शिक्षा और रोजगार के जरिये बदलाव का वाहक बनी अनीता नौटियाल!
शिक्षा और रोजगार के जरिये बदलाव का वाहक बनी अनीता नौटियाल!
- शहरों की शानो-शौकत से कोसों दूर पहाड़ के एक ऐसे गॉव को रोशन करने की मुहिम….जहाँ शिक्षा का तिमिर अभी उदयमान को है!
- ऐसी शख्सियत जिसके कठोर निर्णय से आकुल ब्याकुल रहे परिजन लेकिन दृढ़ संकल्प ले डटी हैं अपने हौसलों के साथ.
उन्होने वो राह चुनी जो दूसरों के लिये भले ही मुश्किल थी, लेकिन उनके लिये ये फर्ज था। वो अपनी मिट्टी से बेहद प्यार करती थीं इसलिये सब कुछ छोड़ उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल में आकर रहने लगीं। कभी टीचर रहीं अनीता नौटियाल आज उत्तराखंड के एक छोटे से गांव में ना सिर्फ बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हैं बल्कि खाली होते उत्तराखंड के गांव को बसाने के लिये वो वहां से होने वाले पलायन को भी रोक रही हैं। इसके लिये वो गांव वालों को ना सिर्फ खेती के विकल्प बता रहीं हैं, बल्कि महिलाओं को एकजुट कर उनको आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश भी कर रही हैं।
उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल की रहने वाली अनीता नौटियाल ने देश के अलग अलग हिस्सों में पढ़ाई की और उसके बाद वो शिक्षा के क्षेत्र में आ गई। इस दौरान उन्होने गुजरात के रोजकोट के अलावा उत्तराखंड के काशीपुर और ऋषिकेश में बच्चों को पढ़ाने का काम किया। 3 बच्चों की मां अनीता हर साल गर्मियों की छुट्टियों में अपने गांव जलवाल आया करती थी- र्मी कि छुट्टियों में जब अनीता अपने मायके और नानाकोट जाती थी तो यही सोचती थी कि किस तरह यहाँ कि शिक्षा का स्तर ठीक किया जाये!
- इस दौरान वो देखती थीं कि गांव में शिक्षा का स्तर काफी गिरा हुआ है। इस वजह से स्थानीय लोग अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए मैदानी इलाकों की ओर पलायन कर जाते हैं। जिसके बाद अनीता ने तय किया कि वो शिक्षा का स्तर उठाने के लिए खुद कुछ करेंगीं। इस वजह से जब साल 2015 में उन्होने पौढ़ी के जौनपार में ‘पलायन और चिंतन’ के मुद्दे पर आधारित एक गोष्ठी में हिस्सा लिया तो उनको कई और बातें पता चलीं। जिसके बाद उन्होने इस क्षेत्र में काम करने के बारे में फैसला किया। तब अनीता ने अपने बच्चों के सामने अपने विचार रखे। जिसका उनके बच्चों ने भी समर्थन किया और उनसे कहा कि वो अगर समाज सेवा करना चाहतीं हैं तो करें और वो भी उनके इस फैसले में पूरी तरह से उनके साथ हैं। इसके बाद अनीता ने अपनी नौकरी छोडकर अपने गांव वापस आ गईं।
- इस तरह अगस्त, 2015 में अनीता ने ‘आनंद वाटिका ग्रीन गुरूकुलम’ (Ananda Vatika Green Gurukulam) की स्थापना की और अपने काम की शुरूआत गांव के एक बरगद के पेड़ के नीचे बच्चों को पढ़ाने से की। शुरूआत में उनके पास कम बच्चे आते थे, लेकिन जब स्थानीय लोगों ने बच्चों के पीछे उनकी मेहनत देखी तो धीरे-धीरे ये संख्या बढ़ने लगी। आज वो करीब 60 बच्चों को पढ़ाने का काम करती हैं। बच्चों को वो सुबह 1 घंटे और शाम को 1 घंटा पढाती हैं। उनके पास आने वाले बच्चों में पहली क्लास से लेकर 12वीं क्लास तक के बच्चे शामिल होते हैं। इन बच्चों को वो अंग्रेजी और गणित पढ़ाती हैं। अनीता ने बताया कि
शुरुआत में जब मेरे पास बच्चे आते थे तो वो सभी स्कूली छात्र थे। बावजूद तीसरी क्लास में पढ़ने वाले बच्चों को अंग्रेजी में ए,बी,सी,डी और गणित में जोड़ घटाना तक नहीं आता था। तब मैंने फैसला किया कि मैं इन बच्चों को एकदम बेसिक पढ़ाऊंगी ताकि कि इनका बेस मजबूत हो जाये।
आज पहाड़ में बसे हर गांव का बच्चा स्कूल जाता है, लेकिन वो चाहे प्राइवेट स्कूल (private school) में जाये या सरकारी स्कूल में हर जगह टीचर अपना कोर्स पूरा करवाने में लगे रहते हैं। अनीता कहती हैं कि टीचर का ध्यान इस ओर नहीं जाता है कि बच्चे को जो पढ़ाया जा रहा है वो उसे समझ में आ भी रहा है कि नहीं। यही वजह है कि बच्चे भले ही बड़ी क्लास में चले जायें लेकिन उनको ज्यादा कुछ नहीं आता। बच्चों की इसी कमजोरी को ध्यान में रखते हुए अनीता उन्हें अक्षर ज्ञान के अलावा उनकी राइटिंग और गणित जैसे विषयों पर ज्यादा ध्यान देती हैं। इतना ही नहीं वो बच्चों को नैतिक ज्ञान और पर्यावरण को लेकर भी शिक्षित कर रही हैं। वो बच्चों को वट के पत्तों से दोने और पत्तल बनाना भी सिखाती हैं। साथ ही वो उनको प्लास्टिक के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान की जानकारी भी देती हैं। इसके अलावा वो त्योहार के मौके का खास तरीके से इस्तेमाल करती हैं। इस दौरान वो इन बच्चों में आत्मविश्वास जगाने के लिए उनमें सिंगिग, डांसिंग और डिबेड करवाती हैं।
अनीता बच्चों को पढ़ाने के साथ साथ पहाडों से हो रहे पलायन को भी रोकने की कोशिश कर रहीं हैं। इसके लिए वो वहां के किसानो को परंपरागत खेती की जगह बागवानी, शहद उत्पादन, रेशम उत्पादन और लेमन ग्रास की खेती करने को कहती हैं। ये उनकी ही कोशिशों का नतीजा है कि गांव की कुछ औरतें लेमन ग्रास की खेती कर रहीं हैं। जिसका इस्तेमाल ग्रीन टी और तेल निकालने में होता है। साथ ही वो गांव में लोगों के सहयोग से शहतूत के पेड़ लगवा रहीं हैं। जिससे उन पेड़ों में रेशम के कीड़े पाले जा सकें। वो लोगों को मधुमक्खी का पालन कैसे किया जाता है इसके बारे में भी बताती हैं। अनीता की कोशिश है कि इस तरह रोजगार के नये साधन पैदा होने से स्थानीय लोगों की आमदनी में इजाफा होगा। अपनी परेशानियों के बारे में अनीता का कहना हैं कि उनको गांव वालों से उतना सहयोग नहीं मिल रहा जितना मिलना चाहिए, क्योंकि गांव वाले सोचते हैं कि वो यहां पर अपने स्वार्थ के कारण आई हैं। बावजूद अनीता ने हार नहीं मानी है उनका मानना है कि धीरे धीरे वो लोगों की इस धारणा को बदलने में कामयाब होंगी। जिसके बाद ज्यादा से ज्यादा लोग उनके साथ जुड़ेंगे।- https://www.youtube.com/watch?v=obRAv2MxhrE