शहीद अमित को अंतिम विदाई पर उमड़ा भारी जनसैलाव। पिता ने मुखाग्नि दी तो सेना व पुलिस बल ने सलामी।
ज्वाल्पाधाम पौड़ी गढ़वाल 7 अप्रैल 2020 (हि. डिस्कवर)
अपनी थाती-माटी के लाल की कुर्बानी को नम आंखों से अंतिम विदाई देने पहले गांव में उमड़ा जनसैलाब तो बाद में ज्वालपा धाम में। ऐसा लगा मानो कोरोना का भय किसी को नहीं है, सिर्फ लालसा है तो अपने वीर यौद्धा के सम्मान में उसकी अंतिम मुखजात्रा करना।

विकास खण्ड कल्जीखाल के कफोलस्यूँ पट्टी ने व उसके ज्वालपा धाम घाट ने जाने कितनी ऐसी वीरो की कुर्बानियां व चिताएं देखी हैं। इस समय जबकि सम्पूर्ण देश लॉक डाउन की स्थिति में है, भला हर घर में माँ भारती के लिए मर मिटने वाली इस वीर भूमि के लोग ऐसी स्थिति में कैसे घरों में कैद रह पाते।

जिलाधिकारी पौड़ी धिराज गर्ब्याल ने जानकारी देते हुए बताया कि प्रशासनिक स्तर पर जिलाधिकारी व आला अफसर आज सुबह ही रांसी स्टेडियम शहीद को श्रद्धांजलि देने पहुंच गए थे। उन्होंने एसडीएम चौबट्टाखाल मनीष कुमार, तहसीलदार,कानूनगों व पट्टी पटवारी सहित सभी को आदेश जारी किए थे कि वे शहीद के जन्मस्थल उसके गांव से लेकर शमशान घाट तक की यात्रा में शरीक होंवे। भले ही ऐसे समय में सोशल डिस्टेंसिंग की बात करनी बड़ी अलग सी हो जाती है लेकिन फिर भी शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी बन जाती है कि ऐसी स्थिति में भीड़ अधिक हो तो जनचेतना का खयाल रखें। इसी जन चेतना का ख्याल रखते हुए मुख्यमंत्री व सांसद सिर्फ रांसी स्टेडियम तक ही श्रद्धांजलि देने पहुंचे ताकि क्षेत्रीय जनता न उमड़े। जिलाधिकारी ने कहा यह माटी का लाल माटी में मिल गया लेकिन उस माटी को अपनी वीर गाथा से अमर कर गया। वे इस दुःख की घड़ी में हर संभव शहीद अमित अंथवाल के परिजनों के साथ हैं व किसी भी दुःख तकलीफ में प्रशासन उनके साथ खड़ा मिलेगा।
उत्तराखंड सरकार में दर्जाप्राप्त मंत्री राजेन्द्र अंथवाल ने बताया कि जैसे ही उन्हें खबर मिली वे कोटद्वार से पहले गांव व फिर पौड़ी पहुंचे । जन सैलाब गांव से लेकर घाट तक थमने का नाम नहीं ले रहा था। अब शहीद अमित के पिता नागेंद्र ने अपने पुत्र को मुखाग्नि दे दी है। इससे पूर्व फौज के मेजर जनरल से लेकर गढ़वाल राइफल्स लैंसडौन की सैन्य टुकड़ी व पौड़ी जनपद में तैनात पुलिस बल के जवानों की टुकड़ी ने शहीद को अंतिम सलामी दी।
क्षेत्रीय समाजसेवी व भाजपा कार्यकर्ता हेमन्त बिष्ट ने जानकारी देते हुए बताया कि गांव से ज्वालपाधाम घाट तक करीब 14-15 सौ लोग रहे होंगे। ऐसे में किसी को रोक भी कैसे सकते थे क्योंकि यह एक वीर शहीद के जनाजे का मामला था। सब मतवाले मुखजात्रा में शामिल होकर जयघोष को आमादा जो थे लेकिन यह बहुत सुंदर बात रही कि घाट तक जितने भी लोग आए थे उनमें एक एक दो को छोड़कर सबने मास्क लगाए हुए थे वे आपस में सोशल डिस्टेंसिंग बनाये हुए थी। जैसे ही शहीद के पिता ने मुखाग्नि दी कई सुबकियां साफ सुनाई दे रही थी। यह सचमुच शहीद की ऐसी वीरगति है जिसकी अंतिम यात्रा ने मेले का रूप ले लिया।
सच कहा तभी तो कहा भी गया है कि शहीदों की चिंताओं में लगेंगे हर बरस मेले। वतन में मरने वालों के यही बाकी निशां होंगे।।
