श्रीमती माधुरी डबराल बड़ूनी सहित 4 लोगों को विद्यावारिधि सम्मान -2018 !
#श्री तिमली को उत्तराखंड का संस्कृत धरोहर ग्राम घोषित
पौड़ी गढ़वाल 22 मार्च 2018 (हि. डिस्कवर)
विगत दिनों “श्री तिमली संस्कृत विद्यापीठ” द्वारा संस्कृत के कार्य कर रहे प्रख्यात विद्वानों को विद्यावारिधि सम्मान-2018 से सम्मानित किया गया। जिसमें प्रसिद्ध इतिहासकार/साहित्यकार डॉ हेमा उनियाल, समाजसेवी अनिता नौटियाल सहित कई गणमान्य व्यक्तियों ने शिरकत की।
विद्यापीठ सम्बन्धी जानकारी देते हुए डॉ हेमा उ?नियाल ने बताया कि जनपद पौड़ी गढ़वाल में देवीखेत(डबरालस्यू पट्टी) के निकट “श्री तिमली संस्कृत विद्यापीठ” की प्राचीनतम स्थापना है। सन 1882 में स्थापित यह विद्यापीठ 1911 से 1915 तक संयुक्त प्रान्त की प्रथम मान्यताप्राप्त एवं वित्तपोषित पाठशाला थी जो संस्कृत में कर्मकांड,तंत्र ,वैदिक दर्शन में सैकड़ों विद्यार्थियों को हाईस्कूल तक की शिक्षा प्रदान करती थी। सन 1882 से 1969 तक इस विद्यापीठ ने संस्कृत जगत में अनेक विद्वान प्रदान किये जिनमें -ब्रह्मलीन जगतगुरु शंकराचार्य माधवाश्रम जी महाराज,आचार्य ललिता प्रसाद डबराल, पंडित सदानंद डबराल, ज्योतिषाचार्य वाणी विलास डबराल आदि रहे।
ज्ञात हो कि कालांतर में विद्यादत्त डबराल और वर्तमान में उनके पुत्र अशोक डबराल (शिक्षाविद,व्यास,दिल्ली) जिन्होंने व्यास गद्दी को शुभोभित किया है। इतिहासकार के रूप में डॉ शिव प्रसाद डबराल(1912-1999), डॉ पार्थ सारथी डबराल(लेखक,प्रवक्ता) प्रभात डबराल (सक्रिय पत्रकारिता), श्रीमती कौशल्या डबराल (देहरादून में “दून महिला संगठन” की स्थापना व “शराब बंदी आंदोलन” का सफल नेतृत्व), मंगलेश डबराल (चर्चित पत्रकार एवं लेखक) आदि चर्चित नाम रहे हैं। संस्कृत शिक्षा के लिए इस विद्यापीठ को उत्तराखंड हिमालय का “काशी” कहा गया।
18 मार्च 2018 को “श्री तिमली विद्यापीठ” द्वारा “श्री तिमली वैदिक शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र” को पुनर्जीवित करने हेतु संकल्प गोष्ठी एवं आचार्य सुंदरलाल डबराल की स्मृति में विद्यावारिधि सम्मान -2018 का सफल आयोजन किया गया, जिसमें संस्कृत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान हेतु डॉ बुद्धदेव शर्मा, डॉ प्रेम चंद शास्त्री, डॉ प्रहलाद सिंह, श्रीमती माधुरी डबराल बड़ूनी को विभिन्न गणमान्यों की उपस्थिति में यह सम्मान प्रदान किया। इस कार्यक्रम में दो प्रस्ताव पारित हुए जिनमें- श्री तिमली वैदिक शिक्षा एवं अनुसंधान केंद्र को पुनर्जीवित करना व श्री तिमली को उत्तराखंड का संस्कृत धरोहर ग्राम घोषित करना शामिल है।
कार्यक्रम में डॉ डी एन भटकोटी, प्रभात डबराल, डॉ हेमा उनियाल, अनिता नौटियाल, अनुसूया प्रसाद काला, डॉ कुलदीप पंत, डॉ बालश्रवा आर्य, नंदा डबराल, डॉ हर्षानंद उनियाल, ऋषि कंडवाल, भोला शंकर डबराल आदि ने शिरकत की।
ज्ञात हो कि डॉ हेमा उनियाल द्वारा उत्तराखण्ड के संदर्भ में केदारखण्ड व मानसखण्ड दो महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखी गयी हैं। डॉ हेमा उनियाल ने जानकारी देते हुए कहा कि यहां के आशीष डबराल जो ब्रिटिश टेलीकॉम ( गुडगांव) में प्रोजेक्ट मैनेजर हैं बहुत होनहार व संस्कृत व संस्कृति के प्रति बहुत समर्पित व्यक्तित्व हैं। यहां के बच्चों की बहुउद्देशीय शिक्षा के लिए वह “ओम् सोहम ह्यूमन वेलफ़ेयर चेरिटेबल ट्रस्ट” के माध्यम से भी कार्य कर रहे हैं। उनके प्रयासों से यह आयोजन ग्राम तिमली में संभव हो पाया।
यूँ भी ग्राम तिमली देश-विदेश में ख्याति प्राप्त विद्वानों-आचार्यों, शिक्षाविदों की ज्ञानभूमि, तपोभूमि और “श्री वंशेश्वर देव” की उपासना स्थली रही है।उन्होंने कहा कि तिमली जैसे गांव में सपरिवार पहुँचकर बहुत दिव्यता का आभास होता है। उन्हें पद्म वृक्ष (पयां) की छाँव में बैठकर ऐसा अनुभव हुआ जैसे समस्त दैविक शक्तियां इस स्थल पर आकर केंद्रित हो गई हों।
यह अकाट्य सत्य पूर्व में पहाड़ के गांवों में भी प्रचलित था कि तिमली के डबराल जाति वंशजों के ज्ञान चक्षु असमान्य हैं और यहां की माटी में उत्पन्न पुत्र पुत्री बेहद विद्वत होती है।