकि बाकी सभी ग्रामीण अपनी दैनिक दिनचर्या के आधार पर खेतों व पहाड़ी ढलानों पर घास काटने में ब्यस्त हैं. उसके पीछे कारण भी यह है कि इसी महीने के अंत तक अब यहाँ बर्फ गिरने की संभावना हो जाती है इसलिए यहाँ का जनमानस अधिक से अधिक घास का भंडारण शुरू कर देता है ताकि ऊँचे बुग्यालों में पड़ी बर्फ के कारण पशुओं का आहार इन सर्दियों में बना रहे ! घास की पूले बांधकर उन्हें पेड़ों में टांगना व एक लट्ठ के सहारे घर के पास ही दाल मंडूवे की भूसी भरकर उसे उसी घास की पुलियों से ढकना यहाँ आजकल की दिनचर्या का हिस्सा कहा जा सकता है. अगर यह कहें कि आजकल यहाँ के निवासियों को मरने तक की फुर्सत नहीं होती तो सच है!
(फोटो- व्योमेश)
गंगी पहुँचने के बाद सचमुच “दुल्हन वहीँ जो पीया मन भाये” फिल्म का वह गाना याद आ जाता है जो संगीतकार रविन्द्र जैन के संगीत से सजा व उस दौर की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री रामेश्वरी पर फिल्माया गया गीत है ! गीत के बोल हैं – लेतो आये हो हमें सपनों के गाँव में, प्यार की छाँव में बिठाए रखना…!” याद आ जाता है. आप यहाँ पहुंचकर सचमुच मदहोश हो जाते हैं. सोमेश्वर देवता के आँगन में पहुँचने पर आपकी सारी थकान दूर हो जाती है और दूर नजर दौड़ाओ तो लगता है पर्वत राज हिमालय जैसे आपका आलिंगन करने के लिए तत्पर हो! जैसे आपकी खबर सार पूछते हुए कह रहा हो- मित्र ठीक से तो पहुँच गये ना? रास्ते में परेशानी तो नहीं उठानी पड़ी!
ईश्वर करे यह गाँव तब भी ऐसा ही रहे जब यहाँ सड़क नामक दानव पहुँच जाए ! सड़क जहाँ भी गयी वहां से जनमानस सरकता गया ! मुझे गंगी देख पर्वत क्षेत्र के डाटमीर, धारकोट, गंगाड, पवाणी व ओसला गाँव याद आ जाते हैं जहाँ दूर दूर तक सड़क नहीं है. बेहद अभाव में लोग जीवन यापन करते हैं लेकिन फिर भी खुशहाल हैं! गाँव कम से कम पूरे के पूरे आबाद तो हैं. मुझे लगता है हमारा हर सीमावर्ती गाँव यूँहीं आबाद रहे जिसकी सीमाएं अन्य देशों से मिलती हों!
(फोटो-सोहन परमार)
अभी भी सड़क और रोशनी से बहुत दूर टिहरी का गंगी गांव हिमालयी लोकजीवन की लाजवाब कहानी है। समूची भिलंगना घाटी में जहां धान की मंडाई जोरों पर है, वहीं घाटी के इस अंतिम गांव के लोग घास कटाई में व्यस्त हैं। वे अपने पशुओं के वास्ते अगले पांच-छह माह के लिए घास का भरपूर भंडारण कर लेना चाहते हैं क्योंकि इनके चारागाह जल्द ही बर्फ की चादर में बदलने वाले हैं।
हाल-फिलहाल गंगी गाँव पलायन के दंश से अछूता है। यहां के लोग मुख्यतः पशुपालक हैं व ज्यादात्तर भेड़ बकरियों की आमद यहाँ सबसे अधिक दिखने को मिलती है। बिषम परिस्थितियों में हिमालय सा दिल रखने वाले यहाँ के महिला पुरुष मिलकर बराबरी का काम करते हैं न कि पहाड़ के अधिक्तर गाँवों के उन ग्रामीणों की तरह जो ताश और शराब में सारा दिन यूँहीं गुजार देते हैं। आसपास के क्षेत्रों में यदि उनकी सम्पन्नता के किस्से हैं तो इसका कारण यही मेहनतकशी है।
मोटर मार्ग से जहां गंगी गांव की 11 किमी. की पैदल दूरी कम होगी वही गांव में विकास कार्य तेजी से आगे बढ़ेगा। साथ ही बाहर से आने वाले पर्यटकों की तादात में भी बढोत्तरी होगी यही नही गंगी से केदारनाथ, खतलिंग सहित अन्य कई तीर्थाटन व पर्यटन स्थलों को जाने के लिये सुविधा मिल पाएगी साथ ही ग्रामीण अपनी नगदी फसल आलू, राजमा, चौलाई आदि को मोटर मार्ग से आसानी से घुत्तू व घनसाली बाजार पहुंचा सकेंगे।
गंगी गाँव की तलहटी में बहती भिलंगना नदी की शांय-शांय की आवाज इस समूचे इलाके को संगीतमय कर देती है। इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है कि गंगी के गर्भ से निकलकर बहने वाली भिलंगना नदी पर बना टिहरी बाँध जहाँ दिल्ली हरियाणा सहित कई राज्यों को बिजली आपूर्ति करती है वहीँ गंगी आज भी घुप्प अँधेरे में है! । हां, प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का काम उम्मीद बंधाता है, जिस पर तेजी से कार्य प्रारम्भ होने की उम्मीद है।
अब जल्द गांव में सड़क का सपना साकार होने वाला है। ग्रामीण विकास मंत्रालय भारत सरकार से वित्तपोषित परियोजना के तहत घुत्तू-गंगी मोटर मार्ग के नाम से पीएमजीएसवाई विभाग ने गंगी के लिए मोटर मार्ग का निर्माण कार्य शुरू कर दिया है। कार्यदायी संस्था ने रीह से गंगी गांव तक 9.30 किमी तक मोटर मार्ग का निर्माण 467.68 लाख की लागत से किया जाना है और अनुबंध के अनुसार सड़क का निर्माण 2018 तक पूरा होना है।
इस क्षेत्र में सहस्त्रताल एवं अनेक बुग्याल तथा पंवाली कांठा जैसे अनेक ऐसे क्षेत्र है जहां पर पर्वतारोहण के इच्छुक देशी-विदेशी पर्यटक पंहुचना चाहते है । यकीन मानिए गंगी के आस-पास के बुग्याल पर्यटकों बिशेषकर ट्रेकर्स के लिए स्वर्ग हैं! पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत स्वतंत्र भारत के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हुए जो गंगी गाँव तक पहुंचे उन्होंने रीह से गंगी तक मोटर मार्ग बनाये जाने की घोषणा की। वहीं उन्होंने गांव में आयुर्वेदिक चिकित्सालय खोले जाने की घोषणा भी की, साथ ही गांव के एकमात्र जूनियर हाई स्कूल के हाई स्कूल में उच्चीकरण की घोषणा की।
उत्तराखंड में गंगी को अधिक्तर लोग साहूकार विलेज के नाम से जानते हैं! गंगी गांव के बीचों बीच भगवान सोमेश्वर का प्राचीन मंदिर है. उधार देने से पहले इसी मंदिर के प्रांगण में एक दिया जलाकर भगवान सोमेश्वर को साक्षी मान उधार दिया जाता है. गंगी गांव के लोगों ने सबसे अधिक धनराशि लोन के रूप में केदारघाटी में दी है.
केदारनाथ से लेकर गौरीकुंड, सोनप्रयाग, त्रिजुगीनारायण, सीतापुर और गुप्तकाशी जैसे बाजारों में सैकड़ों होटल, ढाबे, घोड़े खच्चर और छोटे-बडे व्यवसायी गंगी गांव से उधार लेते आए है.
उधार देने की प्रक्रिया भी अजीबोगरीब है. यहां केवल सोमेश्वर भगवान ही गवाह होता है. केदारघाटी ही नहीं बल्कि गंगोत्री और भिलंगना घाटी में भी इस गांव के लोगों ने उधार दिया है! गंगी गाँव आप उधार में रूपये लेने न सही बल्कि यहाँ की वादियों का आनंद लेने पहुँच ही सकते हैं. टिहरी से घनशाली और घनशाली से करीब 30 किमी. दूरी पर बसे इस गाँव की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था यहाँ की भेड़-बकरी, गाय-भेंस पालन व कृषि व्यवसाय पर निर्भर करता है.
गंगी गाँव भले ही इस माह आपको जनसंख्या शून्य मिलेगा क्योंकि यहाँ के जनमानस आजकल खेत व घास के लिए गाँव के आस-पास विभिन्न स्थानों पर अपने डेरे बनाकर रहते हैं!
यहाँ की अर्थव्यवस्था का इतना मजबूत होने के बारे में यहाँ के प्रधान नैन सिंह बताते हैं कि बाजारवाद से दूर होने के कारण हमारे खर्चे कम होते हैं जितना भी पैंसा पशु पालन व खेत खलिहानों से मिलता है वह जमा ही होता है. पैंसा पास रहे तो ब्याज पर देने में कोई गुरेज नहीं! वे कहते हैं कि किसी भी ग्रामीण को यह चिंता नहीं रहती कि अगर उनका पैंसा किसी ने लौटाया नहीं तो क्या होगा क्योंकि सोमेश्वर के द्वार में उन्हें साक्षी मानकर पैंसा ले जाना तो सरल है लेकिन न लौटाना बेहद जटिल! क्योंकि सोमेश्वर देवता उसे उसकी कई पुश्तों से वसूल कर लेता है!
यहाँ एक अजब-गजब परम्परा है! सोमेश्वर देवता जब मंदिर से बाहर लाये जाते हैं तब ढोल-नगाड़ों के साथ उन्हें मनाया जाता है लेकिन जब सीटियाँ बजनी शुरू होती हैं तभी उनकी पालकी झूलती है वह भी मदमस्त होकर..! पालकी के साथ गाँव भर की हजारों बकरियां सोमेषर मंदिर की परिक्रमा करती हैं! इस परिक्रमा का मकसद यह रहता है कि हमें जन धन व पशुधन से खुशहाल बनाए रखना !
समुद्रतल से करीब 2,465 मीटर की ऊंचाई पर स्थित व 127.1 किमी क्षेत्रफल में फैले गंगी गाँव को प्रकृति ने अनमोल खजाने से नवाजा है. सच कहें तो यह किसी सपनों के गाँव से कम नहीं !
2009 me gya THA….. Aapke lekh ne Jaise Yaad jivant kr di… Badhai bal
आभार ! धन्यवाद
V.nice post ishtemal ji
Thanks
आभार…शुक्रिया !
Janab aar bsana paar basna ,asse gane gangi re geet is not related to village gangi of uttrakhan ,but this( gangi) is actually a type of song …love song actually jo himachal main gate hain ….
ट्रूली शशांक जी…ये गंगी लव सोंग के रूप में हिमाचली संस्कृति की रगों में हि नहीं बल्कि जौनसार बावर (उत्तराखंड) में भी उतना हि लोकप्रिय है! मैंने इसे जब पहली बार सुना तब मैं भेडालों के साथ हिमाचल उत्तराखंड बॉर्डर की ही एक पहाड़ी में रात्री बिश्राम के लिए रुका था.