संजीवनी बूटी की तलाश में…..! लाता की नंदा से रुइन गाँव तक का सफ़र..! पार्ट-2
संजीवनी बूटी की तलाश में…..! लाता की नंदा से रुइन गाँव तक का सफ़र..! पार्ट-2
(मनोज इष्टवाल)
द्रोणागिरी ट्रेक ऑफ़ द इयर-2017
21-05-20217
ऋषिगंगा व धौली के संगम के पास जैसे ही हमारी कार के टायरों ने चिंघाड़ मारी फ्रंट सीट पर बैठा मैं अकबका गया. इस से पहले कुछ बोलता कि गोबिंद नेगी बोल पड़े- भाई साहब ये है चीपको आन्दोलन की प्रेणत़ा गौरा देवी का गाँव आप खामख्वाह सामने वाले की फोटोखींच रहे थे. अब तक गीता बिष्ट पिछला दरवाजा खोल कर उतर चुकी थी जबकि चन्द्रशेखर चौहान ने कैमरा संभालते हुए कहा- नहीं गोबिंद गाँव इस और भी है और उस ओर भी! मैंने भी कैमरा संभाला और गाँव के मुख्य द्वार का एक फोटो उतार ही दिया! सचमुच इस गाँव की माटी को छूना मेरे लिए किसी गर्व से कम नहीं था. द्वार के आगे हमारी टीम ने बारी बारी से फोटो खिंचवाई तब तक गोपेश्वर से सुप्रसिद्ध फोटोग्राफर व गोपीनाथ मंदिर के पुजारी हरीश भट्ट जी का फोन गोबिंद नेगी के फोन पर आ चुका था! मैं उयाहन चिपको आन्दोलन से जुड़े उन अन्य महानविभूतियों का नाम इसलिए नहीं लिख रहा हूँ क्योंकि उन सबका नाम रैनी गाँव के लोगों ने मुख्य गेट पर लिखा हुआ है. कार में बैठते ही गोबिंद ने फोन मेरी तरफ बढ़ा दिया. हरीश भट्ट नाराज थे कि हम गोपेश्वर उनके पास नहीं रुके वहीँ वार्ता खत्म होते ही चन्द्रशेखर चौहान बोले- भाई साहब शुक्र है रैनी में आपने हरीश भट्ट जी का नाम नहीं लिया ? मैंने प्रश्न किया- ऐसा क्यों…! उन्होंने हंसते हुए जबाब दिया – चंडी प्रसाद भट्ट जी उन्हीं के पारिवारिक दादा जी हुए जिन्हें चिपको आन्दोलन का विभूषण मिला है!
अभी यह ठटठा मजाक चल ही रहा था कि धौली नंदी के दांयें छोर पर ही एक छोटा सा बाजार दिखाई दिया जिसके प्रवेश द्वार “लाता” गाँव! मैंने झट से चन्द्रशेखर को पूछा – यह वही लाता गाँव तो नहीं जहाँ से माँ नंदा की डोली 88 बर्षों बाद नंदा राज जात में शामिल हुई थी व बेदनीबुग्याल से इसलिए लौट गयी कि आगे का मार्ग पथ-भ्रष्ट हो गया है. हम तब असमंजस में थे कि आखिर ऐसा क्या हुआ है. तब जानकारी मिली कि नंदा की डोली से पहले ही लोग आगे की जात्रा कर रहे थे.
खैर लाता गाँव की नंदा के बारे में आज भी कहा जाता है कि उसके मंदिर प्रांगण में स्थित खड्ग व तलवार आकाश से गिरी व यहाँ तब से गढ़ी हुई हैं लेकिन ये कभी कभार अपने आप ही यहाँ से गायब हो जाती हैं तब यहाँ का जनमानस समझ जाता है कि जरुर कहीं न कहीं कुछ अनर्थ होने वाला है. लोगों का मानना है कि आज भी माँ नंदा की खड्ग व तलवारें संहार के लिए निकलती हैं. समुद्र तळ 6700 फिट की उंचाई पर अवस्थित इस मंदिर तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग से १ किमी. पैदल चलना पड़ता है. जोशीमठ बाडाहोती मार्ग पर जोशीमठ से 25 किमी आगे बसे लाता गाँव की माँ नंदा को मन ही मन प्रणाम किया और नीति घाटी की ओर बढ़ चले. जैसे ही भलगाँव के पुल पर हमारी कार बढ़ी चंद्रशेखर का कैमरा पुल की आवाज रिकॉर्ड करने लगा इस लोहे के पुल से ऐसे आवाज आ रही थी मानों हम ट्रेन में बैठे हो. इस भौगौं भी बोलते हैं. यहाँ गजब तो ये है कि एक नया पुल और बना है जिसकी फिटिंग उलटी हो रखी है इसलिए उसे अभी पास नहीं किया गया है. यहाँ से हम धौली नदी के बांये हाथ हो गए और उसके बेहद करीब भी..!अगर यह कहा जाय की धौली कुछ हद तक हमारे सामान्तर बह रही थी तो गलत नहीं होगा!
एक ठीकठा-क मार्केट दिखी जिसका नाम सुराई टोटा बताया गया यहाँ बी आर ओ का कार्यालय भी है. चूंकि यह चंद्रशेखर चौहान का क्षेत्र हुआ इसलिए वह किसी परफेक्ट गाइड की तरह हमें गाइड कर रहे थे उन्होंने बताया कि यहाँ से ऋषिकुन्ड के लिए ट्रेक किया जाता है. अभी हम एक लंबा मोड़ मुड़कर चढ़े ही थे कि एक गाँव पूरा बिरान मिला जिसके खंडहर अपने होने की गवाही दे रहे थे. यही से पार छानियां थी जो अब बंजर थी लेकिन फिर भी सुंदर लग रही थी. आदमकद भांग के वृक्ष उनका साथ दे रहे थे हमने उतरकर कैमरे संभाले और एक फोटो बनता है कहकर फोटो ले ही डाली. ताजुब तो ये था कि गीता बिष्ट अभी तक उतना नहीं बोली जितना वह अक्सर बोलती हैं. यह पहली ऐसी लड़की है जिसे हर फील्ड की ज्जान्कारी कंठस्थ है. वह सिर्फ इस समय एक ही काम कर रही थी कि गर्म पानी के स्रोत से लायी हुई की पन्नी से पानी बाहर करने की कोशिश कर रही थी.
अब हम जुम्मा पहुँच चुके थे जहाँ ढेरों गाड़ियां व सैकड़े से अधिक लोग खड़े हमारा ही इन्तजार कर रहे थे. कई खच्चरों पर सामान लद रहा था जो मुंह से फुर्र फुर्र करते हुए बदबूदार गोबर हग रहे थे. हमें अपर आयुक्त हरक सिंह रावत जी का आदेश हुआ कि एक घोड़े में अपना सामान लदवा लें. गीता को लगा सब सामान ले जाना ठीक नहीं इसलिए एक बैग कार में ही रहने दिया. सबने अपने रुक्सेक बैग कसे और जय पर्वत देवता के नारे के साथ धौली पर बने पुल के लिए उतरने लगे जहाँ से हमें फिर पुल पार कर धौली नदी के दांयें हाथ होकर द्रोणागिरी के लिए ट्रेक करना था. माउंटेन लवर्स मुंबई की टीम जहाँ बेहद अनुशासित अंदाज में थी वहीँ हम बेहद लापरवाह इसलिए क्योंकि पर्वत हमारी दिनचर्या के अंग जो हुए ! हाँ चलने से पहले हमने एक ग्रुप फोटो जरुर खींचा! इसके लिए मैंने ही सबसे पहले कैमरा निकला और उंगुली ट्रेगर पर क्लिक बोल पड़ी…!
क्रमश>..