श्रीनगर डांग गॉव…! जहाँ विरासत के खंडहरों में दबे हैं ब्रिटिश गढ़वाल के प्रथम डिप्टी, सदर अमीन व पटवारी कोठा ?
(मनोज इष्टवाल)
यूँ तो गढ़वाल श्रीनगर सतयुग से लेकर कलयुग तक कई बार उजड़ा व बसा! कभी भूकम्प से तो कभी अलकनंदा के बहाव से..! लेकिन कलयुग के लगभग इन 5000 बर्षों में हमारे पास इस श्रीक्षेत्र के उजड़ने बसने के मात्र पांच बार के आंकड़े ही मौजूद हैं।
श्रीनगर या श्रीपुर कहे जाने वाले इस शहर की तबाही का पहला संवत 427 अर्थात सन 370, दूसरी बार शक संवत 927 सन 870, तीसरी बार संवत 1435 यानि सन 1378 ई. चौथी बार जिसके शायद इतिहासकारों के पास आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं लेकिन इसे सन 1797 या फिर 1802 के प्रलयकारी भूकम्प को माना गया है जिसमें अधिकतर का मत है कि भले ही दो तिहाई गढ़वाल इस भूकम्प से तबाह हुआ लेकिन श्रीनगर नहीं जबकि कुछ का मानना हैकि यही भूकम्प वजह रही गढ़वाल पर गोरखा राज आने का।

पांचवी बार श्रीनगर में आई तबाही इसलिए भी आँखों देखी सी लगती हैं क्योंकि इसके गुजरे बमुश्किल एक सदी से ज़रा ज्यादा समय हुआ है और इसके बारे में हमारे दादा के परदादा यह दृश्य देख चुके होंगे या सुने होंगे क्योंकि इसकी यादें हमें हमारी दादी के मुंह से सुनने को मिलती हैं। संवत 1951 अर्थात सन 1894 ई. की तबाही की मुख्य वजह बिरही नदी की बाढ़ मानी जाती है! गोहना ताल के टूटने से भयंकर तबाही हुई जिसने सम्पूर्ण श्रीनगर को अपने आगोश में ले लिया जहाँ आज भक्तियाना आईटीआई श्रीनगर के आगे नदी का सबसे ज्यादा चौड़ा फाट (स्थल) है वहां कभी राजमहल हुआ करता था कहते हैं वह यहीं जमींदोज है. मात्र 4 फर्लांग चौड़ी समतल जमीन पर ही पुन: श्रीनगर अवस्थित किया गया।
ज्ञात होकि यह वही श्रीनगर श्रीक्षेत्र है जहाँ आदिगुरू शंकराचार्य को हैजा कोलरा हुआ था। जिसके पीछे शास्त्र सम्मत किंवदन्ती है कि आदिगुरू शन्कराचार्य शक्ति (श्री/माँ) के वजूद को कुछ नहीं मानते थे जबकि यह देवभूमि आदिदेवी शक्तियों की ही जननी मानी जाती है। यही कारण भी हैं कि देवभूमि में शक्ति पूजा सबसे अधिक होती है। हैजा कोलरा से अलकनंदा तट पर गिरे शंकराचार्य पर इतनी हिम्मत नहीं थी कि वे घिसटकर भी पानी पी लें। तब तक उन्हें पानी लाती एक महिला दिखाई दी जिससे उन्होंने घूंs घूंs करते पानी पिलाने का अनुरोध किया। महिला ने बेहद रूखे शब्दों में कहा – तुममें शक्ति है तो खुद पी लो जाकर?
शंकराचार्य समझ गए कि वे माँ की महिमा आजतक क्यूँ नहीं समझ पाए उन्होंने क्षमा मांगी और माँ महामाया ने उन्हें क्षमा करते हुए न सिर्फ पानी पिलाने बल्कि अपना दुग्धपान भी करवाया।यह वही श्रीनगर है जहाँ महामाया ने नारद जी को बन्दरमुखी बनाया क्योंकि उन्हें भी अपनी खूबसूरती पर नाज था कि विश्वभर में उनसे ज्यादा खूबसूरत कोई नहीं।
इसी श्रीनगर की गोद में बसा डांग गॉव यूँ तो ग्याहरवीं सदी में ही प्रफुल्लित था जब बंगलादेश/बंगाल से आये सवा सात फिट लम्बे चार भाई गुथमदेव, गंगदेव, आशुदेव, बासुदेव चटर्जी को तत्कालीन राजा ने देवप्रयाग चौकी के कर वसूली जिटठा जिसे राजा का जिटठा भी कहा जाता है, छब्बू कोठियाल की जासूसी पर उनके राजा धनाई के साथ धनाई खोला में बसाया गया जबकि इन चारों भाइयों को पहले घिल्डी (कीर्तिनगर) फिर गौंथ या गूंथ/गौतंगो गॉव और कालान्तर में अंत में डांग गॉव में बसाया गया!
पांडित्य की भरपूर समझ होने के कारण यह गौमुत्री (गौमूत्र मन्त्र जानने वाले ब्राह्मण) 1803 से 1815 के गोरखा राज समाप्ति के बाद रहे लेकिन ब्रिटिश काल में अचानक तब सुर्ख़ियों में रहे जब राजा को अपनी राजधानी अलकनंदा पार टिहरी में बसानी पड़ी और ब्रिटिश गढ़वाल पर अंग्रेजों का कब्जा हुआ. अंग्रेजों ने तब गढ़वाल कुमाऊं कमिश्नरी के लिए पढ़े लिखे लोगों को तलाशना शुरू किया और उनकी यह तलाश आकर डांग गॉव में समाप्त हुई जहाँ एक ही घर की छत्त के नीचे तीन कुनवों के तीन तरह के विद्वान् उन्हें मिले. जिन्हें उन्होंने क्रमशः पटवारी गढ़वाल क्षेत्र, सदरअमीन गढ़वाल कुमाऊं, व डिप्टी गढ़वाल कुमाऊं नियुक्त किया. आज वह विशाल भवन तो खंडहर है लेकिन खंडहरों में तब्दील हुए इनके वंशजों को आज भी पटवारी कोठा, सदर कोठा व डिप्टी कोठा के नाम से जाना जाता है. आज भी वह हिस्सा थोड़ा बहुत बचा हुआ है जहाँ सदर अमीन या डिप्टी का कोर्ट लगता था!
फ़ारसी के विद्वान् पंडित बालाद्त्त घिल्डियाल को अंग्रेजी शासन ने सदर अमीन गढ़वाल कुमाऊं बनाया भले ही उनके बाद उनके ही पुत्र अम्बादत्त घिल्डियाल सदर अमीन बने. वहीँ उनके पौत्र पंडित गोबिंद प्रसाद घिल्डियाल गढ़वाल के प्रथम ग्रेजुअट व डिप्टी कलक्टर हुए उन्ही के भाई अनुसुया प्रसाद घिल्डियाल प्रथम सिविल जज बने. सिविल जज अनुसूया प्रसाद घिल्डियाल के पुत्र बृजमोहन प्रसाद घिल्डियाल अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कृषि वैज्ञानिक रहे यही नहीं वे पहाड़ के पहले ऐसे वैज्ञानिक हुए जिन्हें कृषि अनुसंधान हेतु देश का सर्वोच्च कृषि पुरस्कार रफी अहमद किदवई सम्मान प्राप्त हुआ. ये वो कृषि वैज्ञानिक रहे जिन्होंने कृषि अनुसन्धान केंद्र रानीचौरी की स्थापना में अहम भूमिका निभाई. सिविल जज साहब के जेष्ट पुत्र विश्वनाथ घिल्डियाल (उ.प्र. सरकार में प्रथम श्रेणी के अधिकारी) प्रसिद्ध संगीतज्ञ हुए जिन्हें वायलन वादन में राष्ट्रीय स्तर पर दूसरा स्थान प्राप्त रहा. इनके पुत्र दीपक ज्योति घिल्डियाल हाल ही में आईजी इंटेलिजेंट उत्तराखंड पुलिस से सेवानिवृत हुए. वहीँ दूसरी और इसी परिवार में साहित्य की बुलंदी छूने वाले राम प्रसाद घिल्डियाल “पहाड़ी” जैसा व्यक्तित्व भी इसी कुनवे के हुये इनके भाई रघुनंदन प्रसाद घिल्डियाल सन 1968 में उत्तरप्रदेश के रिजनल फ़ूड कंट्रोलर (आरएफसी) रहे. उनके छोटे पुत्र आदित्य घिल्डियाल अंतर्राष्ट्रीय कंपनी में मानव संसाधन में कार्य करने के साथ साथ ग्रेटर नोइडा इंडस्टरियल डेवलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं ! उत्तराखण्ड के प्रथम पहाड़ी मूल के लोकायुक्त भी इसी कुनवे या ज़ाति के जस्टिस एम एम घिल्डियाल हुये ! अगर यह कहा जाय कि डांग गॉव के इस खंडहर भवन के जितने पत्थर उठाये जाएँ उतनों में विरासत के स्वर्णिम आखर अंकित हैं तो गलत नहीं होगा!
इन खंडहरों से उगे हीरे यूँ तो आसमान छू रहे हैं लेकिन श्रीनगर जैसी प्राइम लोकेशन पर ये खंडहर चीख-चीखकर कह रहे हैं कि हमें हमारा वजूद तो लौटा दो..! ताकि हमें जानने के लिए लोग श्रीनगर का इतिहास भी टटोलें! प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक बी.पी. घिल्डियाल के पुत्र सोशल एक्टिविस्ट उदित घिल्डियाल से जब इस सन्दर्भ में जानकारी चाही तब उन्होंने बताया कि हाँ वे इन खंडहरों में सभी भाइयों के साथ बैठकर एक ऐसा हॉस्टल निर्माण करवाना चाह रहे हैं जिसमें कम से कम पचास लडकियां मुफ्त में रहकर शिक्षा ग्रहण कर सकें! उनका मकसद है कि पहाड़ की वे प्रतिभाएं उभरकर सामने आयें जिनके पास हुनर तो है लेकिन गरीबी ने उनके हाथ बांधे हुए हैं! वे उन बेटियों के लिए सरकार के साथ मिलकर एक ऐसा हॉस्टल तैयार करने की सोच रहे हैं जिन्हें इसकी नितांत आवश्यकता है, क्योंकि उच्च शिक्षा के लिए शहर से दूर की लडकियां शहरों का व्ययभार ग्रहण करने में अक्षम हैं!
क्या विरासत के खंडहरों को संजोने की कवायद में अब उन्हीं के पत्थर पुनः ताज बनकर सजेंगे यह कहना अभी मुश्किल है लेकिन सोशल एक्टिविस्ट उदित घिल्डियाल व उनके समस्त परिवार के संभ्रांत भाइयों की सोच और नजरिया कब रंग लाएगा यह देखना अभी बाकी है! उम्मीद तो यही की जा सकती है कि यह परिवार इस कार्य को अंजाम देकर पुन: उन्ही सूर्खियों के पायदान में जाकर खडा होगा जो इन खंडहरों के पत्थरों में लिखी कर्मों की ईबादत है!
