वृक्षों की वजह से हमारा अस्तित्व सम्भव- कल्याण सिंह रावत।
वृक्षों की वजह से हमारा अस्तित्व संभव -कल्याण सिंह रावत
पौड़ी/देहरादून 18 दिसम्बर 2017 (हि. दिसम्बर)
उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट द्वारा पौड़ी में आयोजित वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली व्याख्यानमाला में मुख्यवक्ता मैती आंदोलन के कल्याण सिंह रावत ने कहा कि विकास सकारात्मक होना चाहिए। हम पेड़-पौधों के मेहमान हैं। हम पृथ्वी पर आए हैं और चले जाएंगे लेकिन हमारी हमारी जरूरतों को पूरा करने वाले पेड़-पौधें सैकड़ों सालों से खडे है और बने रहेगे। यह इस धरती हमें जीने का माहौल उपलब्ध कराते आये है। अधिकतर जीवों ने अपना व्यवहार वैसा ही बनाया हुआ है जैसा सैकड़ों साल पहले हैं। उन्हानें कहा कि ओजोन परत से छनकर जो किरणें धरती पर पहुंच रही है, वे ही धरती में जीवन को बनाए हुए हैं। ए०सी० और फ्रिज में क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस का प्रयोग होता है जो ओजोन परत को क्षति पहुंचाती रही है। आज हर किसी को वाहन चाहिए जिसमें रोजाना खर्च होने वाला डीजल-पेट्रोल जल कर पृथ्वी के चारों ओर एक परत बना रहा है। कार्बन डाइ आक्साइड बढ़ रही है। हमारे लिए कारखाने चल रहे हैं। कार्बन डाइ आक्साइड वायुमंडल में जा कर वायुमण्डल गर्म बना रही है। समुद्र का एक मीटर जल स्तर बढ़ता है तो दक्षिण राज्यों को खतरा होगा। हमारी पृथ्वी पर कई पौधे ऐसे हैं जो धरती में पैदा हुए और विलुप्त हो गए। ग्लोबल वार्मिंग, ओजोन की परत पर क्षति मानवीय हस्तक्षेप से ही हुआ है। सब जानते हैं कि शहरों का कूड़ा कहां जा रहा है। नदी में हम कूड़ा डाल रहे हैं। हमारी आबादी बढ़ रही है ऐसे में हमें अधिक ऑक्सीजन चाहिए जो ज््यादा वृक्ष ही दे सकते है।
आज जहां खेती होती थी वहां कॉलोनियां बन गई हैं तो ऐसे में अनाज कहां से आएगा। अनाज जहां पैदा होता था वहां घर बन गए हैं। गांव के गांव खाली हो गए हैं। पलायन हो गया है। राज्य की बात करें तो यहां 3000 गांव खाली हो गए हैं। बन्दर और सूअरों का आतंक चारों और व्याप्त है। खेतों में पानी रोकने की व्यवस्था नहीं की जा रही है। इस कारण जल श्रोत घट रहे हैं। पहले जगलों में स्थानीय घास हुआ करती थी आज चारों ओर काला बांस, गाजर घास और लैन्टाना गांवों में बस गया है। दूधारू घास ही नहीं बचा। दूधारू मवेशी कैसे पाले जाएं। इन विदेशी घासों ने जंगली जानवरों को पनाह दे दी है।
हिमालय के विकास के नाम पर तस्करों ने डेरा डाल दिया है। हमारे वन्य जीवों की हत्या कर रहे हैं। हमारे वन्य जीव बीमार हो रहे हैं। हिमालय बेहद संवेदनशील है। हिमालय त्रस्त हो रहा है। हिमालय तो जीवन देने वाला है। पहले हिमालयी यात्राएं पैदल होती थी। यहां के वातावरण में साफ पानी व वायु के सेवन से आदमी स्वस्थ हो जाता था। आज तो दिल्ली से चला आदमी वहीं से पानी की बोतल लेकर आ रहा है। उन्होंनें ऑल वैदर रोड को बनने के तरीके पर सवाल उठाये और कहा कि यह तो खुला खेल है। हर कोई हिमालय की ओर चलेगा। हिमालय बर्फ विहीन हो जायेगा। हिमालय में सड़के हों जो सुरक्षा की दृष्टि जरूरी हैं, लेकिन वनों के नाश पर नहीं।
कल्याण सिंह रावत जी मैती ने कहा कि उन्होंने मैती आंदोलन के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि वृक्षारोपण का उल्लेख तो ग्रन्थों में भी मिलता है। हमने तो इस परंपरा को बस आगे बढ़ाया। मैती आन्दोलन के तहत नई बहू देानों जगहारे पर पेड़ लगती है। नई बहू से धारा पूजा की जाती थी। गांव पानी के कारण ही बसा है। पानी पूजा से थोड़े बचेगा। पेड़ से पानी संरक्षित होगा। तो बहू एक पेड़ लगाती है।
कल्याण सिंह रावत ने कहा कि ऐसी शिक्षा हमें क्यों न दी जाए जो हमें मालिक बनाए नौकर नहीं। हम दूसरों के लिए काम कर रहे हैं। अपने लिए क्यों नहीं करते। अपनी प्रकृति के लिए काम क्यों नहीं करते। हिमालय, गंगा और गांव बसाना ही होगा।