संजीवनी बूटी की तलाश….! देहरादून से द्रोणागिरी तक का वह सफर जिसका अप्रितम सौन्दर्य आज भी बंद आँखों में कैद है.

संजीवनी बूटी की तलाश….!
देहरादून से द्रोणागिरी तक का वह सफर जिसका अप्रितम सौन्दर्य आज भी बंद आँखों में कैद है.

(मनोज इष्टवाल)
(20-05-2017)
दूध के मानिंद धवल व सर्प के मानिंद बलखाती धौली नदी जिस तेजी से अपनी उतराई उतरकर कलकल छळछल स्वां-स्यां करती अलकनंदा में मिलने को आतुर हो रही थी उसी तेजी से हमारी कार तारकोल की बनी सर्पाकार सडक पर नीति घाटी के स्पन्दन के लिए बेताबी से आगे बढ़ रही थी. जोशीमठ से ट्रेक ऑफ़ द इयर द्रोणागिरी-2017 का बदरीनाथ विधायक महेंद्र भट्ट व केदारनाथ विधायक मनोज भट्ट, भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री केदार सिंह फोनिया के लिए हरी झंडी दिखा चुके थे. अब तक हमारी टीम विभिन्न गाड़ियों से ट्रेकर्स के साथ रवानगी भर चुकी थी  तपोवन के रावत होटल में खाना खाकर जो तपोवन से बाद गर्म पानी के स्रोतों में रिपोर्टिंग कर, ऋषि गंगा व धौली नंदी के संगम पर स्थित चिपको आन्दोलन की प्रेणता गौरादेवी के गाँव रैणी/रैनी का पुल पार कर अब धौली गंगा के दांयें हाथ पर नीति घाटी का सफर तय कर रही थी.

ऐसा नहीं था कि हमारा सफ़र आज से ही शुरू हुआ हो हम देहरादून से लगभग पांच गाड़ियों में सवार होकर रात्री विश्राम के लिए जोशीमठ पहुंचे थे यहीं माउंटेन लवर्स मुंबई की टीम से हमारा संगम हुआ था ठीक उसी तरह जिस तरह हाथी पर्वत के नीचे विष्णु प्रयाग का संगम है. फर्क इतना था कि विष्णु प्रयाग से धौली व अलकनंदा ऋषिकेश की ओर बह रही थी और हम उसके थी विपरीत पहाड़ की ऊँचाइयों को छूने नीति घाटी की ओर बढ़ रहे थे.

यूँ तो देहरादून से हमें सुबह सबेरे निकलना था लेकिन जाने क्या हुआ उदित घिल्डियाल की कमान में हमारी टीम को 9:30 यही बज गए. सुबह नाश्ता भी नहीं किया था इसलिए जीएमवीएन के ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग (ब्यासी) में नाश्ता कर हमारी टीम के सभी सदस्य यहाँ मिले. एक गाडी में दिल्ली से आये मयंक आर्य व उनकी सहपाठी लोग जिन्हें जॉय हुकिल श्रीनगर में मिले, एक में केदारनाथ विधायक मनोज रावत व उनके सहयोगी, एक में उदित घिल्डियाल व ईटीवी के रोबिन सिंह चौहान, एक में आजतक दिल्ली के मंजीत नेगी व उनके सहयोगी एक में मैं स्वयं व मेरे साथ लंबा सफ़र की सम्पादक गीता बिष्ट, धरोहर टीम के चन्द्रशेखर चौहान व गोबिंद नेगी शामिल थे.

उदित के साथ यहाँ से मंजीत नेगी भी कुछ पल के लिए शामिल हुए. मैं चाहकर भी केदारनाथ विधायक मनोज रावत की गाडी में नहीं जा पाया क्योंकि टीम लीडर का कर्तब्य जो निभाना था. यहाँ से गाड़ियां आगे पीछे होती हुई तीन धारा, व वीर भड अमर देव सजवाण के गाँव भरपूर की सीमा लांघती फांदती, देवप्रयाग में भागीरथी नदी का पुल पार करकेवीर शिरोमणि माधौ सिंह भंडारी के गाँव मलेथा पार कर कीर्ति नगर में अलकनंदा पर बने पुल को पार करती गढ़वाल राजा के पौराणिक शाहर श्रीनगर में दाखिल हुई. ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग में अब तक हम देवप्रयाग में भागीरथी व अलकनंदा के मिलन से उत्पन्न माँ गंगा व कीर्तिनगर में ढूंढप्रयाग संगम लांघ चुके थे.
श्रीनगर तक मैं नींद के आगोश में था इसलिए शहर कब आया और चला गया पता नहीं चला. इस से पहले ड्राईवर भी ऊंघता नजर आया था तब चन्द्रशेखर चौहान ने शीशे में उसे उंघते देख लिया था और बहुत समझदारी के साथ उसे तीन धारा में खाना खिलाकर दो मिनट झपकी लेने को कहा. मेरे ख्याल से यात्रा का यह पहलु हम सबको समझ लेना चाहिए क्योंकि दुर्घटना अकेले चालक की लापरवाही से नहीं बल्कि हम सबकी लापरवाही से होती हैं. इस मामले में सभी को चौकन्ना रहना चाहिए.

श्रीनगर, धारी देवी, रूद्रप्रयाग, कर्प्रयाग, चमोली, पीपलकोटी और उसके बाद जोशीमठ तक हम अलकनंदा के दांयें हाथ पर निरंतर सर्पाकार सड़क में सफ़र करते हुए रात्री बिश्राम के लिए जोशीमठ पहुंचे जहाँ हमारी व्यवस्था पूर्व मंत्री रहे केदार सिंह फोनिया जी के रेस्ट हाउस में थी. बहुत सुंदर लोकेशन में इस रेस्ट हाउस से जहाँ आप सामने हाथी पर्वत का नजारा ले सकते हैं वहीँ हिमालय की उतुंग शिखरें सुबह सूर्य की किरणों के साथ आपके आभामंडल में तेज भर देती हैं और आपके मुंह से स्वत: ही निकल पड़ता है ओम नम: शिवाय! वहीँ विष्णु प्रयाग से बदरीनाथ को बढती सडक के नीचे जब अलकनंदा के बर्फीले जल पर आपकी निगाह पढती है तब आपके मुंह से मंत्र स्फुटित होता है –“जले बिष्णु थले बिष्णु, बिष्णु बिष्णु हरे-हरे!

केदारनाथ विधायक मनोज रावत जी को हम व्यक्तिगत तौर पर पूर्व में पत्रकार ही मानते थे मात्र 15 दिन के अंदर पत्रकार से विधयाक बने इस करिश्माई व्यक्ति का व्यक्तित्व क्षेत्र में उनकी लोकप्रियता तो दर्शाता ही है लेकिन जब शिब नंदी नामक स्थान में उनका फोन आया और उन्होंने कहा आप वहीँ रुकिए यहाँ चाय पीनी है तब वे हमें शिबनंदी में एक कयाकिंग प्रशिक्षण केंद्र में ले गए गया प्रकृति के अनूठे सौन्दर्य में हरियाणा के एक लाल ने पहाड़ी परम्पराओं के सानिध्य में हमारी उम्मीदों को तब ज़िंदा रखा है जब हम अपनी लोक संस्कृति को बौना कर पाश्चात्य की ओर बढ़ रहे हैं.

उनकी पत्नी जोकि स्वयं इटली या जर्मनी की नागरिक हैं व बच्चे इस धरा की माटी में इतनी रंग गए हैं कि इस से खूबसूरत उन्हें कुछ लगता ही नहीं है. अपने हाथ से गोबर माटी के ऐपण से कमरों को पोतना व उनकी साज-सज्जा करना उनका नित नियम है. सचमुच इस कैम्प में बैठकर देहरादून से यहाँ तक की पूरी थकान पल भर में गायब हो गयी. मनोज रावत कयाकिंग प्रशिक्षण केंद्र के महासचिव हैं जबकि ट्रेकिंग संस्थान के अध्यक्ष ! यह जानकारी हमारे लिए बिलकुल नई थी.

चूंकि अपर आयुक्त गढ़वाल हरक सिंह रावत जी का गाँव ही द्रोणागिरी है व उनके अभिनव प्रयास के बाद ही द्रोणागिरी ट्रेक ऑफ़ द इयर -2017 घोषित हुआ था इसलिए उन्हें फोन पर अपने जोशीमठ पहुँचने की सूचना देना मेरा परम कर्तब्य था. उन्होंने मेरे अभिवादन को ख़ुशी मन से स्वीकार और पूछा – रास्ते में कोई दिक्कत परेशानी तो नहीं हुई! खैर बेहतरीन व्यवस्था का लाभ लेकर हमने जल्दी ही बिस्तर संभाला और सो गए.
क्रमशः…….

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