श्वेता ने फैशन डिजाइनिंग छोड़ बकरी पालन को बनाया पैशन
श्वेता ने फैशन डिजाइनिंग छोड़ बकरी पालन को बनाया पैशन
————————–
पत्रकार विनोद मुसान की फेसबुक वाल से!
कभी भेड़-बकरी पालन को दोयम दर्जे का कार्य माना जाता था, लेकिन रानीपोखरी की श्वेता तोमर ने इस काम में नए आयाम गढ़े हैं। फैशन डिजाइनिंग की चकाचौं धभरी दुनिया छोड़ श्वेता ने इसे अपना पैशन बना लिया। श्वेता बकरियों के साथ अपने फार्म में गो-पालन और मुर्गी पालन भी कर रही हैं। नई तकनीक पर आधारित इस फार्म में घुसते ही आपको हर चीज व्यवस्थित और
नई तकनीक से लैस नजर आती है। बकरी पालन के लिए बना प्लेटफार्म और वहां लगे उच्च तकनीक के सीसीटीवी कैमरे इसकी तस्दीक करते हैं।
रानीपोखरी न्याय पंचायत क्षेत्र के भोगपुर गांव की रहने वाली श्वेता तोमर ने एग्रो फार्मिग की शुरूआत कर अपने पिता स्व. प्रेम सिंह तोमर का सपना साकार किया है। विज्ञान में स्नातक और उसके बाद निफ्ट से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद श्वेता ने नोएडा और दिल्ली में कुछ साल फैशन इंडस्ट्री में काम किया। लेकिन, श्वेता के दिमाग में हमेशा पिता का सपना घूमता था, वह अपना एग्रो फार्म खोलना चाहते थे।
आखिरकार श्वेता ने नौकरी छोड़कर पिता के सपने को पूरा करने की ठानी और उन्हीं के नाम पर जनवरी, 2016 में प्रेम एग्रो फार्म की स्थापना की। चार बहनों में तीसरे नंबर की श्वेता के पास आज फार्म में अलग-अलग नस्लों की सौ से भी ज्यादा बकरियां हैं। इनमें सिरोही, बरबरी, जमना पारी और तोता पारी ब्रीड के पांच हजार से लेकर एक लाख तक के बकरे मौजूद हैं।
बकरियों के लिए बने विशेष तरह के प्लेटफार्म के नीचे मुर्गी पालन किया जाता है। गोशाला अलग से बनाई गई है। बकौल श्वेता, ‘जमीन अपनी थी, पति रोबिन के साथ मिलकर करीब एक करोड़ का प्रोजेक्ट बनाया था, लेकिन कोई भी बैंक इतना लोन देने को तैयार नहीं था। फिर पीएनबी ने 30 लाख का लोन पास किया। इसके बाद आठ लाख रुपये खुद से लगाकर फार्म शुरू कर दिया।’ श्वेता के पति
बंगलूरू में आईटी के क्षेत्र में काम करते हैं। वहीं श्वेता ने गोट फार्मिग के बारे में सुना और देखा। इसके बाद कई फार्म विजिट करने के बाद पिता के सपने को हकीकत में बदलने का फैसला लिया।
आज श्वेता इस काम में महारत हासिल कर चुकी हैं। वह बकरियों का दूध निकालने से लेकर उनकी देखभाल और छोटी-मोटी दवा-दारू भी कर लेती हैं। जरूरत पड़ने पर वह खुद ही बकरों को बिक्री के लिए लोडर में लादकर मंडी ले जाती हैं। दूध के अलावा बकरियों की बिक्री इंटरनेट के माध्यम से भी करती हैं। श्वेता बताती हैं शुरुआत में सरकारी स्तर पर कई दिक्कतें आईं पर पशुपालन विभाग का उसे भरपूर सहयोग समय-समय पर मिलता रहा।