वैश्यालय इलाके की मिट्टी के बिना अधूरी हैं दुर्गा की मूर्ति।
वैश्यालय इलाके की मिट्टी के इस्तेमाल के बिना अधूरी है दुर्गा की मूर्ति..!
वरिष्ठ पत्रकार दिनेश कंडवाल की कलम से-
इन मूर्तियों को बनाने में खास तरह की मिटटी का इस्तेमाल किया जाता है जो कि सोनागाछी से आती है। सोनागाछी कोलकाता का रेडलाइट इलाका है, जो सेक्स वर्कर्स के लिए जाना जाता है..!
जो कारीगर इन मूर्तियों को बनाते हैं, उनका मानना है कि जब तक मूर्ति को बनाने में सोनागाछी की मिट्टी का उपयोग नहीं किया जाता, मूर्ति पूर्ण नहीं मानी जाती..!
इसे लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। एक मान्यता है कि जब भी कोई व्यक्ति ऐसी जगह पर जाता है तो वह अपनी सारी अच्छाइयां बाहर ही छोड़ जाता है, यही कारण है कि सेक्स वर्कर के घर के बाहर की मिट्टी को मूर्ति में लगाया जाता है…..!
ऐसी ही एक और मान्यता है कि नारी, ‘शक्ति’ का एक स्वरूप है, ऐसे में अगर उसकी कहीं गलती है तो उसके लिए समाज जिम्मेदार है। इसलिए यहां की मिट्टी के इस्तेमाल के पीछे उन्हें सम्मान देने का उद्देश्य भी है…!इससे जुड़ी एक और मान्यता के बारे में बताया जाता है कि दुर्गा माँ ने अपनी एक भक्त वेश्या को सामाजिक तिरस्कार से बचाने के लिए उसे वरदान दिया था कि उसके यहां की मिट्टी के उपयोग के बिना प्रतिमाएं पूरी नहीं होंगी…
नवरात्र के दिनों में पश्चिम बंगाल के मूर्तिकार देश के विभिन्न जगहों पर भी जाते हैं और इस मिट्टी से बनी प्रतिमाओं की बिक्री करते हैं। वेश्याओं के द्वारे की मिट्टी से बनी दुर्गा माँ की मूर्तियों की सबसे अधिक मांग पश्चिम बंगाल और देश के विभिन्न स्थानों में रहने वाले बंगालियों में है, लेकिन अब दूसरे राज्यों के लोगों में भी इसकी मांग बढ़ने लगी है…..
(फोटो: दिनेश कंडवाल/1995)