वेद विलास की बलबलाती कलम के आखर- किसकी थाती किसकी संस्कृति किसका उत्तराखंड?
(मनोज इष्टवाल)

पत्रकारिता के सच्चे मापदंड ही उसके लोकसमाज व सांस्कृतिक मूल्यों की पूर्ती के लिए होते हैं वरना प्रेस रिलीज पर पत्रकारिता करने वाली भीड़ दुनिया भर में है ! वेद विलास उनियाल जब कभी भी अपनी कलम चलाते हैं तब उसे पढने को इसलिए उत्सुकता रहती है क्योंकि उसमें छुपी समाजिक सरसता, सामाजिक सरोकारिता व पत्रकारिता एक साथ दिखने को मिलती है! ऐसा ही एक प्रकरण जो सचमुच संस्कृति की पृष्ठभूमि में सांस्कृतिक लवादा ओढे संस्कृतिकर्मियों के लिए एक ऐसा प्रश्नचिह्न खड़ा कर गया है जो आडम्बर में लिपटे राजनैतिक व सांस्कृतिक परिवेश का नकाब नोचने के लिए काफी हैं!
“धर्मार्थकाममोक्षाणामुपदेशसमविन्तम! पूर्ववृतं कथायुक्तमितिहासम प्रलक्षते!!इतिहापूरानाभ्यामचक्षुर्भ्यामिव सतकवि:! विवेकाज्जनशुद्धाभ्याम सूक्ष्ममप्यर्थमीक्षते!!
देश की वर्तमान समस्याओं का सही समाधान खोजने के लिए एवं अतीत की आत्मधाती चूकों की पुनरावृत्ति रोकने के लिए, ऐतिहासिक घटनाओं का यथातथ्य विस्तृत अध्ययन करके उने कारणों की गहरी छानबीन करनी चाहिए! जनता वर्तमान भाग्यविधाताओं के सही पथ-प्रदर्शन के लिए हमारे पूर्वजों के अनुभव का प्रकाश नितांत आवश्यक है!
ऐसी ही कुछ पीड़ा शब्दों के साथ उस आत्मबोध को जताती बताती वरिष्ठ पत्रकार वेद विलास उनियाल की पंक्तियाँ सहज दिखने की तो चंद पंक्तियाँ कही जा सकती हैं लेकिन उसमें छुपा सन्देश हम सबके लिए आत्ममंथन करने की ललक छोड़ जाता है और जब हम आत्मा में उन शब्दों का आलिन्घं कर लेते हैं तब पाते हैं कि यकीनन हमारी संस्कृति व हमारा समाज महानगरों की दौड़ में अपने लोक मूल्यों का तेजी से ह्रास कर रहा है! जब संस्कृतिकर्मी जो कि समाज का एक आईना होता है, ही एक दूसरे की खैरखबर की परवाह नहीं कर रहा है तो आम समाज कहाँ दिशा भटक रहा होगा यह हमें समझना होगा!
वेद विलास लिखते हैं – “क्या आप यक़ीन करेंगे कि उत्तराखंड की लोकप्रिय गायिका रेखा धस्माना को हार्ट अटेक पड़ा वह काफ़ी बीमार हैं । लेकिन उत्तराखंड के कला संस्कृति जगत के दो तीन लोगों को छोड़ किसी ने मिलना तो दूर फ़ोन तक नहीं किया । अस्पताल में कलाकारों में केवल प्रीतम भर्तवाण, बलराज नेगी, पूनम सती, महेश प्रकाश उन्हें देखने आए । यह उत्तराखंड का असली आंइना है । यहाँ के कलाकार मंच पर अपना गीत गाने या प्रस्तुति देने से पहले बड़ी ऊँची ऊँची बातें करते है। परंपरा भाईचारा लोकसंस्कृति पर बोलते है। थाति-मुल्क की बातें कर अपने मंच को ज़माने की कोशिश करते है लेकिन कितना अजीब है उनका व्यवहार कि अपने बीच की एक सम्मानित बड़ी लोकगायिका के स्वास्थ्य के बारे मे दो मिनट का फ़ोन तक नहीं करते ।
जब रेखाजी के साथ यह बर्ताव है तो आम कलाकारों के प्रति क्या भावना होगी समझा जा सकता है । जबकि मीडिया ने यह जानकारी दी थी, लेकिन कलाकारों की इतनी व्यस्तता और कार्यक्रमों की इतना जुगाड़ कि एक फ़ोन का समय नहीं निकाल पाए । भूल गए ये कलाकार कि जीवन क्षणभंगुर होता है कब किसका ऊपर से बुलावा आ जाए । कम से कम कला क्षेत्र में जो है उसे संवेदनशील होना चाहिए। अगर नहीं है तो कला फिर उसके लिए दुकान है ।
हाँ….. कलाकार की जगह कोई नेता या संस्कृति विभाग का अधिकारी बीमार पड़ता तो ये सब फूलों के गुच्छे लेकर अस्पताल पहुँच जाते । कला जगत को थोड़ा समझे। इतनी दुनियादारी भी ठीक नहीं । उम्मीद करते है उत्तराखंड के आपके गीत संगीत नृत्य दिखावटी न हो । रेखा धस्माना स्थापित गायिका हैं अस्सी के दशक से उनके गीत उत्तराखंड में गूँज रहे हैं । क्या हम बदलेंगे?”